मनु आदि-धर्मविशेषज्ञ और धर्मशास्त्र-प्रवक्ता: डॉ. सुरेन्द कुमार

वेदोक्त वैदिक धर्म जिन मानदण्डों, मर्यादाओं और मूल्यों पर आधारित है उनका सर्वप्रथम निर्धारण और विधान मनु ने अपनी ‘स्मृति’ में सर्वश्रेष्ठ विधि से किया है, इस कारण वे वैदिक धर्म के आदि-प्रवक्ता, आदि-व्यवस्थापक और आदि-शास्त्रप्रवक्ता हैं। सपूर्ण प्राचीन भारतीय साहित्य मनु-विहित धर्मों का आदर करता रहा है और उन्हें परीक्षा सिद्ध मानता रहा है। महाभारत में कहा गया है-

(क) भारतं मानवो धर्मः, वेदाः सांगाश्चिकित्सितम्।

       आज्ञासिद्धानि चत्वारि न हन्तव्यानि हेतुमिः॥

(आश्वेमेधिक पर्व अ0 92 में श्लोक 53 के बाद)

    अर्थ-महाभारत, मनु का धर्मशास्त्र, सांगोपांग वेद और आयुर्वेद इनके आदेश सिद्ध हैं। कुतर्क का आश्रय लेकर नहीं काटना चाहिए।

(ख)    ‘‘तस्मात् प्रवक्ष्यते धर्मान् मनुः स्वायभुवः स्वयम्॥’’ 44॥

       ‘‘स्वायभुवेषु धर्मेषु शास्त्रे चौशनसे कृते॥’’46॥

(महा0 शान्ति0 335.44, 46)

    अर्थ-स्वायभुव मनु ने मानवसृष्टि के आरभ में ब्रह्मा के धर्मशास्त्र के अनुसार धर्मों का उपदेश दिया है॥ 44॥ स्वायभुव मनु के धर्मशास्त्र और औशनस = शुक्राचार्य के शास्त्र बन जाने पर धर्म- विधानों का प्रचार हुआ है।

(ग)    ऋषयस्तु व्रतपराः समागय पुरा विभुम्।

       धर्मं पप्रच्छुरासीनमादिकाले प्रजापतिम्॥

(महा0 शान्ति0 36.3)

    अर्थ-‘मानव-सृष्टि के आदिकाल में व्रतपालक तपस्वी ऋषि एकत्र होकर प्रजापालक राजर्षि मनु (स्वायभुव) के पास आये और उन राजर्षि से धर्मों के विषय में जानकारी प्राप्त की।’ मनुस्मृति से भी यही ज्ञात होता है कि मनु धर्मविशेषज्ञ थे। महाभारत का यह श्लोक मनुस्मृति के 1.1-4 की घटना का ही वर्णन कर रहा है-

मनुमेकाग्रमासीनमधिगय   महर्षयः।

प्रतिपूज्य यथान्यायमिदं वचनमब्रुवन्॥

भगवन् सर्ववर्णानां यथावदनुपूर्वशः।

अन्तरप्रभवाणां च धर्मान्नो वक्तुमर्हसि॥ (1.1-2)

अर्थ-तत्कालीन ऋषि इस कारण ही राजर्षि मनु के पास धर्म की जिज्ञासा लेकर पहुंचे थे क्योंकि मनु अपने समय के सर्वोच्च धर्मप्रवक्ता एवं विशेषज्ञ थे।

(घ) महाभारत में अन्यत्र भी ऋषियों द्वारा राजर्षि मनु से धर्म-विषयक जिज्ञासाएं करने की घटनाओं का उल्लेख आता है। ऋषि बृहस्पति भी धर्मजिज्ञासा के लिए अन्य ऋषियों के साथ मिलकर मनु के पास जाते हैं-

प्रजापतिं श्रेष्ठतमं प्रजानां देवर्षिसंघप्रवरो महर्षिः।

बृहस्पतिः प्रश्नमिमं पुराणं पप्रच्छ शिष्योऽयं गुरुं प्रणय॥

(शान्तिपर्व अ0 201.3)

    अर्थ- एक समय ऋषियों के संघ के प्रमुख महर्षि बृहस्पति ने प्रजापालकों में सर्वश्रेष्ठ राजर्षि और गुरु मनु को प्रणाम करके उनसे धर्म-विषयक इस पुरातन प्रश्न को पूछा था।

(ङ) महाभारत में एक महत्वपूर्ण श्लोक आता है जिसमें एक ही श्लोक में तीन महत्त्वपूर्ण बातें कही हैं-1. मनु ने धर्म का प्रवचन किया था, 2. वह आदिकाल में किया था, 3. वह प्राचीन धर्मसार वेदाधारित है। श्लोक है-

धर्मसारं महाप्राज्ञ मनुना प्रोक्तमादितः।

प्रवक्ष्यामि मनुप्रोक्तं पौराणं श्रुतिसंहितम्॥

(आश्वेमधिक पर्व, अ0 92 में श्लोक 53 से आगे)

    अर्थ-मैं मनुप्रोक्त धर्म का सार तुहें कहूंगा। वह वेदाधारित है और उसे मनु ने सृष्टि के आदि में कहा था।

(च) भागवतपुराण में भी कहा है कि आदिराजा मनु ने धर्मों का प्रवचन किया था-

    यः पृष्टो मुनिमिः प्राह धर्मान् नानाविधान् शुभान्।

    नृणां वर्णाश्रमाणां च सर्वभूतहितः सदा।

    एतद् आदिराजस्य-॥    (3.25, 38, 39)

    अर्थ-उस आदिराजा मनु ने आदिकाल में मुनियों के पूछने पर वर्णों और आश्रमों के अनेक धर्मों का प्रवचन किया था। वह ब्रह्मापुत्र मनु स्वायभुव आदिराजा था।

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