जातिगत भेदभाव के कारण किराये का घर पाना भी दुर्लभ: कुशलदेव शास्त्री

भारत की नस-नाड़ियों में जातीयता का विष इतना अधिक भरा हुआ है कि तथाकथित निम्न जाति के व्यक्तियों को मकान-मालिक किराये से भी अपने घर नहीं देते। प्रगतिशील महाराज श्री सयाजीराव गायकवाड़ की सेवा में रहते हुए भी मकान मालिकों की इस संकीर्ण प्रवृत्ति के कारण डॉ0 अम्बेडकरजी को असाधारण मानसिक यातनाएँ सहन करनी पड़ी थीं, पर जो बात बड़ोदा में हुई वह मुम्बई में नहीं हुई। मुम्बई के भाटिया लोगों पर आर्यसमाज का विशेष प्रभाव होने के कारण डॉ0 अम्बेडकरजी को मुम्बई में आवासीय यातनाओं के दौर से नहीं गुजरना पड़ा।

 

    8-12-1923 से 2-9-1930 तक लिखे अनेक पत्रों से यह पता चलता है कि लगभग सात वर्ष तक डॉ0 अम्बेडकरजी के पत्र व्यवहार का पता परल मुम्बई स्थित ’दामोदर ठाकरसी हॉल‘ ही रहा। यह ठाकरसी घराना प्रगतिशील आर्यसमाजी और सुसंस्कृत था। दामोदर ठाकरसी के पिता श्री मूलजी ठाकरसी स्वामी दयानन्द जी की उपस्थिति में स्थापित विश्व की सर्वप्रथम ’आर्यसमाज मुम्बई‘ की कार्यकारिणी के सभासद थे। प्रारम्भ में आर्यसमाज और थियोसॉफिकल सोसाइटी में जो ऐक्य स्थापित हुआ, उसका अधिकांश श्रेय मूलजी ठाकरसी को है, क्योंकि थियोसॉफिकल सोसाइटी के संस्थापक कर्नल अल्कासॉट और मैडम ब्लैवेट्स्की को स्वामी दयानन्दजी का परिचय सर्वप्रथम मूलजी ठाकरसी ने ही दिया था। मूलजी ठाकरसी के सुपुत्र नारायण ठाकरसी को तो विश्व की सर्वप्रथम आर्यसमाज का सर्वप्रथम उपाध्यक्ष होने का श्रेय प्राप्त है। मूलजी ठाकरसी के पौत्र श्री विट्ठलदास ने तो अपनी माताजी नाथीबाई दामोदर के स्मरणार्थ कर्वे विद्यालय को तत्कालीन 15 लाख रुपये प्रदान किये थे। आज इस विद्यालय ने विश्वविद्यालय का रूप धारण कर लिया है, जिसे हम सब लोग ’एस0 एन0 डी0 टी0 यूनिवर्सिटी‘ के रूप में जानते हैं। सम्भवतः अन्य अनेक ज्ञात अज्ञात कारणों के अतिरिक्त ठाकरसी परिवार के आर्यसमाजी संस्कारों में दीक्षित होने के कारण बड़ौदा में डॉ0 अम्बेडकर को जिस प्रकार आवास विषयक यातनाएँ भोगनी पड़ीं, वैसी मुम्बई में नहीं। ’भारतीय बहिष्कृत समाज सेवक संघ‘ की ओर से महार बंधुओं को ’महार वतन बिल‘ के संबंध में सावधान करते हुए निवेदन निकाला था, उसके अन्त में डॉ0 अम्बेडकरजी ने अपना स्पष्ट पता देते हुए लिखा है-’दामोदर मूलजी ठाकरसी हॉल-परल-मुम्बई‘ इस प्रकार लगभग सात वर्ष तक डॉ0 अम्बेडकरजी के पत्र व्यवहार का पता ’परल-मुम्बई स्थित दामोदर ठाकरसी हॉल‘ ही रहा।

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