क्या आर्य बाहर से आये थे : प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

गुरुकुल काँगड़ी से एक भावनाशील युवक ने दो बार चलभाष पर ‘आर्यों का आदि देश’ विषय पर लेखक से चर्चा करते हुए यह पूछा कि कोई ऐसी पुस्तक बतायें, जिसमें ‘आर्यों का आदि देश आर्यावत्र्त है’ इस विषय में अकाट्य तर्क प्रमाण दिये गये हों। उनका प्रश्र हमारे लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है, इसलिये इसे परोपकारी द्वारा मुखरित किया जा रहा है। हम यदा-कदा अपनी पुस्तकों में तथा इस स्तम्भ में एतद्विषयक प्रबल तर्क व प्रमाण देते चले आ रहे हैं। प्रबुद्ध पाठक सूझबूझ से इनको व्याख्यानों व लेखों में देकर मिथ्या मतवादियों के दुष्प्रचार का निराकरण किया करें।

जो लोग थोड़ा गुड़ डालकर अधिक मीठा चाहें, वे पं. भगवद्दत्त जी की पुस्तक ‘भारतीय संस्कृति का इतिहास’ पढ़ें। मेरे द्वारा लिखित ‘बहिनों की बातें’ पुस्तक में भी इस विषय में आकट्य तर्क दिये हैं। एक फै्रंच लेखक फें्रकायस गाटियर लिखित India’s self Denial भी पठनीय है। श्री अनवर शेख की उर्दू पुस्तकों में भी साम्राज्यवादी सूली के वेतन भोगियों केे मत का प्रबल खण्डन मिलता है।

योरुपीय ईसाई जातियों के अठारहवीं शताब्दी में भारत में घुसने से पहले विश्व के किसी भी इतिहास लेखक ने आर्यों के भारत पर आक्रमण या बाहर से भारत में आने का कहीं भी उल्लेख नहीं किया। तुर्कों, अफगानों व मुगलों के दरबारी इतिहास लेखकों ने हिन्दुओं को सग (कुत्ता), काफिर व नरकगामी आदि के रूप में बार-बार लिखा है, परन्तु फैजी अबुलफजल आदि की किसी पुस्तक में आर्यों को भारत में बाहर से आये आक्रमणकारी नहीं लिखा। इससे अधिक प्रबल तर्क  ‘भारत ही आर्यों का आदि देश है’ के लिये और क्या हो सकता है?

२. आर्यों के किसी भी ग्रन्थ में आर्यों के बाहर से भारत में आने का लेश मात्र भी कोई प्रमाण नहीं मिलता। यूँही वेद शास्त्र के वचनों को तोड़-मरोड़ कर ईसाई पादरी, सरकारी लेखक यह मनगढ़न्त मत थोपते चले आ रहे हैं। जवाहरलाल जी नेहरू आदि अंग्रेजी पठित लोगों ने हीन भावना से इस मिथ्या मत को खाद-पानी देकर और बढ़ाया।

३.महर्षि दयानन्द जी महाराज पहले ऐसे भारतीय विचारक, महापुरुष और राष्ट्र नायक हैं, जिन्होंने सूली व सरकार के चाकर इतिहास लेखकों के इस मनगढ़न्त मत को चुनौती दी। ऋषि की शिष्य परम्परा में आचार्य रामदेव जी, डॉ. बालकृष्ण जी, पं. धर्मदेव जी, पं. भगवद्दत्त जी, वैद्य गुरुदत्त जी आदि प्रकाण्ड इतिहासज्ञ और विद्वानों ने इस मिथ्या मत की धज्जियाँ उड़ा दीं। अंग्रेजों के शिष्य राजेन्द्र लाल मित्र (गो-मांस भक्षण के प्रबल पोषक) को भी यह लिखना पड़ा कि स्वामी दयानन्द वेदों के अद्वितीय बेजोड़ विद्वान् थे। उनके दृष्टिकोण को हिन्दू समाज ने आज कुछ समझा है, अन्यथा अभागा हिन्दू तो स्वामी विवेकानन्द जी के शिकागों के अंग्रेजी भाषण का ही ढोल पीटता रहा। जब स्वामी विवेकानन्द ने ही मैक्समूलर की प्रशंसा के पुल बाँध दिये तो फिर भारतीय स्वाभिमान की रक्षा कैसे हो?

४. सब जातियाँ अपनी विजयों, उपलब्धियों पर इतराते हुये उनकी चर्चा करती हैं, अपने वीरों का यशोगान करती हैं। भारत विजय यदि आक्रमणकारी आर्यों ने की तो कहाँ-कहाँ लड़ाई हुई? कौन तब आर्यों का सेनापति था? किसी विजय का कोई स्मारक तो दिखाया जाये। वे आर्य जो अथर्ववेद के भूमिसूक्त की ऋचायें गाते आये हैं, उन्होंने उस भूमि, उस देश, उस प्रदेश, उन नदियों, पर्वतों को कैसे सर्वथा सर्वदा के लिये बिसार दिया-जहाँ से वे भारत में आये?

५. इस्लाम मक्का से आया। ईसाई मत यरूशलम से निकला। संसार भर के नमाजी मक्का, मदीना की ओर मुँह करके नमाज पढ़ते हैं। ईसाई रोम की यात्रा को जाते हैं, परन्तु आर्य जाति ने तो सागर पार जाना ही पाप मान लिया। आर्यों का आदि देश भारत ही है-इसका इससे बड़ा तर्क व प्रमाण क्या हो सकता है?

६. परकीय मतों के पवित्र व ऐतिहासिक स्थल सब भारत से बाहर हैं। हिन्दुओं के सब स्थल अखण्ड भारत में ही हैं। कोई भी भारत से बाहर नहीं। आशा है कि इतने से प्रश्रकत्र्ता आर्य युवक का काम चल जायेगा। हिन्दू अब भी कृतज्ञता से ऋषि दयानन्द का कहाँ गुणगान करता है कि उस ऋषि ने इस महान् सांस्कृतिक आक्रमण का प्रतिकार इस ढंग से किया कि आज यूरोप व अमरीका के विद्वान् उसके शंखनाद को सुनकर हमारी मान्यताओं को सत्य सिद्ध कर रहे हैं। अमरीकन लेखक की पुस्तक Glory of the Vedas इसका एक प्रबल प्रमाण है।

७. प्रसंगवश हम बतादें कि राजेन्द्र लाल मित्र के जिस पत्र की ऊपर हमने चर्चा की है, वह हमारे प्रकाण्ड विद्वान् विरजानन्द जी ने खोज कर हमें दिया। हमने उसकी छायाप्रति छपवा दी है।

2 thoughts on “क्या आर्य बाहर से आये थे : प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु”

  1. अपने इतना कुछ लिख तो दिया परन्तु जो आर्य प्रश्नकर्त्ता ने पूछा था/ जानना चाहा था; उसका उत्तर तो दिया ही बहीं! यह कैसी जिज्ञासा शान्ति हुई? आङ्गल भाषा में कहें तो इसे कहते हैं To beat abut the bush। क्या यही नहीं किया है आपने?

    डा० रणजीत सिंह​

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *