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Continue to Chatमनुष्य जितने भी कर्म (मन, वचन, कर्म) करता है उन्हें बचपन से लेकर मृत्यु पर्यन्त अच्छी भावना से तथा बगैर राग द्वेष के करे वे सभी यज्ञ कहाते हैं। इस विषय में महर्षि दयानन्द जी द्वारा विस्तार से कब,कहाँ, कैसे बतलाया है? http://aryamantavya.in/manushay-jitne-karm/