एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः । स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः

एतत् देशप्रसूतस्य इसी ब्रह्मावर्त देश (१३६ – १३७) में उत्पन्न हुए अग्रजन्मनः सकाशात् ब्राह्मणों – विद्वानों के सान्निध्य से पृथिव्यां सर्वमानवाः पृथिवी पर रहने वाले सब मनुष्य स्वं स्वं अपने – अपने चरित्रं शिक्षेरन् आचरण तथा कत्र्तव्यों की शिक्षा ग्रहण करें ।

महर्षि दयानन्द ने उसी आर्यावर्त के पाठ के अनुसार अर्थ किया है –

‘‘इसी आर्यावत्र्त में उत्पन्न हुए ब्राह्मणों अर्थात् विद्वानों से भूगोल के सब मनुष्य – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, दस्यु, म्लेच्छ आदि सब अपने अपने योग्य विद्या चरित्रों की शिक्षा और वि़द्याभ्यास करें ।’’

(स० प्र० एकादश समु०)

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