एष धर्मविधिः कृत्स्नश्चातुर्वर्ण्यस्य कीर्तितः । अतः परं प्रवक्ष्यामि प्रायश्चित्तविधिं शुभम् । ।

यह चारों वर्णों के व्यक्तियों  का धर्म विधान कहा है इसके बाद अब शुभ प्रायश्चित की विधि कहूँगा

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