(इस प्रकार १।५-१२ श्लोकों में वर्णित प्रक्रिया के अनुसार) (सः प्रभुः) उस परमात्मा ने (कर्मात्मनां च देवानाम्) कर्म ही स्वभाव है जिनका ऐसे सूर्य, अग्नि, वायु आदि देवों के (प्राणिनाम्) मनुष्य, पशु, पक्षी आदि सामान्य प्राणियों के (च) और साध्यानाम् साधक कोटि के विशेष विद्वानों के (गणम्) समुदाय को (१।२३ में वर्णित) (च) तथा (सनातनं सूक्ष्म यज्ञम् एव) सृष्टि – उत्पत्ति काल से प्रलयकाल तक निरन्तर प्रवाहगमन सूक्ष्म संसार अर्थात् महत् अहंकार पंच्चतन्मात्रा आदि सूक्ष्म रूपमय और सूक्ष्मशक्तियों से युक्त संसार को (असृजत्) रचा ।