जिगर का खून दे देकर ये पौधे हमने पाले हैंःराजेन्द्र जिज्ञासु

जिगर का खून दे देकर ये पौधे हमने पाले हैंः- एक बार माननीय डॉ. धर्मवीर जी ने आज पर्यन्त आर्यों पर चलाये गये अभियोगों का इतिहास क्रमशः प्रकाशित करने की घोषणा की थी। मैंने कई आर्य विद्वानों पर चलाये गये अभियोगों पर कई अंकों में लिखा था। किसी समाज ने, किसी सज्जन ने परोपकारी को कोई जानकारी न ोजी। मैंने भी लिाना बन्द कर दिया। आर्यों पर सर्वाधिक अभियोग मिर्जाइयों ने चलाये। किस-किस की चर्चा करूँ? मैंने दसवीं की परीक्षा दी थी या कॉलेज में प्रवेश पाया ही था कि रबे कादियाँ जी (इन्द्रजीत जी के कुल के एक निडर अद्भुत वक्ता) ने गुरुद्वारा गोबिन्दगढ़ (मन्दिर के साथ) कादियाँ में मिर्जाइयों का उत्तर देने के लिए एक जलसा किया था। रब जी का और मेरा भाषण हुआ। श्री राम शरण प्रेमी आर्य कवि की पुरजोश कवितायें हुईं। मिर्जाइयों ने धर्म निरपेक्षता की आड़ में हम तीनों को जेल भिजवाना चाहा। रब जी ने सूझबूझ से डी.सी. के सामने हम तीनों का पक्ष रखा। हमारा कुछ न बिगाड़ा जा सका। मेरे पिता जी को पता ही न चला कि मेरे ऊपर केस बनने वाला है।
कादियाँ में ऐसी घटनायें प्रायः घटती रही हैं। सन् 1996 में स्वामी सपूर्णानन्द जी ने पं. लेखराम जी के बलिदान पर मेरा खोजपूर्ण ओजस्वी भाषण करवाया। तब पुलिस सक्रिय हो गई। मुझे कम से कम दो वर्ष तक जेल में भिजवाने पर मिर्जाई तुले बैठे थे। स्वामी सपूर्णानन्द जी मेरे साथ जेल जाने को तैयार बैठे थे। हम फिर बच गये।
पं. निरञ्जनदेव जी पर और रब जी पर इसी विषय का कांग्रेस ने तुष्टीकरण व वोट बैंक के लिये लबा केस चलाकर दोनों को बहुत यातनायें दीं। हमने वे भी हँसते-हँसते सहीं। पं. शान्तिप्रकाश जी पर पं. लेखराम जी के बलिदान विषयक इल्हामों की शव परीक्षा पर ऐतिहासिक केस चला था। श्री महाशय कृष्ण सरीखे नेता पण्डित जी की पेशी पर लाहौर से गुरदासपुर आते रहे। स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी और दीवान बद्रीदास के कुशल नेतृत्व में आर्य समाज एक बार फिर अग्नि परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ। पं. शान्तिप्रकाश भट्टी से कुन्दन बनकर निकले। हाईकोर्ट से पण्डित जी बड़ी शान से केस जीत गये।
हाथों में हथकड़ियाँ, पाँवों में बेड़ियाँ डाली गईं। टाँगों में घावों के कारण लहू बह रहा था, तब जेल से बाहर आने पर झंग (पश्चिमी पंजाब) में रामचन्द्र जी (स्वामी सर्वानन्द जी) ने आपकी पट्टी की। किस-किस केस व अग्नि-परीक्षा का उल्लेख किया जावे? हमने लहू देकर वाटिका को सींचा है। रक्तरंजित इतिहास रचा है।
अब इतिहास प्रदूषणकार एक उठता है, वह मिर्जाइयों की बोली बोलकर लिखता है कि मिर्जाई मत का खण्डन पं. लेखराम का उद्देश्य था, जबकि पं. लेखराम जी ने सदा आत्म रक्षा में ही लिखा। यह कोर्टों व सरकार ने माना। ईद के दिन पण्डित जी की हत्या कतई नहीं हुई। यह मिर्जाई प्रचार सर्वथा मिथ्या है। एक मिर्जाई चैनल भी सुना है कि विदेश से यही प्रचार करता चला आ रहा है। उ.प्र. के कई युवकों ने उनके दुष्प्रचार का परोपकारी में उत्तर देने के लिए उनकी सामग्री भेजी है। उनके स्वर में स्वर मिलाकर ‘आर्य सन्देश’ के 28 मार्च के अंक में ईद के दिन पण्डित जी की हत्या होना लिखा है।
पं. देवप्रकाश जी, पं. शान्तिप्रकाशजी से लेकर राजेन्द्र जिज्ञासु तक हमारे विद्वानों ने इस विषय पर सहस्र्रों पृष्ठ लिखे हैं। आर्य सन्देश ने तो यह अनर्गल लेख देकर हम सबकी हत्या करके रख दी है। हम अपनी व्यथा किसे सुनावें? हम जानते हैं, ये लोग आर्य समाज पर दया नहीं करेंगे। हम फिर भी यही कहेंगे कि कोई इन्हें समझावे। जिगर का खून दे दे कर ये पौधे हमने पाले हैं।
रही उत्तर देने की बात। इस विषय पर मेरा छः सौ पृष्ठों का ग्रन्थ आर्यवीरों ने छपने को दे दिया है। इसमें उद्धृत पुस्तकों, पत्रिकाओं के सैंकड़ों प्रमाण पढ़कर विरोधी भी दंग रह जायेंगे। इस ग्रन्थ के प्रसार में पं. लेखराम जी विषयक सब मिथ्या विषैले लेखों का उत्तर मिल जायेगा। यह अपने विषय से सबन्धित अब तक का सबसे बड़ा और प्रमाणों से परिपूर्ण ग्रन्थ है।

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