कामात्मता न प्रशस्ता न चैवेहास्त्यकामता । काम्यो हि वेदाधिगमः कर्मयोगश्च वैदिकः

हि क्यों कि इह इस संसार में कामात्मता अत्यन्त कामात्मता च और अकामता निष्कामता प्रशस्ता न अस्ति श्रेष्ठ नहीं है । वेदाधिगमः च वैदिकः कर्मयोगः वेदार्थज्ञान और वेदोक्त कर्म काम्यः ये सब कामना से ही सिद्ध होते हैं ।

(स० प्र० दशम समु०)

‘‘अत्यन्त कामातुरता और निष्कामता किसी के लिए भी श्रेष्ठ नहीं, क्यों कि जो कामना न करे तो वेदों का ज्ञान और वेदविहित कर्मादि उत्तम कर्म किसी से न हो सकें, इसलिये ।’’

(स० प्र० तृतीय समु०)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *