‘‘आर्य भारत में बाहर से आये’’ : यह मान्यता देशद्रोह है : डॉ धर्मवीर

 

लोकसभा में संविधान दिवस के प्रसंग में बहस करते हुए मल्लिकार्जुन खडगे ने कहा- आर्यों ने भारत पर आक्रमण करके हम लोगों को दलित और शोषित बनाया। हम आपके अत्याचारों को पिछले पाँच हजार वर्षों से सह रहे हैं। हम आपका मुकाबला करते रहेंगे। खडगे ने भाजपा को बाहर से आकर इस देश पर राज्य करने वाली पार्टी बताया। इस बात की गभीरता को आर्यसमाज के अतिरिक्त कोई नहीं समझ सकता। संसद सदस्य स्वामी सुमेधानन्द बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने खडगे के वक्तव्य का लिखित में विरोध किया और कार्यवाही से निकलवा दिया। हमें खडगे को भी धन्यवाद देना चाहिए, जिन्होंने इस देशद्रोही विचार की गभीरता को संसद में अपने वक्तव्य के माध्यम से प्रकाशित किया।

बहुत वर्ष पूर्व भी एंग्लो इण्डियन राज्यसभा सदस्य ने इस प्रकार का प्रश्न उठाया था, परन्तु उस समय किसी ने इस विचार की घातकता को समझा नहीं था। उस समय मान्य सदस्य ने सदन में कहा था- भारतीयों को अंग्रेजी भाषा से द्वेष नहीं करना चाहिए, क्योंकि संस्कृत भी भारतीयों के लिये विदेशी भाषा है। यह भारत में बाहर से आये आर्यों की भाषा है। जब इस देश के लोग संस्कृत से प्रेम करते हैं, तो फिर विदेशी भाषा के नाम पर अंग्रेजी से द्वेष क्यों करते हैं? आर्यों का भारत में बाहर से आकर बसने का विचार अंग्रेजों के मस्तिष्क की उपज है। भारत पर आक्रमण मुसलमानों ने भी किया और देश को पराधीनाी किया था। उन्होंने यहाँ की सयता, संस्कृति को बलपूर्वक नष्ट करने का प्रयत्न किया। अंग्रेजों ने इस देश को दास बनाया और यहाँ की सयता, संस्कृति को बुद्धिपूर्वक नष्ट करने की योजना बनाकर कार्य किया। मल्लिकार्जुन खडगे इस षड्यन्त्र के शिकार बने हैं।

अंग्रेज आज भी इस देश को खण्डित करने के प्रयासों में लगे हैं। प्रमुख रूप से इस्लाम और ईसाइयों के माध्यम से धर्म परिवर्तन द्वारा तथा दूसरे रूप से माओवादी हिंसा फैलाकर देश में अराजकता उत्पन्न करने के प्रयासों द्वारा व्यापार व आधुनिकता के नाम पर समाज में नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों के नाश करने के उपायों द्वारा तथा भारत में आर्य- द्रविड़ संघर्ष के काल्पनिक सिद्धान्त का उपयोग कर पाश्चात्य योरोप अमेरिका की शक्तियाँ चर्च एवं व्यापार द्वारा हिंसा, असन्तोष फैलाकर फिर से ईसाइस्तान, इस्लामिस्तान, द्रविड़स्तान तथा माओवाद के नाम से नक्सलियों के राज्य के रूप में इस देश के विभाजन का प्रयास अपनी पूरी शक्ति से करने में लगे हुए हैं। अन्य प्रयासों की चर्चा का प्रसंग यहाँ नहीं है। जहाँ तक खडगे का प्रश्न है, इसे तो स्वतन्त्रता के साथ ही समाप्त किया जाना चाहिए था, परन्तु गत साठ वर्ष के शासन ने खडगे की पार्टी का ही समर्थन किया, जो भारतीय परपराओं का, संस्कृति का और भाषा का नाश करने को ही देश की प्रगति का मूल मन्त्र समझती थी। इनकी दृष्टि में अंग्रेज और अंग्रेजी ही प्रगति के पर्याय हैं। परिणामस्वरूप हमारे शासन में आदिवासी जैसे शदों का प्रयोग किया जाता है। आदिवासी शद का प्रयोग करना अपने आपको बाहर से आया स्वीकार करना। इन शदों के अर्थों को हमने आज तक समझा नहीं, इसी कारण अपनी रक्षा में इस मिथ्या मान्यता को स्थान दिया हुआ है। हमारे बच्चे आज भी यही पढ़ते हैं कि इस देश में आर्य बाहर से आये और यहाँ के मूल निवासी द्रविड़ लोगों को पराजित कर दक्षिण में भगा दिया और अपना शासन स्थापित किया। इस मिथ्या मान्यता को इतना प्रचारित किया गया कि भारतीय संसद में कांग्रेस के नेता खडगे इस मान्यता के प्रवक्ता बन खड़े होने में अपना गौरव समझने लगे, अपने आपको द्रविड़ मूल और आर्य से भिन्न अनार्य मनाने लगे।

आज हमारे लिये एक अवसर आया है, जिसका लाभ उठाकर हमें अपनी शिक्षा से इस मान्यता को बहिष्कृत कर देना चाहिए तथा प्रशासन शदावली से आदिवासी जैसे शदों का प्रयोग निषिद्ध कर देना चाहिए। खडगे यदि आर्यों से भिन्न होते तो उनका नाम मल्लिकार्जुन नहीं होता। यदि खडगे भाजपा को विदेशी मानते हैं, तो वे श्रीमती सोनिया गाँधी को क्या कहेंगे, जिसके वे सेनापति बने हुए हैं? खडगे जी इस देश के नागरिक हैं, अपने देश से निश्चय ही प्रेम होगा, तो उन्हें इस आर्य-अनार्य सिद्धान्त और षड्यन्त्र को समझना चाहिए।

प्रथम बात किसी के लिये भी जानने की यह है कि आर्य-अनार्य शद जातिवाचक नहीं, गुणवाचक हैं, क्योंकि कृण्वन्तो विश्वमार्यम् कहते हुए वेद कहता है- सपूर्ण रूप से आर्य बनो और सब को आर्य बनाओ। जब सबको आर्य बनाया जायेगा, तब खडगे जी अनार्य कैसे रह पायेंगे? आर्य-अनार्य शद अच्छे और बुरे के अर्थ में हैं। मनु कहते हैं- इस देश में आर्य और दस्यु अर्थात् अनार्य रहते हैं, क्या खडगे जी अपने को चोर, डाकू कहलाना पसन्द करेंगे? क्या चोर, डाकू, लूटेरों की कोई जाति होती है? क्या इनके लिये संविधान, कानून, पुलिस, होती है? फिर ऐसी निरर्थक विचारधारा के लिये खडगे जी अपने को उनका प्रतिनिधि कैसे कह सकते हैं? भारतीय संस्कृति, साहित्य, परपरा से आर्य वे हैं, जो लोग श्रेष्ठ परपरा के धनी हैं। वेद और वैदिक धर्म स्वीकार करते हैं, वे सभी आर्य है। कोई भी आर्य बन सकता है, किसी को आर्य कह सकते हैं। हमारी आर्य परपरा में एक पत्नी अपने पति को आर्य-पुत्र कहकर पुकारती है। पाश्चात्य लोगों ने आर्य-अनार्य सिद्धान्त की कपोल कल्पना की, जिसका उद्देश्य भारतीय समाज में विभाजन उत्पन्न करना था। आर्य-अनार्य का विचार, आर्य भारत में बाहर से आये हैं- यह सिद्धान्त विद्वानों, वैज्ञानिकों की दृष्टि में खण्डित हो चुका है, परन्तु योरोप-अमेरिकी पक्ष इसका पूरा उपयोग इस देश को बांट ने में करने में लगा हुआ है। इस षड्यन्त्र को सबसे पहले ऋषि दयानन्द ने समझा था और उन्होंने अपने ग्रन्थों में इस सिद्धान्त का स्पष्ट रूप से खण्डन किया था। ऋषि दयानन्द ने लिखा- आर्यों का बाहर से भारत में आने का, भारतीय साहित्य के किसी भी ग्रन्थ में उल्लेख नहीं मिलता। यदि आर्य बाहर से आकर भारत में बसे होते तो इतने बड़े ऐतिहासिक सन्दर्भ का उल्लेख उनके साहित्य में न हो, यह असभव है। किसी देश से आकर बसने की घटना उस समाज में निरन्तर स्मरण की जाती है। आज कोई पाकिस्तान से उजड़कर आया, कोई आक्रमणकारी के रूप में आया, दोनों का इतिहास मिलता है। समाज में कथायें मिलती हैं, परपरायें मिलती हैं, पुराने रीति-रिवाज, जीवन शैली के अंश मिलते हैं, क्या आर्यों की कोई परपरा किसी तथाकथित मध्य एशिया या किसी अन्य देश में मिलती है? क्या आर्यों की भाषा मौलिक रूप से किसी दूसरे देश में बोली जाती है या इतिहास में पाई जाती है? इतना ही नहीं, इतनी बड़ी जाति का संक्रमण एक दिन में तो नहीं हो सकता, उसके उस स्थान से चलकर यहाँ तक पहुँचने के मार्ग में उनके चिह्न, अवशेष तो मिलने चाहिए। यदि बाहर से चलकर भारत को आर्यों ने जीता था, तो क्या बीच के देश उन्होंने बिना जीते ही छोड़ दिये थे? यदि जीते थे तो आज वहाँ उनका अस्तित्व क्यों नहीं है, वहाँ उनका राज्य क्यों नहीं है? आर्यों के इतिहास, संस्कृति के अवशेष वहाँ क्यों नहीं पाये जाते?

ऋषि दयानन्द कहते हैं- भारतवर्ष में सबसे पहले आकर निवास करने वाले आर्य ही हैं। शास्त्रों की, ऋषि दयानन्द की मान्यता है कि जब इस पृथ्वी का निर्माण हुआ, सपूर्ण जलमय संसार में से पृथ्वी का जो भाग सबसे पहले जल से बाहर निकला, वह तिबत था तथा सबसे ऊँचा होने के कारण उसी भाग पर मनुष्यों की सृष्टि सबसे पहले हुई। जो मनुष्य वहाँ से उतरकर सबसे पहले भारत आये और जिन्होंने इस देश को बसाया, वे ही लोग आर्य कहलाये। शेष संसार में यहीं से लोगों का जाना हुआ है। बाहर से इस देश में आने की बात मनगढ़न्त, मिथ्या और षड्यन्त्रपूर्ण है। विश्व साहित्य में आर्यों का बाहर भारत में आना लिखा नहीं मिलता, हाँ विश्व के अनेक ग्रन्थों में जिनका पुराना इतिहास मिलता है, उनमें उनके पूर्वजों का भारत से आकर वहाँ निवास करना लिखा मिलता है। ईरान के इतिहास और धर्म ग्रन्थ जिन्द अवेस्ता में उनके पूर्वजों का भारत से जाकर ईरान में वास करने का उल्लेख मिलता है। जब कोई देश जाति किसी पर विजय प्राप्त करती है तो वह अपने उल्लास और हर्ष को प्रकाशित करने के लिये अनेक प्रकार के आयोजन करती है, उसे स्थायी बनाने के लिये इतिहास लिखती है। शिलालेख, ताम्र लेख, स्तूप, स्तभ, भवन, स्मारक बनाये जाते हैं, परन्तु पूरे भारत में इस प्रकार का कोई उल्लेख नहीं मिलता, कोई चिह्न भी नहीं मिलता। इससे पता लगता है कि यह एक कपोल-कल्पना है, जो एक षड्यन्त्र के माध्यम से की गई है। इसके विपरीत ब्राह्मण ग्रन्थ, मनुस्मृति आदि प्राचीन ग्रन्थों में आर्यों के तिबत से भारत में आने, अनेक युद्ध जीतने आदि का विवरण मिलता है, परन्तु मध्य एशिया या किसी अन्य देश से भारत में आकर बसने का, यहाँ के मूल निवासियों को निकाल कर  उनका राज्य छीनने का कोई उल्लेख प्राचीन भारतीय शास्त्रों, साहित्य या इतिहास के ग्रन्थों में नहीं मिलता, अतः आर्यों द्वारा द्रविड़ों पर आक्रमण की कल्पना मिथ्या षड्यन्त्र मात्र है।

जिन्हें हम द्रविड़, दलित, शूद्र मान रहे हैं, वे किस अर्थ में आर्यों से भिन्न हैं? भारतीय हिन्दू समाज के सवर्ण-असवर्ण दोनों ही अंग हैं। दोनों के गोत्र एक से हैं, परपरायें, खान-पान, वस्त्र, आभूषण, पहनावा- सभी कुछ एक जैसा है। सभी के देवी-देवता, धर्मग्रन्थ, उपास्य, उपासना पद्धति- सब एक जैसे हैं। सभी राम, हनुमान, शिव, गणेश आदि की पूजा-उपासना करते हैं। व्रत, उपवास, संस्कार साी कुछ पूरे समाज का एक दूसरे से मिलता है। सपन्नता-निर्धनता के आधार पर सभी में परस्पर स्वामी-सेवक सबन्ध पाया जाता है, अतः समग्र रूप में समाज एक है। यदि कोई अन्तर है तो विद्या या अविद्या का, सपन्नता या निर्धनता का, अन्याय या न्याय का अन्तर और परिणाम देखने में आता है। यह सभी समाजों में स्वाभाविक रूप से देखा जा सकता है। इसका मूल कारण भारतीय समाज का जन्मना जाति स्वीकार करने का दुष्परिणाम है। यह अज्ञान, अविद्या, पाखण्ड, शोषण, सवर्ण-असवर्ण, जन्मना जाति, ऊँच-नीच, छुआछूत के परिणामस्वरूप, जिसका पाश्चात्य लोग लाभ उठाकर समाज में विरोध और द्वेष उत्पन्न करने का प्रयास कर रहे हैं। अंग्रेजों ने पं. भगवद्दत्त के पास भी अपना सन्देश वाहक भेजा था- वे अपनी पुस्तकों में लिख दें कि जाट लोग इस देश में बाहर से आर्य के रूप में आये हैं, परन्तु पण्डित जी ने दृढ़ता से इसका निषेध कर दिया। जहाँ आर्य विद्वानों ने निषेध किया, वहीं पर धन व प्रतिष्ठा के लोभी लोगों ने अंग्रेजों की इच्छानुसार लेखन भी किया।

इस षड्यन्त्र को ऋषि दयानन्द ने समझा था और इसका सप्रमाण प्रतिकार भी किया था। सामान्य रूप से आर्यावर्त्त की सीमा मनु के श्लोक ‘आसमुद्रात्’ से निष्पादित करते हैं, विन्ध्याचल से सतपुडा की ओर हिमालय के मध्य आर्यावर्त की सीमा पढ़ते हैं, परन्तु इसी श्लोक के अर्थ ऋषि दयानन्द पूर्व-पश्चिम पर्वत शृंखला के मध्य रामेश्वरम् पर्यन्त स्वामी जी आर्यावर्त की सीमा का उल्लेख करते हैं। यहाँ एक घटना का उल्लेख प्रमाण रूप में ठीक होगा। स्वामी श्रद्धानन्द ने पं. लेखराम की जीवनी लिखते हुए एक घटना लिखी है कि सरस्वती हषद्वती नदियाँ आर्यावर्त की सीमा बनाती है और पं. लेखराम का ग्राम सरस्वती के दूसरी ओर पड़ता था, तो पण्डित लेखराम कहा करते थे- मेरे गाँव की इस ओर की नदी सरस्वती नहीं है, मेरे गाँव के बाद बहने वाली नदी सरस्वती है, जिससे उनका गाँव भी आर्यावर्त में आ जाता था। सचमुच में भारत में रहने वाले आर्य का गाँव आर्यावर्त से बाहर हो तो अच्छा तो नहीं लगेगा। इसी तर्क को लेकर मैंने एक बार अपने पिता जी से कह दिया- आपका गाँव आर्यावर्त में नहीं आता, एक क्षण वे स्तध हुए और अगले ही क्षण बोले- तू नहीं जानता, मेरा गाँव आर्यावर्त में है क्योंकि जो संकल्प पाठ उत्तर भारत के गाँव-नगर में किया जाता है, वही मेरे गाँव मेंाी आदि काली से हो रहा है- आर्यावर्ते जबू द्वीपे भरत खण्डे- सचमुच में उनका प्रमाण अकाट्य था।

ऋषि दयानन्द ने वे दोत्पत्ति प्रकरण, वे दोत्पत्ति काल के निर्धारण में भारतीय समाज में श्रेष्ठकर्म करने के समय पढ़े जाने वाले संकल्प का उल्लेख किया है, उसमें जब –आर्यावर्ते जबू द्वीपे भरत खण्डे- शदों का पाठ करते हैं, तो सिद्ध है इस देश में आने वाले पहले लोग आर्य ही हैं और उन्होंने ही इस देश का नाम आर्यावर्त रखा। इस देश के बदले गये बाद के नामों की चर्चा तो मिलती है, परन्तु आर्यावर्त या ब्रह्मवर्त से पहले के किसी भी नाम की चर्चा विश्व इतिहास में नहीं मिलती, अतः यह कहना कि भारत में आर्य बाहर से आये- यह पाखण्डपूर्ण कथन है। भारत में आर्य बाहर से आये- यह कहना वदतो व्याघात अर्थात् परस्पर विरोधी है, क्योंकि इस देश का भारत नामकरण भी आर्यों का है, फिर भारत में आर्यों का बाहर से आना कैसे बनेगा।

खडगे ने लोकसभा में आर्यों के बाहर से आने की जो बात कही, उसका कारण है, आजकल किया जाने वाला दुष्प्रचार। भारत जातिगत आधार पर जो आरक्षण किया गया है, इसको आधार बनाकर इस आन्दोलन को इस देश में चलाया जा रहा है। इसके लिये अमेरिका, योरोप का ईसाई समुदाय बड़ी मात्रा में धन उपलध कराता है। इस कार्य को करने वाले संगठन भारत में बामसेफ और मूल निवासी परिषद् है। पाश्चात्य लोगों ने ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, योरोप के अनेक विश्वविद्यालयों में इस मूलनिवासी लोगों के इतिहास के अनुसन्धान के लिए अनेक शोधपीठ भी स्थापित किये हैं, जिनमें डी.एन.ए तक मूल निवासियों का आर्यों से पृथक् होने की बात कही गई है। ये संगठन ज्योतिबा फूले और डॉ. अबेड़कर के नाम से लोगों को हिन्दू समाज से अलग करने का प्रयास करते हैं। दलित प्रकाशन के नाम से प्रकाशित दो सौ से भी अधिक पुस्तकों में यही समझाने का प्रयास किया है कि स्वतन्त्रता संग्राम का दलितों से कुछ लेना-देना नहीं है, दलितों का उद्धार अंग्रेजों ने किया है। डॉ. अबेडकर ने ही उनके लिये कार्य किया है, समाज में सवर्ण कहलाने वाले लोगों ने उनका शोषण किया है। अंग्रेज शासन उनके लिये अच्छा था, स्वतन्त्रता संग्राम तो सवर्णों की अपने अधिकारों की लड़ाई थी, चाहे रानी झाँसी की लड़ाई हो या महाराणा प्रताप व शिवाजी की। इनके साहित्य में ऋषि दयानन्द या स्वामी श्रद्धानन्द और आर्यसमाज या किसी अन्य संस्था द्वारा किये समाज सुधार की चर्चा नहीं मिलती। इनके साहित्य में ऋषि दयानन्द को ब्राह्मण और सवर्णों का पक्षधर कहकर निन्दा की गई।

वर्तमान में इस कार्य को करने वाले दो संगठन हैं- एक बामसेफ और दूसरा है- मूल निवासी परिषद्। ये निरन्तर दलित जातियों में भारत विरोधी, सवर्ण और असवर्ण के मध्य पृथकतावादी प्रवृत्ति बढ़ाने का कार्य करते हैं। इसके लिये इनका सैंकड़ों की संया में साहित्य प्रकाशित कर वितरित किया जाता है। इसी प्रकार की फिल्में बनाकर दिखाई जाती हैं। प्रतिवर्ष देश के विभिन्न भागों में इनके अधिवेशन होते हैं, जिनमें दलित समाज के लोगों को भाग लेने के लिये प्रेरित किया जाता है। सवर्ण या भिन्न विचार के लोगों को ये लोग अपने कार्यक्रम में भाग लेने की अनुमति नहीं देते। पुस्तक मेलों में दलित प्रकाशनों की दुकानों पर बिकने वाले साहित्य से इस बात को समझा जा सकता है।

इस कार्य को करने वाली संस्था बामसेफ, जिसका पूरा नाम ऑल इण्डियन बैकवर्ड एंड माइनॉरिटीज एप्लाइज फैडरेशन है, जिसका निर्माण बहुजन समाजवादी पार्टी के संस्थापक कांशीराम और डी.के. खापडे ने अमरीकी सहायता से 1973 में किया था। इसका उद्देश्य आरक्षण का लाभ उठाकर भारतीय समाज में सवर्ण-असवर्ण की खाई को गहरी करना और समाज में विघटन के बीज बोना था। सामाजिक लोगों को अभी तक इसका विशेष परिचय नहीं है। जो परिचित भी हैं, वे इनके कार्य को विशेष महत्त्व नहीं देते, परन्तु खडगे ने संसद में बता दिया, यह विचार समाज में तेजी से घर कर रहा है। समाज और सरकार को इसका निराकरण करने के लिये सक्रिय होना होगा।

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक आर्य के अतिरिक्त अपने देश के लिये इतने सुन्दर शदों का प्रयोग कोई कर सकता है, जैसा राम ने किया था। राम ने कहा- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। इतना ही नहीं, आर्यों ने अपने भारतवर्ष को देवताओं के लिये भी ईर्ष्या का कारण बताया-

गायन्ति देवाः किल गितकानि

धन्यास्तु ते भारत भूमिभागे

स्वर्गापवर्गास्पद मार्गभूते

भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्।

– धर्मवीर

11 thoughts on “‘‘आर्य भारत में बाहर से आये’’ : यह मान्यता देशद्रोह है : डॉ धर्मवीर”

  1. आर्यों को बाहर आनें वालो ” आर्य ” शब्द के गुणात्मक पहलू पर विचार करोगे तो आप अनार्य नहीं बनना पसन्द नहीं करोगे । मल्लिकार्जुन खड़गे जी , सँसद में क्या बोलना है और क्या नहीं बोलना , यह कानून बनानें वालों को शोभा नहीं देता । क्या आप आर्यों की सन्तान हो या अनार्यों की ? इसका जवाब सँसद में ज़रूर देना ताकि विश्व जान सके ।।

  2. शानदार लेख….
    महत्वपूर्ण जानकारी के लिए धन्यवाद

  3. 21 / 5 / 2001 को DNA के माध्यम से सायन्स रिसर्च से ये सिद्ध हो गया है की आर्य ब्राह्मण भारत के मूलनिवासी नही है । ब्राह्मण लोग भारत में विदेशी वंश के लोग है । ब्राह्मणों का डीएनए यूरेशिया प्रान्त के ऑक्सीमोझी के लोगो से मिलता है । ये बात डॉ. मायकेल बामशाद की टीम ने अमेरिका की उटाह यूनिव्हरसिटी में डीएनए रिपोर्ट से ये सिद्ध कर दिया की ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य ये भारत के मूलनिवासी नही है । ये बाहर से आये हुए लोग है ।

    1. shankar pacherwaal ji
      lagta hai aap doctor ho yaa scientist ho janab…. tabhi to sabhi kaa DNA check kar liya… suno pahle hame yah batlana ki bharat ke kitne naam hain??? aur kaun kaun ??? kis kaaran se bharat kaa ye naam pada ??? thoda jaankaari dena fir charchaa karenge….. maine jo sawal kiya hai uskaa jawab dena ji… aur aarya kise bolte hain ye bhi batlana ji… aapke jawab ke intjaar me… fir charchaa karenge ham… dhanywaad

      1. 21th century me aap DNA report ko jhuta nhi bol skte …aur apko jarurat hai ki aap thoda sa samay de scientific facts n research janne ke liye….this is the age of science….aur sirf kuch kitabo me likha hai jo kai varsho phle usko aap satya mante ho jo samne h use jhuta to shyd apko yeh baat smjh me na aye …..
        Aur is lekh me jo deshdrohi shabd ka upyog kiya gya h vah anuchit hai…agr aap thoda alag soch rkhteho to usko aap desh ya rashtravad se q jodte ho …. kya desh ke prati kuch glt kaha hai …aur agr esa h to jitne bhi kattar hindu hai ve bhi deshdrohi ho jayge qki ve bhi yaha reh rhe muslim adi ko videshi hi kehte h…..

        1. anshul bhai jaan
          hamne shankar ji naam hai shayad unhe kya bola thaa “shankar pacherwaal ji
          lagta hai aap doctor ho yaa scientist ho janab…. tabhi to sabhi kaa DNA check kar liya… suno pahle hame yah batlana ki bharat ke kitne naam hain??? aur kaun kaun ??? kis kaaran se bharat kaa ye naam pada ??? thoda jaankaari dena fir charchaa karenge….. maine jo sawal kiya hai uskaa jawab dena ji… aur aarya kise bolte hain ye bhi batlana ji… aapke jawab ke intjaar me… fir charchaa karenge ham… dhanywaad”

          aapka bolna hai ki “21th century me aap DNA report ko jhuta nhi bol skte …aur apko jarurat hai ki aap thoda sa samay de scientific facts n research janne ke liye….this is the age of science… aap mere comment me batao ki hamne kab bola ki DNA kaa report galat hogaa. mera bolna yah hai ki ek hi report ko kai tarah se jaankaari di jaati hai… aur jab sristi huyi thi us samay hajaro manushy huye thee to un sabkaa DNA ek kaise ho sakta hai…. yadi aap puraan parho usme bhi isi tarah ki hai shayad… ved parho sab me is tarh ki aapko mil jaani chahiye… ham wah maante hai jo tark ke aadhaar par sahi ho.. bina tark ke aadhaar par sahi nahi maante jaise ek anguli chand ki aor kiya to chand ke 2 tukade ho gaye… maryam bina sex kiye maa ban gayi.. kya koi maa bina sex kiye yaa sperm aur ovum mile ban sakti hai ??? are ham to khud vigyaan ki baat karte hain bhai jaan… aap hame nasihat naa de do achha rahegaa… vigyaan bhi tark aur praman ki baat karte hai aur ham bhi…

          janab aap hame bharat kaa jo 4 naam hai uske baare me bataye fir aage aapse charchaa ki jaayegi….
          aapke jawab ki prakishaa me…
          dhanywaad

  4. Agar Vaidik log Bhartiy mulke hai to Hurrian Lingual Mitannise unka kya sambandh hai?
    Agr wo mul Bhartiy vanshke hai to European jaise Gore kyu hote hai Dvij?
    Manavvanshke adharpar aap kisi vishesh vanshko Aryan race kah sakte ho kya?

    1. raaj bansode ji
      “Agar Vaidik log Bhartiy mulke hai to Hurrian Lingual Mitannise unka kya sambandh hai?” filhaal is baare me maine khojbin nahi ki hai is kaaran is baare me koi comment nahi karunga… bhartiy koi nahi bol raha mere bandhu european ityaadi county ko…. aur yah jo bol rahe ho … ” European jaise Gore kyu hote hai Dvij?” bhai iskaa kaaran hai climate.. jalwaayu… yah khud socho ji kaashmir ke log gore hote hain… jaankari jyada nahi dunga…. africa me kaale kyu hote hain…. sawal karne se pahle thoda soch liya kare manywar….”Manavvanshke adharpar aap kisi vishesh vanshko Aryan race kah sakte ho kya?” manyawar pahle yah pata kare aarya kise bolte hain kya arth hota hai… fir aaye charchaa kare,,, itna samay nahi ki aapko bachhe ki tarah samjhaaya jaa sake…hamare paas samay ki aabhav rahata hai… dhanywaad

    2. Raaj jee,

      Har kisi sanskriti mein kuch samyata hoti hai. Par european aur aryan mein koi samyata nahi milti. Naa bhasha naa vichar naa hi dharma. European Isa(jesus) ko ishwar mante hai. Bharat mein bahot sare ishwaro ki manyata hai. Arya mein ek hi ishwar ki manyata hai.

      Jahan baat hai tamil aur yezdi mein bhi bahot saree manyata milti julti hai par unka DNA nahi milta. Aur, Tamil log Adam ko nahi mante par Yezdi log mante hai.

      Aur har dvij gora nahi dikhta. Koi geruhe to koi bilkul kaale bhi hote hai. Ye sare research mein koi dum nahi hota. Kyonki, Kal esa research bhi milega ki Dalit bhi yahan ke nahi the.

      – Dhanyawaad

  5. अगर आर्य अपने आप को विदेशी नही मानते है तो जाती प्रथा क्यों बनाई । शुद्रो को पशु से बदतर जीवन जीने के लिए मजबूर क्यो किया । तालाब का पानी कुत्ते बिल्ली पी शकते थी लेकिन एक शुद्र नहीं क्यो ? इतना सितम उन पर क्यो ढाये । शिक्षा का अधिकार क्यो नही दिया । कपड़े तक नही पहन शकते थे । अरे अपने आपको देशभक्त कहने वालों अगर थोड़ी भी शर्म अगर बची है तो तुम मूल निवासीओ का इतना विरोध न करते । आगे की बात छोड़ो…. अभी भी देश मे चारो ओर आप लोगो ने जो आतंक मचाया है वो क्या है । इस से साबित होता है कि आप इस देश के नही हो । मूल निवासी ओरतो पर बलात्कार करना और जिन्दा जला देना ओर मूल निवासियो की पूरी बस्ती जला देने बाले काम कोई विदेशी ही कर शकता है ।

    1. hamare varn vayvasthaa ke article parhe…. aapko sab jaankaari mil jaayegi…. aur yah pramanit karo ki aary videshi the….arya kise bolte hain yah batlana … yah bhi batlana bharat ke kitne naam hai aur kyu pada… fir aage charchaa karenge …

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