आचाराद्विच्युतो विप्रो न वेदफलं अश्नुते । आचारेण तु संयुक्तः सम्पूर्णफलभाज्भवेत् ।

आचारात् विच्युतः विप्रः जो धर्माचरण से रहित द्विज है वह वेदफलं न अश्नुते वेद प्रतिपादित धर्मजन्य सुखरूप फल को प्राप्त नहीं हो सकता, और जो आचारेण तु संयुक्तः विद्या पढ़ के धर्माचरण करता है, वही सम्पूर्णफलभाक् भवेत् सम्पूर्ण सुख को प्राप्त होता है ।

(स० प्र० तृतीय समु०)

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