मनुस्मृति पर विदेशी विद्वानों का शोधकार्य और भाष्य: डॉ. सुरेन्द कुमार

विश्वभर में मनुस्मृति के प्रभाव और भारत एवं आसपास के देशों में उसकी मह     ाा को देखकर अनेक विदेशी विद्वान् मनुस्मृति की ओर आकृष्ट हुए। उनके द्वारा मनुस्मृति-विषयक अनेक ग्रन्थ रचे गये। उनमें से प्रमुख का विवरण इस प्रकार है, जिनमें मनुस्मृति की प्रतिष्ठा को स्वीकार किया है-

सन् १७८६ में मनु-आधारित हिन्दू कानूनों के फारसी अनुवाद का अंग्रेजी रूपान्तरण प्रकाशित हुआ। १७९४ में मनुस्मृति का सर विलियम जोन्स कृत अंग्रेजी अनुवाद छपा। विलियम जोन्स न्यायाधीश के रूप में भारत आये थे। यहां के समाज में मनुस्मृति के मह  व को देखकर उन्होंने उसको विद्यार्थी बनकर पढ़ा। १८२५ में जी०सी० हॉगटन रचित अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित हुआ। फ्रैंच भाषा में १८३३ में पार०ए० लॉअसलयूर डैसलांगचैम्पस का ग्रन्थ ‘LOIS DE MANOU’ ग्रन्थ छपा, जो मनुस्मृति का भाष्य तथा विवेचन था। १८८४ में हापकिन्ज का ‘The Ordinances of Manu’छपा। १८८६ में ऑक्सफोर्ड से The sacred books of the east

series’ के अन्तर्गत २५ वें खण्ड में मैक्समूलर और      यूहलर के भाष्य एवं समीक्षायुक्त मनुस्मृति का अनुवाद प्रकाशित हुआ। १८८७ में जे.जौली द्वारा कृत जर्मन भाषा का अनुवाद छपा। इन प्रकाशनों से विदेशों में मनु और मनुस्मृति खूब प्रचार-प्रसार हुआ।

उपर्युक्त विवरणों से हमें जानकारी मिलती है कि मनुस्मृति का विश्व में प्रसार था। उस पर विदेशी विद्वानों को भी गर्व है। भारत के लिए तो यह महान् गौरव का विषय है ही। स्पष्ट है कि मनुस्मृति आज अन्तरराष्ट्रीय स्तर के अध्ययन का विषय बन चुका है। भारत की धरोहर विश्व की धरोहर बन चुकी है। मनु और मनुस्मृति पर कोई भी टिप्पणी करने से पूर्व हमें यह विचारना पड़ेगा कि उसका विश्वस्तर पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

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