पित्र्ये रात्र्यहनी मासः प्रविभागस्तु पक्षयोः । कर्मचेष्टास्वहः कृष्णः शुक्लः स्वप्नाय शर्वरी

यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है .

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