हॉटल का ईमानदार गरीब बालक

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हॉटल का ईमानदार गरीब बालक
डा. अशोक आर्य
ईमानदारी का निवास वास्तव मे गरीबी मे ही देखा जा सकता है | अमीर लोगो मे एसे द्रश्य बहुत कम देखने को मिलते है | एसा ही एक गरीब बालक एक होटल में कार्य करता था | आओ हम मिलकर इस बालक के समबन्ध में कुछ जानने का यत्न करें |
यह ईमानदार बालक एक गरीब माता पिता की सुसंतान था , जिनके पास ना तो अपना व्यवसाय करने के लिए स्थान ही था और ना ही खुला धन | इस कारण वह बहुत चिंतित रहते थे | अपनी इस गरीबी के कारण वह जैसे तैसे कुछ व्यवसाय करके कियासी प्रकार अपना जीवन व्यतीत कार रहे थे | इन कॅया यह एक मात्र बालक भी एक छोटे से होटल में कार्य करता था | इस होटल के मालिक के पास भी ना तो कोई भवन था और ना ही कोई कुर्सी मेज आदि ही जिस पर बैठ कार लोग खाना खा सकें | इस कारण इस ने अपना यह होटल नगर से कुछ दूरी परएक एक पेट्रोल पंप के पास थोड़ी सी जगह लेकर बना र्खा था | वह आने जाने वाले यात्रियों के लिए जलपान वा भोजन की यथा संभव व्यवस्था करता था | इस होटल के पासा मात्र कुछ चारपाइयां थी , जिन पर बैठ कार उस के ग्राहक भोजन करते थे अथवा चाय आदि का पान करते थे | इस के साथ ही साथ यात्रा से थके वह लोग कुछ समय विश्राम भी यहाँ कर लिया करते थे |
इन यात्रियों की सेवा करने वाला यह गरीब बालक बड़ा ही मृदुभाषी था | उस की इस मृदुभाषा के कारण तथा उसकी मेहनत के कारण यात्री बहुत प्रसन्न थे तथा इस भोजनालय की प्रसिद्धि दूर दूर तक चली गई | यह ही कारण था की उधर से निकलने वाला प्रत्येक वाहन व्हान रूक कर कुछ न कुछ अवश्य ही लेकर उसका उपभोग करता था |
एक बार की बाता है कि एक धनवान की कार उसके पास आ कार रुकी | भ्यंकर गर्मी कॅया मौसम था | होटल के इस बालक ने दौड़ कर इस मे सवार लोगों को घड़े कॅया ठंडा पानी पिलाया | तण्दे पानी को पीकर राहत अनुभव करते हुए कार में सवार एक महिला ने इस गरीब बालक को कुछ पैसे देने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया |
इस बालक ने तत्काल उतर दिया कि ” मैंने एसा कोई काम नहीं किया , जिसकी कीमत लूं | बाल आप लोग गर्मी से तड़पते हुए आकर यहाँ रुके तो मैंने आप को जल पिलाना अपना कर्तव्य मानते हुए आप को जल भेंट किया | किसी भी प्यासे को जल भेंट करना किसी भी व्यक्ति कॅया कर्तव्य होता है | बस यह कर्तव्य ही तो मैंने पूरा किया है | इसके लिए मैं कुछ भी प्रतिफल नहीं ले सकता |
इस गौरवपूर्ण उतर से कार सवार परिवार बहुत्र प्रभावित हुआ तथा प्रसन्नता से उससे पूछा कि क्या वह पेट्रोल पंप पर कार्य करता है| इस पर बालक ने कहा की नाही वह इस हाटल पर ही कार्य करता है | सदा बड़े बड़े होटलों में खाना खाने वाले क्ाआर के मालिक को एसे झोंपदीनुमा होटल कैसे पसंद आ सकते थे ? इस कारण मुँह दूसरी और करते हुए बोले की अब तो हमें बहुत काम है , ईसा कारण आती व्यस्त होने से वह भोजन नहीं कार सकाते | हाँ ! लौटते हुए अवश्य यहाँ रूकने का यत्न करेंगे | यह कह कार वह आगे को बढ़ गये |
कार के रवाना होते ही चालक की पत्नी ने अपने सेठ पति से कहा की हमारा गंतव्य अभी दूर है , भूख भी लगी है , क्यों न हम यहीं भोजन भी कार लें ? इस पर सेठ जी ने कार रोकी , सब लोग उतर कार खाना खाने होटल पर आ कार चारपाई पर आ बैठे | बालक ने उन्हें साफ सुथरे बर्तन लगा दिए तथा उनमें अच्छा वा गर्म खाना परोसा दिया | इतना गर्म खाना इस परिवार ने अपने घर पर भी कभी ना खाया था |
खाना खाने के पश्चात थके हुए यह लोग एक व्रक्ष के नीचे चारपाई लगा कर लेट गये और लेटते ही उंहें नींद आ गयी | सायणकाल जब उनकी नींद टूटी तो वह लोग जल्दी से अपनी कार पर जेया बैठे तथा देखते ही देखते गाड़ी हवा से बातें करने लगी तथा अपने गंतव्य पर पहुँचने पर सेठानी ने पाया की यूयेसे कॅया पार्स जिसमे कुछ स्वर्ण आभूषण थे , वह गायब था | जब इस की चर्चा उसने अपने पाती से की तो पति ने कहा की जो गया सो गया , उसे वह भुला जावे क्योंकि वह अब मिलने का नहीं है | इस कॅया कारण यह है की हम मार्ग मे अनेक स्थानों पर रुके हैं , ना जाने यह कहाँ रह गया होगा | ईसा कारण किससे पुछे तथा फिर आज के धोखा धड़ी के युग में कौन स्विजकर करेगा की यह पार्स उसे मिला है |
दूसरी और कार के जाते ही इस बालक की नजर पार्स पर पड़ी तथा उसने इसकी जानकारी अपने मालिक को दी | उसने कहा की वह इस पार्स को खोलकर देखे की इस मे क्या है ? इस पर बालक ने कहा कि यह किस्वी अन्य कॅया धन है , इस पर ना तो मुझे कुछ लालच है तथा ना ही मैं इस के अंदर के किसी सामान को देखना अहि चाहर्ता हूँ | इस लिए मैं चाहता हूँ की मैं किसी प्रकार इस कार चालक को खोजा कार यह पार्स उसकी पत्नी को लौटा दूँ |
होटल के मालिक ने यह सुनकर यूयेसे बालक को शाबाशी देते हुए कहा कि तेरी ईमानदारी को देखकर ही मेरा व्यवसाय प्रतिदिन आगे बढ़ रहा है , मैं भी इस पार्स को नहीं देखना चाहता | इसे तू ही संभाला कर अपने पास रख | जब वह लोग लौटते हुए यहाँ आवेनगेव तो तुन ही यह उंहें लौटा देना |
बालक ने पर्स संभाल कर रख दिया | कुछ बिताने तक वह इस बात को भी भुला गया | इस प्रकार वह इस बात को भुला अपने कार्य में व्यस्त रहने लगा की एक दीं आकस्मात एक कार उस होटल के सामने आ कर रुकी | इस बालक ने तत्काल उंहें पानी पिलाया \ सेठ ने इस बालक को पहचान लिया तथा उससे चाय पिलाने को कहा | बालक ने अहोभाग्या कहते हुए उनके लिए चाय की व्यवस्था की | इस आधी मे ही उसे उस पार्स की याद हो आई , जिसे वह लोग कुछ दीं पूर्व यहाँ भुला गये थे | अट: वह उंहें रूकाने कॅया कह कार दौड़ते हुए होटल के अंदर गया और पार्स ला कार बोला कुछ दीं पूर्व यहाँ खाने के बाद आप लोग यह पार्स यहाँ भुला गये थे , यह आप की धरोहर है , इसे ग्रहण कार हमें भार से मुक्त करें |
सेठ सेठानी भी अब तक इस पार्स को भुला चुके थे किन्तु अपनी खोए धन को पाकर खुशी से फूलते हुए उन्होंने पूछा कि बेटा तुम जानते हो इस पार्स में क्या है ?
बालक ने सहज भाव से ही उतर दिया नहीं , मैं नहीं जानता की इस में क्यूआ है ? क्योंकि किसी की धरोहर को खोलना मेरा कार्य नहीं है | इससे लोभ भी आ सकता है | एसे पाप को मैं नहीं कर सकता | यह तो पाप है |
सेठानी ने बालक को आशीर्वाद देते हुएव् पार्स खोला तो उसने पाया कि पार्स कॅया सब सामान ज्यों का त्यों पड़ा था | उसने खुशी से बालक को कुछ पुरस्कार देने कॅया यत्न किया किन्तु महानता की खाने वाले बालक ने कुछ भी लेने से इन्कार कार दिया | सेठ सेठानी ने बालक को ढेरों सारे आशीर्वाद दिए तथा बार बार इस बालक की देख रेख करने लगे फिर कुछ समय में ही यह परिवार हीं संतान हीन दंपति फिर एक दीं आया और इस बालक को अपनी संतान बना कार ले गया |
इस प्रकार यह गरीब वा बेसहाय बालक अपने उपत के कारण इतना आगे बढ़ गया , जानते होय इस बालक का क्या नाम था , इस बालक कॅया नाम था शेखर | हमें भी इस बालक के कार्यों से शिक्षा लेते हुए ईमानदार बनना चाहिए |

डा. अशोक आर्य

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