ततः स्वयंभूर्भगवानव्यक्तो व्यञ्जयन्निदम् । महाभूतादि वृत्तौजाः प्रादुरासीत्तमोनुदः

ततः तब स्वयम्भूः अपने कार्यों को करने में स्वंय समर्थ, किसी दूसरे की सहायता की अपेक्षा न रखने वाला (अव्यक्तः) स्थूल रूप में प्रकट न होने वाला (तमोनुदः) ‘तम’ रूप प्रकृति का प्रेरक – प्रकटावस्था की ओर उन्मुख करने वाला (महाभूतादि वृत्तौजाः) अग्नि, वायु आदि महाभूतों को आदि शब्द से महत् अहंकार आदि को भी (१।१४-१५) उत्पन्न करने की महान! शक्तिवाला (भगवान्) परमात्मा (इदम्) इस समस्त संसार को (व्यंज्जयन्) प्रकटावस्था में लाते हुए ही (प्रादुरासीत्) प्रकट हुआ ।

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