कुरान समीक्षा : लड़ें या वे मुसलमान हो जावें

लड़ें या वे मुसलमान हो जावें

जब खुदा ही लोगों को अपनी सारे ताकत लगाकर मुसलमान नहीं बना सका तो बिचारे मुसलमान किस गिनती में हैं जो लड़कर लोगों को मुसलमान बना सकें? इस्लाम का प्रचार उसकी खूबियों के आधार पर नहीं बन सकता था। क्या इसलिए कुरान ने लड़कर लोगों को मजबूर करके इस्लाम स्वीकार कराने का आदेश दिया था? जिस मजहब के गुणों को देखकर लोग उसे स्वयं स्वीकार करें वह अच्छा होगा या जिसे जबर्दस्ती स्वीकार कराया जाये वह अच्छा होगा?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

कुल् लिल्-मुखल्लफी-न मिनल………..।।

(कुरान मजीद पारा २६ सूरा फत्ह रूकू २ आयत १६)

(खुदा ने कहा ऐ मुहम्मद) जो गंवार (देहाती) पीछे रह गये, इनसे कह दो कि तुम बड़े लड़ने वालों के लिये बुलाये जाओगे। तुम उनसे लड़ों या वे मुसलमान हो जावें।

समीक्षा

खुदा लड़कर मुसलमान बनाने के लिए अपने चेलों को उकसाता था इस्लाम मजहब तलवार के जोर से ही दुनियां में फैला।

लोगों नें गुण्डों से अपनी प्राण रक्षा के लिए ही मुसलमान बनना स्वीकार किया था वरना कुरान में कोई भी ऐसी खास बात नहीं हैं कि लोगों का उसकी ओर आकर्षण हो सकता। बुद्धिमान लोग अरबी खुदा और उसके नाम से बनी किताब ‘‘कुरान’’ की वास्तविकता भली प्रकार समझते हैं।

इस प्रमाण के होते हुए कोई मुसलमान यह नहीं कह सकता है कि ‘‘इस्लाम जोर जबर्दस्ती से नहीं फैलाया गया था’’। इसलिए कुरान की इस जहरीली शिक्षा से बचना ही उचित होगा।

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