ईसाई मत परीक्षा

ईसाई मत परीक्षा

– स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

पाठक गण! मजहब की श्रेष्ठता उसके नियमों की उत्तमता से ज्ञात होता है, परन्तु मजहब के माने रीति और मार्ग के हैं, इसलिये जो लोग उद्देश्य को नहीं जानते, उनको शुद्ध-अशुद्ध मार्ग का ज्ञान हो ही नहीं सकता है और जब तक सत्यासत्य ‘‘सच और झूठ’’ का ज्ञान न हो, तब तक चलने का विचार करना बड़ी भारी मूर्खता है। जिन लोगों को ईश्वर ने आँख नहीं दी वे भी लाठी के द्वारा मार्ग को टटोल-टटोल कर चलते हैं, जिससे ज्ञात होता है कि मनुष्य की बनावट ही में तमीज का माद्दा है और तमीज की आवश्यकता केवल नेक बद शुभाशुभ जानने के लिये हैं, किन्तु मनुष्यों की बुद्धि पशुओं की बुद्धि से इसी तमीज के कारण उत्तम मानी गई है। अगर तमीज कोई बुरी चीज है तो उस की वजह से मनुष्य को पशु से बुरा होना चाहिये न कि श्रेष्ठ, लेकिन बहुत मजहब तमीज के प्राणलेवा शत्रु ‘‘जानी दुश्मन’’ हैं।

वे तमीज की वजह से मनुष्य को गुनाहगार समझते हैं, इस वास्ते उनमें तमीज बजाय बुजुर्गी के कमीनाई पैदा करती है। हमारे बहुत से मित्र कहेंगे कि संसार में ऐसा कोई मजहब नहीं जो तमीज को बुरा जानता हो, वरन हर एक मजहब इस बात पर एक है, मनुष्य ज्ञान के कारण पशुओं से अच्छा है, परन्तु ऐसा कहने वाले लोग भूल पर हैं, क्योंकि सबसे पहले ईसाई मजहब मौजूद है, जो तमीज को गुनाह गारी बतलाता है। यों तो हर एक ईसाई कहता है कि खुदा की बातों में अकल को दखल नहीं, लेकिन ईसाई धर्म की किताबें और ईसाइयों का खुदा इससे भी अधिक तमीज ज्ञान का बैरी है। वह नहीं चाहता कि मनुष्यों में तमीज पैदा हो, बल्कि जिस समय उसने आदम को उत्पन्न किया, उसी समय नेक व बद की तमीज का फल खाने से रोका। भला जब खुदा ने तमीज को ऐसा बुरा समझा कि उसका फल खाना आदम के लिये मना किया, यहाँ प्रश्न यह पैदा होता है कि खुदा को यह ज्ञात ही था कि आदम इस पेड़ का फल अवश्य खायेगा (यहाँ तक तौरेत से पाया जाता है) परन्तु ज्ञात होता है कि उसे बिल्कुल नहीं मालूम था, क्योंकि उसने सवाल किया (देखो तौरेत उत्त्पत्ति की पुस्तक पर्व ३ आयत ९ व ११ तक) तो परमेश्वर ईश्वर ने आदम को पुकारा और कहा कि तू कहाँ है और वह बोला कि मैंने बारी में तेरा शब्द सुना और डरा, क्योंकि मैं नंगा था, इस कारण मैंने आपको छिपाया और उसने कहा कि तुझे किसने जताया कि तू नंगा है? क्या तूने उस वृक्ष का फल खाया, जिसका खाना तुझको बरजा थीं, ऊपर कही आयत से साफ मालूम होता है कि ईसाइयों का खुदा इतना कम इल्म है कि बिना दर्याफ्त किये काम के बाद तक खबर नहीं होती। जब इस कदर बे इल्म हैं, तभी तो नेक व बद की तमीज के फल खाने से मना करता है। बहुत से लोग कहेंगे कि अभी तक कोई सबूत नहीं दिया कि खुदा ने तमीज का फल खाने को मना किया था। इसका सबूत देखो उत्पत्ति पुस्तक पर्व २ आयत १५/१६/१७ और परमेश्वर ईश्वर ने पहले आदम को अदन के बाग में रक्खा कि उसकी बाग वानी और निगह वानी करै और खुदाबन्द खुदा ने आदम को हुक्म देकर कहा कि-

तू बाग के हर वृक्ष का फल खाया कर, लेकिन नेक व बद की पहिचान के वृक्ष से न खाना, जो खाया तो तू मर जायेगा, ये है ईसाइयों के खुदा का हुक्म! भला जब खुदा ने तो नेक व बद की तमीज से आदम को अलग रक्खा, लेकिन साँप ने कृपा करके आदम को तमीज करा दी, जिससे हमारे भाई ईसाई भी संसार में उत्तम होने में अपना हिस्सा समझने लगेंगे-वरना उनके खुदा को आदमी का बेतमीज ही रखना स्वीकार था, परन्तु बाइबिल साँप ने इन्सान को तमीजदार बना दिया, वह नहीं चाहता था कि मनुष्य तमीज पैदा करके उत्तम बन जावे, बल्कि आदमी को तमीज पैदा करने से ईसाइयों के खुदा को इस बात का डर हुआ कि कदाचित मनुष्य अमृत के पेड़ के फल खाले और हमारे बराबर हो जावे बहुत से लोग हैरान होंगे कि खुदा और खौफ से क्या मतलब, लेकिन जनाब ईसाइयों का खुदा इसी तरह का है। उसके सबूत में देखो किताब उत्पत्ति पर्व ३ आयत २२, और खुदाबन्द खुदा ने कहा कि देखो मनुष्य नेक व बद की पहचान में हममें से एक की मानिंद हो गया और अब ऐसा न हो कि अपना हाथ बढ़ावै और अमृत के वृक्ष से भी कुछ मेवे खावै और हमेशा जीता रहे, इसलिये खुदा बन्द खुदा ने उसको बाग अदन से निकाल दिया-इससे भी बढ़कर और क्या खौफ का सबूत दरकार है, खुदा को डर क्यों न हो, क्योंकि एक और सबका मालिक तो है नहीं जो सब पर जबरदस्ती रखता हो और न वह अपरिमित है, बल्कि ईसाई मजहब में खुदाओं की एक कौम या जमाअत है जैसा कि ऊपर की आयत में खुदा के अपने वाक्य से मालूम होता है।।

क्योंकि वह कहता है कि मुनष्य नेक व बद की तमीज में खुदाई कौम में से एक की मानिंद हो गया, यानी नेक व बद की तमीज में तो खुदा के बराबर होगा, सिर्फ अमृत के फल खाने का फ र्क रहा, ईसाई मजहब में खुदाओं की कौम होने का एक और भी सबूत ले लीजिये-पौलूस का खत इन्द्रियों का पर्व १ आयत ९-ऐ खुदा। तूने नेकी से मुहब्बत और बदी से दुश्मनी रखी इस वास्ते ऐ ईश्वर! तेरे खुदा ने तुझे तेरे शरीकों की निस्बत खुशी के तेल से अधिक अभिषेक किया। क्या अब भी कोई ईसाई इन्कार कर सकता है कि ईसाइयों का खुदा अकेला ही मालिक है, बल्कि उसका खुदा और उसके शरीक भी मौजूद हैं। भला जिनके खुदा का खुदा और शरीक भी हों अब हम पूछते हैं कि वह किस खुदा के पास मुक्ति मानेंगे-पादरी गुलामी मसीह साहब और दीगर पादरियों को जो परमात्मा के पास से मुक्ति मानते हैं, सोचना चाहिये कि किस खुदा के पास  से मुक्ति होगी, क्योंकि ईसाइयों के मजहब में तो खुदाओं का एक झुण्ड है, जो खुदा के अपने वाक्य से प्रगट हो रहा है और ईसाइयों के खुदा का परिमित और शरीरधारी होना भी उनकी किताबों से साबित होता है, क्योंकि ईसाइयों का खुदा भी आदमी की सूरत का और मनुष्य की मानिंद है, उसके सबूत में देखो किताब उत्पत्ति पर्व १ आयत २६-तब खुदा ने कहा कि हम मनुष्य को अपनी सूरत और अपनी मानिंद बनावैं। इस आयत से मालूम होता है कि ईसाइयों के खुदा की शक्ल आदमी के अनुसार है और वह आदमी की तरह अल्पज्ञ और अल्प शक्तिवाला है। इसके अलावा खुदा के परिमित होने का और भी सबूत है, देखो किताब उत्पत्ति पर्व ३ आयत ८-और उन्होंने खुदा और खुदा की आवाज जो ठंडे वक्त बाग में फिरता था सुनी, उसने और उसकी स्त्री ने आपको खुदाबन्द खुदा के सामने से बाग के पेडों में छिपाया। अब बुद्धिमान आदमी समझ सकते हैं कि ईसाइयों का खुदा मनुष्य है या और कोई?

भला कैसे शोक की बात है कि जिस मजहब का खुदा बागों की सैर करता फिरै, जिसको हसद वकीना (ईर्ष्या-द्वेष) होतो तमीज यानी नेक बद की पहिचान आदमी को देना न चाहे और जिसको डर हो कि अगर मनुष्य ने अमृत के पेड़ का फल खाया तो हममें से एक के बराबर हो जायेगा-जिनके खुदा को पैदायश के लिखते समय से भी ख्याल न हो कि वह चौथे दिन सूर्य व चाँद को पैदा करे, भला दिन और रात का फर्क सूर्य और चाँद के कारण है और ये चौथे दिन पैदा हुए तो ईसाई साहबान बतलावें कि पहले तीन दिन किस तरह हुए? जो जबान से तो खुदा को सर्व शक्तिमान कहें, लेकिन अमलन ये साबित करें कि उसे काम के पहले किसी विषय का ज्ञानभी नहीं होता, क्या ऊपर की आयत को पढ़कर कोई अकलमन्द आदमी यह कह सकता है कि ईसाइयों का खुदा सर्वशक्तिमान् और दयालु है? ईसाइयों को जो नेक व बद की तमीज है, वह खुदा की दया से प्राप्त नहीं हुई, बल्कि साँप की मेहरबानी का फल है। जो तमीज और मजहब वालों के पुरुषों एवं पशुओं में श्रेष्ठ बनाने वाले साबित हुए वही तमीज ईसाइयों के पूर्वजों को दोष का तमगा पहनाने वाली हों जब कि ईसाई लोग ईश्वर को शरीरधारी और परिमित मानते हैं तो पूछते हैं कि जमीन और आसमान के पैदा करने से पहले आपका शरीर धारी खुदा जो आदमी की शक्ल का है, कहाँ पर मौजूद था? क्योंकि उस वक्त कोई जगह तो थी ही नहीं और शरीर धारी चीज बगैर जगह के रह नहीं सकती। अब जब तक ईसाई लोग अपने शरीर धारी खुदा के तख्त को ये न बतलावें कि वह कहाँ था, तब तक उनके मजहबी कायदे बालू की भीत से भी अधिक कमजोर रहेंगे और जिस तख्त पर अब उनका खुदा और उनका बेटा मय अपने शरीकों के बैठा है, उस तख्त की उत्पत्ति का जिक्र उत्पत्ति की पुस्तक में दिखाई नहीं देता, कदाचित ये कदीम हो।

ईसाई लोग सिवाय खुदा के किसी को कदीम नहीं मानते। अब यह भी सवाल पैदा होता है कि एक खुदा के सिवाय बाकी खुदाओं की कौम कदीम है और हरएक खुदा अनादि है तो उनमें आपस में कुछ फर्क था नहीं और यह भी सवाल पैदा होता है कि खुदाओं की कौम में किस खुदा ने जमीन व आसमान को पैदा किया था, क्योंकि अगर एक खुदा होता तो हर एक आदमी मान लेता कि एक ही पैदा करने वाला है। चूँकि यहाँ खुदाओं की कौम है तो यह सवाल जायज है कि उसने जमीन व आसमान बनाया और उस समय बाकी खुदा उसकी मदद करते रहे या नहीं और उस खुदाई कौम में सर्व शक्तिमान् खुदा कौन-सा है, क्योंकि जब तक मनुष्य मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि ईसाई मजहब में कर्मों से मुक्ति हो ही नहीं सकती, जिसका इकरार पादरी गुलाम मसीह साहब मास्टर स्कूल मैनपुरी ने अपनी किताब (रद्दतनासुख) में किया है। वह खुदा के फजल से मुक्ति मानते हैं और परमात्माओें की एक कौम मालूम होती है अब उसमें से किस खुदा के फजल से मुक्ति में कौन पास होगा और आत्मा का तगाजा किस खुदा के पास पहुँचना है? जब तक ईसाई साहबान इन सवालों का जवाब न दें, तब तक उनके  सारे दावे व्यर्थ मालूम होते हैं, पहला हेतु-कोई परिमित चीज अपरिमित शक्ति रख नहीं सकती, दूसरा हेतु-कोई साकार चीज बिना आधार रह नही सकती, तीसरा हेतु-सर्वशक्तिमान् परमात्माओं का झुंड हो नहीं सकता, चौथा हेतु- सब विद्याओं का जानने वाला ईश्वर किसी काम में गलती नहीं कर सकता, पाँचवां हेतु-सर्वशक्तिमान् ईश्वर को कहीं यह डर हो ही नहीं सकता कि कोई उसकी उत्पन्न की हुई तमीज और अमृत का फल खाने से उसके बराबर हो जावेगा और आदमी की शक्ल वाला ईश्वर इस संसार को पैदा नहीं कर सकता, क्योंकि परमित चीज की शक्ति परिमित होने उससे अपरिमित कामों का होना असम्भव है। हमारे बहुत से दोस्त कहेंगे कि जब ऐसी हालत ईसाई मजहब की है तो बुद्धिमान् लोग उसे किस तरह मान गये? पाठकगण! यह तो आपको ऊपर की आयतों से स्पष्ट पता लग गया होगा कि ईसाई मजहब तो अक्ल व तमीज को गुनाह का कारण बतलाकर पहले अलग करा देता है। जब बुद्धि दूर हो गई तो फिर तहकीकात कौन कर सकता है, क्योंकि किताब पैदायश के लेखानुसार बुद्धि शैतान की दी हुई और मनुष्य को अपराधी बनाने वाली है। केवल बुद्धिहीन पशु ही मजहब में अच्छे हैं और मसीह ने इंजील में भी इस बात को बतलाया है, क्योंकि वह कुल्ल अपने चेलों को भेड़ें और अपने को गडरिया बतला रहा है। भला जो गडरिये की भेड़ें हों, वह तहकीकात क्या कर सकती है? चाहे कोई मसीह कैसा ही बुद्धिमान् हो, वह जब तक भेड़ बनकर मसीही मजहब की बातों को न माने, तब तक उसको मसीह पर मजहब कामिल नहीं हो सकता। जो शख्स इनकी भेड़ों को अक्ल सिखावे, उसे वह शैतान का बहकाया हुआ कह देते हैं, स्वयं भेड़ बन जाने से तमीज नहीं रही। ईसाइयों का परमेश्वर तो मनुष्यों को बेतमीज रखना चाहता था, लेकिन साँप की कृपा से न रख सका। उसके बेटे मसीह ने अपने बाप का काम पूरा कर दिया अर्थात् मनुष्यों से अक्ल दूर करवाकर उनको भेड़ बना दिया और आप गडरिया बन गया और करोड़ों आदमी उस गडरिया गुरु की पैरवी में लग गये। जहाँ ईसाई मजहब ने अक्ल के दखल को मजहब से दूर किया वहाँ हजारों गलत बातों को कबूल करना पड़ा, क्योंकि अक्ल ही एक ऐसा औजार है कि जिसके कारण मनुष्य गलतियों से बचकर सीधी राह पर जा सकता है। ईसाई लोगों को यह विश्वास कितना कमजोर है कि वह आत्मा को पैदा हुई मानकर मुक्ति को अनन्त मानते हैं, परन्तु संसार में पैदा हुई चीज कभी अनन्त नहीं कहलाती, क्योंकि एक किनारे वाली नदी नहीं होती, लेकिन उनके मजहब की फिलासफी ही निराली है कि परमेश्वर को परिमित मानकर सर्व शक्तिमान् मानना आत्मा को पैदा हुई मानकर अनन्त बतलाना। अगर कोई इनसे पूछे कि क्यों कभी अनित्य भी अनन्त हो सकता है? अनन्त होने के लिये अनादि होना लाजिमी है, नित्य की तारीफ है। आप उन बातों को जिनको गुजरने के बाद लोगों ने तहकीकात करके लिखा है अपौरुष वाक्य बताते हैं। इतिहास को अपौरुष वाक्य बताने वाले भी हजरत हैं और आपके दिमाग में वह लेख जिनमें आपस में विरोध है जिनके विषय बुद्धि के विरुद्ध हों, कानून कुदरत के खिलाफ हों। जब अपौरुष वाक्य है तो कौनसी गलती हैं, जिसके होने से आपका मजहब झूठ हो सकता है? हमें अफसोस होता है कि जब इस मजहब के चलने वाले कहते हैं कि हम क्यों तहकीकात करें? हमें अपने मजहब में शक हो तो हम बहम करें अगले नम्बरों में हम मसीह मजहब की तमाम इल्मी कमजोरियों को सिलसिलेवार पेश करेंगे और जिस तरह हमारे मसीह दोस्तों ने रामकृष्ण परीक्षा में उनके चाल व चलन की तहकीकात की है, अब हम अकली तौर पर मसीह के चाल व चलन की परीक्षा करेंगे और दिखलावेंगे कि श्रीरामचन्द्र व मसीह की सुशीलता में किस कदर अन्तर है? जहाँ तक होगा हम किसी के प्राचीन बुजुर्गों पर अपनी तरफ से गढ़ कर अपराध नहीं लगावेंगे, बल्कि बाइबिल के लेख पर अपनी तहकीकात को बुनियाद रक्खेंगे। हम अपने व्याख्यानों में कम से कम चालीस व्याख्यान ईसाई मजहब के मुतल्लिक पेश करेंगे और दिखलावेंगे कि जिन लोगों ने अपने धर्म के न जानने से ईसाई मजहब को कबूल किया है, उन्होंने कैसी गलती खाई है, और यह भी दिखलावेंगे कि इन गलतियों के पैदा होने के कारण क्या हैं? गरजे कि हम थोड़े अरसे में ही ईसाई मजहब की चिकनी बातों पर जिसको भोले-भाले लोग गलती से सही समझकर भूल जाते हैं और अपने धर्म और जिन्दगी को तबाह करके ईश्वर के हुक्म की तामील से अलग होकर दुःखों के गहरे गड़हे में गिर जाते हैं, उनको सच्ची तहकीकात पेश कर के पब्लिक को ईसाइयों के धोखे से बचाने की कोशिश करेंगे।

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