आसीदिदं तमोभूतं अप्रज्ञातं अलक्षणम् । अप्रतर्क्यं अविज्ञेयं प्रसुप्तं इव सर्वतः

(इदम्) यह सब जगत् (तमोभूतम्) सृष्टि के पहले प्रलय में अन्धकार से आवृत्त – आच्छादित था ।………………. उस समय (अविज्ञेयम्) न किसी के जानने (अप्रतक्र्यम्) न तर्क में लाने और (अलक्षणम् अप्रज्ञातम्) न प्रसिद्ध चिन्हों से युक्त इन्द्रियों से जानने योग्य था और न होगा । किन्तु वर्तमान में जाना जाता है और प्रसिद्ध चिन्हों से युक्त जानने के योग्य होता और यथावत् उपलब्ध है । (स० प्र० अष्टम स०)

(सर्वतः) सब ओर (प्रसुप्तम् इव) सोया हुआ – सा पड़ा था ।

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