एवं स जाग्रत्स्वप्नाभ्यां इदं सर्वं चराचरम् । संजीवयति चाजस्रं प्रमापयति चाव्ययः

(सः अव्ययः) वह अविनाशी परमात्मा (एवम्) इस प्रकार (५१-५४ के अनुसार) (जाग्रत् – स्वप्नाभ्याम्) जागने और सोने की अवस्थाओं के द्वारा (इदं सर्वं चर – अचरम्) इस समस्त जड़ चेतन जगत् को क्रमशः (अजस्त्रं संज्जीवयति) प्रलयकाल तक निरन्तर जिलाता है (च) और फिर (प्रमापयति) मारता है अर्थात् कारण में लीन करता है ।

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