इतिहास प्रदूषक “फरहाना ताज”

आर्य समाज में प्रक्षिप्त और झूठी बातो का प्रचार असहनीय है
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फरहाना ताज जी की बहुत सी पोस्ट देखी – बहुत से मित्र बंधू इन पोस्ट्स को व्हाट्सप्प पर प्रसारित भी करते हैं – कुछ चीज़े वैदिक संपत्ति पुस्तक से उद्धृत हैं और कुछ इनके अपने दिमाग की उपज है –

जो वैदिक संपत्ति से उद्धृत है वो ठीक लगता है मगर जो इनके अपने दिमाग की उपज (व्याख्या) है वो गड़बड़ झाला है – आर्य समाज को बदनाम न करे – आपकी बहुत सी पोस्ट पर कमेंट किया पर आपने आजतक जवाब नहीं दिया – ये बहुत ही खेद का विषय है – कृपया समझे –

1. आपकी पुस्तक “घर वापसी” में आपने अपने पति को आर्य समाजी बताया – मगर वही आर्य समाजी बंधू एक्सीडेंट के बाद पौराणिक बन जाता है ? ऐसा क्यों ?

क्या आप इसे मानती हैं ? यदि हाँ तो आप अंधविश्वास और चमत्कार वाली झूठी बातो का समर्थन करती हैं जो आर्य समाज के सिद्धांत विरुद्ध है। कृपया स्पष्टीकरण देवे।

2. हनुमान जी – एक ऐसा वीर, धर्मात्मा, श्रेष्ठ पुरुष जिसका रामायण में बहुत उत्तम चरित्र है जो रामायण में पूर्ण ब्रह्मचारी पुरुष है। महर्षि दयानंद भी हनुमान जी के ब्रह्मचर्य से पूर्ण सहमत थे। फिर आपने ऐसे महावीर हनुमान को गृहस्थ घोषित कर दिया वो भी बिना कोई प्रमाण ?

केवल दक्षिण के मंदिरो को देखकर ही आपको लग गया की हनुमान जी ब्रह्मचारी नहीं गृहस्थ थे ? ऐसा मंदिर तो दिल्ली के भैरो मंदिर में भी देख लेती वहां भी हनुमान जी के चरित्र को दूषित किया गया है जैसे आप दक्षिण के मंदिरो को प्रमाण मान कर एक पूर्ण ब्रह्मचारी को गृहस्थ घोषित करकर ? यदि वहां के मंदिरो को देखकर ही आपको सिद्ध हो गया की हनुमान जी गृहस्थ ही हैं तो वहां के मंदिरो में तो हनुमान जी बन्दर स्वरुप भी दर्शाया गया होगा तब उन्हें क्यों नहीं मान लेती ?

3. आपने अपनी एक पोस्ट में कहीं लिखा था की ऋषि अंगिरा ही शिव थे – जो कैलाश के राजा हुए – तो मेरी बहन मैं आप से कुछ पूछना चाहता हु –

यदि ऋषि अंगिरा ही शिव थे जो कैलाश के राजा हुए तो इसका मतलब बाकी के बचे तीन ऋषि भी कुछ न कुछ होंगे ? मतलब वो भी कहीं के राजा हुए होंगे ? यानी वो वेद ज्ञान प्राप्त कर राजा हो गये ? फिर उन्होंने वो ज्ञान अन्य मनुष्यो को कैसे सुनाया होगा ? क्योंकि ये वेद श्रुति हैं।

यदि फिर भी मानो तो एक बात बताओ – हमारा इतिहास यही बताता है की इस धरती का पहला राजा “स्वयाय्मभव मनु” महाराज थे – और इसी बात को महर्षि दयानंद भी बता गए। अब मुझे आप बताओ यदि “स्वयाय्मभव मनु” पहले राजा थे तो अंगिरा ऋषि इनसे पहले हुए होंगे क्योंकि उन्हें वेद ज्ञान प्रकाशित हुआ – तो वो आप शिव कल्पना कर कैलाश का राजा बना दिया – तो “स्वयाय्मभव मनु” पहले राजा कैसे हुए ?

कृपया अभी इन ३ के जवाब ही दे देवे – बाकी की आपकी अनेको पोस्ट्स पर जो आपत्ति है उनका भी निराकरण आपसे अवश्य मांगेंगे।

नोट : आपसे निवेदन है कृपया आर्य समाज के सिद्धांतो और नियमो को भली प्रकार समझ कर तब सत्य और असत्य निष्कर्ष निकालकर पोस्ट लिखा करे। हिन्दू समाज वैसे ही बहुत से अंधविश्वासों में डूबा है – अब आर्य समाज को भी अन्धविश्वास की दलदल न बनाये।

नमस्ते।

37 thoughts on “इतिहास प्रदूषक “फरहाना ताज””

  1. इतिहास की परिभाषा क्या है?
    वैदिक संपत्ति का पहला संस्करण कब निकला?
    आर्य समाजी वेदद्रोही क्यों हैं, जैसे अग्निवेश, महाशय राजपाल के लडके दीनानाथ जो ओशो व अन्य पाखंड की किताबे छापते हैं
    आप किस इसाई संस्था के एजेंट हैं?

    1. आप इर्श्यावश जो सवाल कर रहे है उसके जवाब आप स्वयं जानते है परन्तु जब आपकी असत्यता पर आक्षेप लगा है तो आपका ऐसे सवाल करना स्वाभाविक है

      अग्निवेश जैसे सपौले आर्य समाजी नहीं हो सकते है ना उसका आर्य समाज से कोई सम्बन्ध है

  2. आर्य के नाम पर हे कलंक….आपने और आपके साथियों ने कम से कम 250 गंदे अश्लील मैसेज किए, गालियां दी…और उल्टे सीधे आरोप…..कम से कम 50 बार फोन पर धमकी…हमें कई बार नंबर बदलना पड़ा और….रात के दो बजे भी आकर घर का द्वार खुलवाया…हिन्दू महासभा वालो के साथ मिलकर….क्या हम इतने मूर्ख थे कि उस समय की रिकार्ड भी नहीं करते….

    1. “आर्य के नाम पर हे कलंक….आपने और आपके साथियों ने कम से कम 250 गंदे अश्लील मैसेज किए, गालियां दी…और उल्टे सीधे आरोप…..कम से कम 50 बार फोन पर धमकी…हमें कई बार नंबर बदलना पड़ा और….रात के दो बजे भी आकर घर का द्वार खुलवाया…हिन्दू महासभा वालो के साथ मिलकर….क्या हम इतने मूर्ख थे कि उस समय की रिकार्ड भी नहीं करते…”

      इतना बेहूदा आरोप लगाते आपको लज्जा नहीं आई ??
      क्या यही आपकी विद्वता है ?

      प्रमाण दें की ये गालियाँ भद्दे सन्देश हमने भेजे अन्यथा क्षमा मांगे अपने पेरों पर कुल्हाड़ी ना मारे

    2. ऐसे औछे आरोप लगाते आपको लज्जा नहीं आई ?

      क्या यही आपकी विद्वता है ?

      आरोप प्रमाणित करें की हमने ऐसे अभद्र व्यवहार किये लोगों के दोष हम पर ना थोपे

      आपकी असत्यता जग उजागर हो गई है सफाई दें अन्यथा ऐसे आरोपों पर क्षमा मांगे

    3. मेरे सभी भाईयो
      नमस्ते
      पिछले दो दिनो मे फरहाना जी की पोस्ट पर उठाई तीन शंकाओ को इतना बड़ा विवाद का रूप देना कही न कही पूर्ण रूप से ये साबित करता है कि फरहाना जी ने झूठ बोला पोस्टो के माध्यम से गलत बेबुनियाद और तथ्यहीन पोस्ट को प्रचारित किया न केवल प्रचारित किया उन पोस्ट के माध्यम से ऋषि सिद्धांत को बी बदलने की नाकाम कोशिश की
      अब सवाल ये है कि ये शंका समाधान विषय को इतना बड़ा विवाद का रूप क्यो दिया गया देखिए जब कोई व्यक्ति कुछ गलत करे या पकड़ा जाये तब वो अपनी बेगुनाही साबित करने को किसी भी हद तक जा सकता है झूठ बोल सकता है दूसरो पर बेबुनियाद आरोप गढ़ सकता है धर्म छोड़ने की धमकी दे सकता है आदि
      लेकिन वो ऐसा कर क्यो रहा है क्योकि सिद्धांत की कमी है यदि ऋषि सिद्धांत पर चलते होते तो विवाद बढ़ाते नही बल्कि प्रमाण देकर अपनी बात सिद्ध करते यदि ऐसा करने मे असमर्थ थे तो माफी मांग लेते यदि माफी मांगने मे दिक्कत थी तो खुद से ही माफी मांग लेते और जीवन मे दुबारा बिना प्रमाण न लिखने का वचन कायम करते हुए विवादित पोस्ट को डीलिट कर देते
      यदि ऐसा करते तो निस्संदेह आप विद्वान की गिनती मे गिने जाते मगर खेद की जो आप कर रहे वो ऋषि सिद्धांत और मानव सिद्धांत विरुद्ध है
      एक बड़े कवि ने कहा है
      मूर्ख से कभी बहस न करे क्योकि मूर्ख पहले उस विद्वान को अपने स्तर ज्ञान तक लाकर खींचेगा और जब वो मूर्ख के स्तर ज्ञान पर पहुंच जायेगा तब मूर्ख अपने भारी एक्सपीरियेंस से उस विद्वान को हरा देगा
      आप श्रीमान यही कर रहे हो बुरा न माने सच कड़वा होता है आप राजनीति कर रहे हो हम धर्म की बात कर रहे
      आप गंदे कीचड़ मे हमे अपने साथ डुबकी लगवाना चाहते हो माफ कीजियेगा हम अपना स्तर आपके स्तर तक नही लाना चाहते
      यदि आपके पास प्रमाण है तो रखिए अन्यथा ऐसे बेहूदा और घटिया झूठे आरोप लगाकर अपनी राजनीतिक और निम्न स्तर की सोच प्रदर्शित न करे
      Rajneesh Bansal

  3. इस औरत को सबक सिखाओ शाबाश आर्य समाजियो…..यह तुम्हारे मजहब में कलंक है और इस्लाम में भद्दा

    1. इतिहास की परिभाषा क्या है?
      वैदिक संपत्ति का पहला संस्करण कब छपा?
      आर्य समाजी पाखंड क्यों फैलाते हैं? जैसे महाशय राजपाल के बेटे दीनानाथ ने श्रीमाली ओर ओशो की किताबे छापी है वे देखें….

    2. Asfaq sahab ab aapke shabdon men kahn to isalam ne ye भद्दा to aapke allah ki hee marzee se hai ….. jo kuch ho raha hai wo to allah ne pahle se hee nirdharit kar diya hai

      ab aapke liye भद्दा nirdharit kiya hai to allah hee doshee hai isake lye to 🙂

      aap hamare mamale men na padhen kyunki vedic dharm men jeev swatantra hai aur wah aisee cheejon se aapane aap nipat sakta hai aur aap allah ke paraadheen hein isliye aap kuch kar bhee naheen sakte 🙂

  4. इतिहास शब्द (इति + ह + आस ; अस् धातु, लिट्
    लकार अन्य पुरुष तथा एक वचन) का तात्पर्य है

    “यह निश्चय था”

    क्योकि हमे वाल्मिकी रामायण प्रमाणिक लगती है जिसके अनुसार हनुमान जी पूर्ण ब्रह्मचारी थे ऐसा निश्चित होता हे क्योकि ये ही इतिहास है

    पर आप हिस्ट्री के अर्थ को इतिहास से जोड़ते हो हिस्ट्री का अर्थ होता है “बुनना” जैसे आपने रामायण के महान चरित्र वाले पूर्ण ब्रह्मचारी हनुमान जी का गृहस्थ स्वरूप बुन लिया

    आपको पता है ये क्यो कर रहे हो आप क्योकि आप पूंछ के तर्क को ब्रिटिश काल के टेल शब्द से जताकर पूंछ का खंडन करते हो खंडन तो सही है कि पूंछ नही थी मगर रामायण मे पूछ को टेल नही बताया जो आप ब्रिटिश राजदूत के कपड़ो से जोड़ गए

    खैर मेरा विषय ये नही मेरा विषय है आप झूठ बोलकर अपनी स्वघोषित श्रेष्ठ मानसिकता का परिचय न दे

    सवालो के जवाब न हो तो न सही दूसरो से माफी नही मांग सकते पर खुद से तो माफी मांग सकते हो ?

    कृपया ऐसा आचरण न करे जो दूसरो की नजरो से तो भले ही गिर जाओ मगर अपनी नजरो से कभी न गिरना क्योकि जो अपनी नजरो मे गिरा वो कभी खड़ा नही हो सकता

    कृपया ऋषि के सिद्धांत पर चलकर मर्यादा बनाए रखे

    नमस्ते

    1. कृपया यह पोस्ट यहां से हटाएं और हमारे फेसबुक अकाउंट पर शेयर करें…आपकी शंका या प्रश्न का समाधान करने का हम प्रयास करेंगे। शुक्रिया…

      1. हमारी बहन फरहाना ताज जी,

        आप वैदिक प्रचार में संलग्न है ये बहुत ही प्रसन्नता की बात है, आप विदुषी हैं ये और भी प्रसन्नता की बात है, आप सत्य सिद्धांत को अपना कर ऋषि का सत्यार्थ प्रकाश पढ़ कर धर्म में घर वापसी की ये तो अतिहर्ष का विषय है,

        मगर आपने कुछ लेख जो वैदिक सिद्धांत और ऋषि सिद्धांत के विरुद्ध लिखे उनके लिए आपसे केवल शंका समाधान की अपेक्षा की गयी, परन्तु आपने विदुषी होते हुए भी धर्म को त्यागने की बात कही तो ये देखकर मन बहुत आहत हुआ – क्या आपको ये बात कहने में सिद्धांत जरा भी याद न आये ? आपके पति द्वारा झूठे बेबुनियाद आरोप लगाये की हमने धमकी और अश्लील मेसेज भेजे क्या ये विद्वान लोगो को शोभा देता है ?

        खैर आपने जो आरोप लगाये वो ईश्वर की व्यवस्था अनुसार उचित रूप से फल मिलेंगे इसमें कोई शंका नहीं है पर ये विषय अब भी यही अटका है आपसे पुनः निवेदन है की हमने जो तीन सवाल आपकी किताब और पोस्ट पर किये हैं उनकी शंका का समाधान प्रामाणिक तथ्यों अनुसार करवाये। हम आशा करते हैं आप पूर्ण सहयोग करेंगी ताकि हमारी शंका का समाधान हो जाये।

        रही बात पोस्ट को यहाँ से हटाने की तो बहन जी ये एक इतिहासिक तथ्य बन चुका है और वेबसाइट पर डाला जा चूका है इसलिए ये यहाँ से नहीं हट सकता। क्योंकि यदि आप हमारी शंका का समाधान पहले ही अपनी कमेंट बॉक्स अथवा कोई पोस्ट ही बना कर कर देती तो यहाँ वेबसाइट पर ये विषय ही उठाया नहीं जाता।

        आपसे पुनः निवेदन है की कृपया जल्द से जल्द शंका का समाधान करे ताकि आपकी जो अन्य पोस्ट्स हैं उनपर भी शंका समाधान करवा कर हम अपना ज्ञानार्जन करे।

        धन्यवाद।

  5. और आपने जो अपनी नयी हदीस

    रामायण गढ़ ली है उसमे आपने जो मनमाने आरोप हनुमान जी जैसे श्रेष्ठ वीर और वेदो के ज्ञाता पूर्ण ब्रह्मचारी आप्त पुरुष को बेवजह बिना प्रमाण गृहस्थ घोषणा कर के नया पुराण रचा है वो ऋषि सिद्धांत सम्मत नही है ये आपको इसलिए बता रहा हू क्योकि आप खुद को ऋषि सिद्धांत को मानने वाला बताते है यदि आप इतना मानते है तो कृपया ऋषि कि बताये नियम सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग करने मे उद्धृत रहे वो भी माने और अपनी हदीसी ज्ञान को त्यागते हुए हनुमान जी के चरित्र को बदनाम करने वाली पोस्ट को और एसी ही अनेको पोस्ट को रद्दी की टोकरी मे डालने की कृपा करे

    धन्यवाद

  6. मित्रों!फरहाना जी की शंका समाधान करें कृपाकर के इन पर वार न करे केवल समझायें.फरहाना जी भी आर्या ही हैं.ये भी हममें से एक ही हैं

  7. सभी को नमस्ते जी।
    आपने आरोप लगाया है कि आपको गंदे मैसेज भेजे गए कृपया कर एक बार उन्हें उजागर कर दीजिए। अभी सच और झूठ का पता लग जायेगा। किसी पर मनगढंत आरोप लगाना सही नहीं है।

  8. अपनी बातो को सिद्ध कीजिए अगर उनमे सच्चाई है तो और जो आपने मनगढंत आरोप हम सब लगाएं है उनका क्या उद्देश्य है?

  9. अत्यंत आभार फरहाना ताज जी

    समस्त आर्य बंधुओं एक गतिरोध के पश्चात फरहाना जी ने आज दिनांक 8/10/2015 समय लगभग प्रातः 10 से 11 बजे अपनी फेसबुक id पर एक पोस्ट डाली है जिसका शुरूआती और मुख्य अंश यह है

    “आर्य मंतव्य वेबसाइट की शंका का समाधान: 1

    आपका पहला सवाल: मेरे पति एक घटना के बाद पौराणिक हो गए? क्यों?

    इतिहास प्रदूषक: फरहाना ताज (दयानंद देवी)

    उस घटना को मैं और वे स्वप्न मानते हैं, सपने सच नहीं होते ऐसे किसी विचार पर हमें विश्वास नहीं। वह प्रसंग आगामी संस्करण में निकाल दिया जाएगा।”

    शेष………

  10. क्रमश…

    यह अत्यंत हर्ष का विषय है की इन विदुषी ने अपनी विद्वता दिखाते हुए गलत बात को स्वीकारते हुए इसे हटाने का निर्णय लिया है

    आपने अपनी गलती या कह लीजिये भूल को स्वीकार कर अपनी विद्वता का परिचय दिया है

    जिसके लिए हम आपके अत्यंत आभारी है

    इसके साथ हमारे तीन आक्षेपों में से एक आक्षेप यही समाप्त हो जाता है

    बाकी के दो सवालों का जवाब दिए जाने के बाद उन्हें भी यहाँ कमेंट में और और हमारे फेसबुक पेज http://www.facebook.com/aryamantavya पर बताया जाएगा

    एक बार पुनः फरहाना जी को अत्यंत साधुवाद

  11. धन्यवाद….हम किसी कार्यवश व्यस्त रहने के कारण आपके दो सवालों के जवाब एक दो दिन बाद देंगे, जो आर्य सिद्धांतों के अनुरूप होगा।

  12. यह क्या जवाब देगी….हमें पता है कृपया हमें इनके घर का पता दीजिए, जवाब हम ले लेंगे….हमें इनसे अरबी वेद खरीदने हैं, लेकिन पता नहीं मिल रहा कि कहां रहती हैं।

  13. परंतु हमने कभी आर्य समाज में कोई प्रचार नहीं किया…किसी आर्य समाज में जाकर अपनी बात नहीं रखी…किसी आर्य समाज की मैंबर हम नहीं…हां कई बार आर्य समाज मंदिरों में गए अवश्य हैं।
    फेसबुक पर जब हम आए तो केवल टाइम पास के लिए…अपने पुराने मित्रो से बातचीत करने के लिए….फिर यूं ही शुरु में मन की भडास निकालने लगे, अपनी आप बीती…और इसी दौरान आत्मकथा लिख डाली…और लेखन करते हुए एक दो बातें फेसबुक पर पोस्ट, हमें नहीं पता कि हमारी बात को कोई पढते भी हैं या नहीं,

  14. , क्योंकि हम हर दिन आधा घंटा से ज्यादा कंप्यूटर पर देते ही नहीं…अब हमारी पोस्ट पर किसने कमेंट किया, यह भी देखने का समय नहीं, आप गौर करके देखिए कि हमने कभी कितने लोगों की पोस्ट पर लाइक किया या कमेंट किए….शायद न के बराबर….फिर हमारी पोस्ट व्हाटएप या अन्य तरीके से सोशल मीडिया पर कैसे फैली हमें कदाचित पता नहीं, क्योंकि हम जिस फोन को यूज करते हैं उसमें ये सुविधा नहीं, हम नहीं चाहते कि हमारे अल्पज्ञान से समाज में गलत संदेश जाए…

  15. क्योंकि हम हर दिन आधा घंटा से ज्यादा कंप्यूटर पर देते ही नहीं…अब हमारी पोस्ट पर किसने कमेंट किया, यह भी देखने का समय नहीं, आप गौर करके देखिए कि हमने कभी कितने लोगों की पोस्ट पर लाइक किया या कमेंट किए….शायद न के बराबर….फिर हमारी पोस्ट व्हाटएप या अन्य तरीके से सोशल मीडिया पर कैसे फैली हमें कदाचित पता नहीं, क्योंकि हम जिस फोन को यूज करते हैं उसमें ये सुविधा नहीं, हम नहीं चाहते कि हमारे अल्पज्ञान से समाज में गलत संदेश जाए…

  16. हमें इस पागल औरत का पता चाहिए…..इसके खिलाफ कई केस हैं और तारीख पर नहीं आ रही है…कुछ भी बकती है किसी के खिलाफ भी….

  17. आप इनके मित्र हैं तो आपके पास इनका पता अवश्य होगा…शुक्रिया!

  18. हमारी बहिन फरहाना ताज नमस्ते,
    आपने जवाब देने का कष्ट करा इसके लिए हम आभारी हैं, मगर आपने लिखा था की आप प्रामाणिक आर्ष साहित्यो से ही शंका समाधान करेंगी सो आपकी पोस्ट में कहीं नजर नहीं आया – उलटे आपने खुद माना की पराशर संहिता को आर्य समाज में प्रामाणिक नहीं माना जाता फिर भी आपने पराशर संहिता से ही प्रमाण दिया जो की गलत है फिर आपने ये भी लिखा की रामायण और महाभारत में कहीं भी हनुमान जी के विवाहित होने का प्रमाण नहीं मिलता। ये बात भी सही है की हनुमान जी विवाहित थे ही नहीं तो प्रमाण कहाँ से मिलेगा ?

  19. फिर भी आपने अपनी भूल स्वीकार करी लेकिन पुनः आप बालहठ करने लगी की हमने आपका दुष्प्रचार किया क्या ये आपकी विद्वत्ता को दर्शाता है ?

    कृपया विचार करे

    धन्यवाद

  20. शिव और अंगिरा विषय पर भी आप प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पायी – और स्वयं मान भी लिया की अंगिरा और शिव अलग अलग हैं – लेकिन पुनः आपने लिख भी दिया की अंगिरा का एक नाम शिव है – उसका भी प्रमाण नहीं – चलो एक बार को मान भी लू की अंगिरा का एक नाम शिव है – तब भी ये साबित नहीं होता की आदि सृष्टि में उत्पन्न अंगिरा ऋषि ही कैलाश के राजा हैं – और आपने जो अंगिरा की पूजा लिखी उसके लिए भी आपने भूल स्वीकार की ये अच्छी बात है – पर पुनः बालहठ अच्छा नहीं होता।

    कृपया विचार करे

  21. आप आधे घंटे लिखे अथवा पूरा दिन लिखे, उससे हमें कोई आपत्ति नहीं आपत्ति उस विषय वस्तु से है जो आप अवैदिक लिखती हैं। आपको पता है की आपके पोस्ट पढ़ने वाले आते हैं तभी आप लिखती है, ये अच्छी बात है आप वैदिक प्रमाण से लिखना शुरू करे तो और भी अच्छा हो – सप्रमाण लिखे तो बहुत उत्तम। यु ही अपने मन की बाते करनी हैं तो कृपया धर्म विषय पर न लिखे क्योंकि धर्म विषय पर लिखने से प्रमाण और सत्यता दोनों चाहिए ताकि विपक्षी की शंकाओ का भी समाधान हो यदि ऐसा नहीं होता तो आपका लेखन व्यर्थ चला जायेगा।

  22. कृपया अपने लेखन को व्यर्थ न करे। सप्रमाण, तर्कसंगत और युक्तियुक्त तत्यो से पोस्ट लिखे। निवेदन है।

    धन्यवाद

  23. युसूफ मलिक जी व्यर्थ प्रलाप न करे, यहाँ फरहाना ताज जी से हमारी सैद्धांतिक और वैचारिक बातो पर तो मतभेद हो सकता है मगर हमारा उनसे मनभेद कदाचित नहीं है, फरहाना ताज जी हमारी बहिन समान है, इसलिए आपसे निवेदन है आगे से कुछ भी लिखने से पूर्व थोड़ा विचार करे। ये एड्रेस के खेल खेलना छोड़कर थोड़ा विचार करना शुरू करे और जो क़ुरान पर शंकाए उठती हैं उनका निराकरण करने की व्यवस्था करे।

    धन्यवाद

  24. आपने अपनी पुस्तक में बताया की आप ऋषि के सत्यार्थ प्रकाश को पढ़कर सच जान गयी और तभी से वेदो को मानने लगी – मेरी बहन आपको ये भी ज्ञात होना चाहिए की ऋषि ने भी वैदिक सिद्धांत ही माने हैं और लोगो को भी उनपर ही चलने को कहा है, मगर आप अनार्ष ग्रंथो से प्रमाण देकर ऋषि के सिद्धांत पर ही कुठाराघात करती हैं और हनुमान जी को विवाहित सिद्ध करने की कोशिश करती हैं, क्योंकि रामायण और महाभारत ऐतिहासिक ग्रन्थ में कहीं भी हनुमान विवाहित नहीं पर पराशर संहिता में उन्हें विवाहित बताया इसलिए ये ग्रन्थ मान्य नहीं।

  25. विरोधी बाते होने से ग्रन्थ मान्य नहीं है, इसलिए भी पराशर संहिता का मान्य नहीं क्योंकि बहुत सी बाते उसमे वेद विरुद्ध हैं, तीसरी बात ये विवाहित हनुमान की कथा जैनियो की रामायण पदमचरित में पायी जाती है जिसके लेखक विमलसूरी हैं आपको एक बात और बता दू थाई रामायण में सुवर्चला को “मरमेड” कहा है जिसके प्रेमपाश में हनुमान जी पड़ गए – ये सब लगभग २०००-३००० वर्ष पुराण इतिहास है जबकि ऋषि ने खुद महाभारत के बाद की लिखी पुस्तको को अनार्ष कहा है, इसीलिए पुराण भी मान्य नहीं हैं, कृपया अपनी भूल सुधार ले।

    नमस्ते

  26. फरहाना जी ने हमारे दुसरे सवाल जो की शिव और अंगीरा से सम्बन्धित था उसके जवाब में उन्होंने अपनी भूल स्वीकार करते हुए इन दोनों को अलग बताया है

    आपका पुनः धन्यवाद

  27. नमस्ते बहन जी ।
    विवाद इतना बड़ा होना ही न था । शंका -समाधान की बात थी आप आर्ष ग्रन्थ से प्रमाण देकर अपनी बात सिध्द कर देती । विबाद बढने के बाद आपने उढे प्रश्नों का उत्तर दिया लेकिन अब भी प्रश्न ज्यों-का-त्यों बना हुआ है चुँक प्रमाण आर्ष ग्रन्थों से नही दिया है ।

    परंतु ये क्या हमारे उपर इस प्रकार के घिणोने आरोप मढ दिये ? मुझे लगता है आप भी अच्छी तरह से जानती होंगी की आर्य गाली-गौलज नही करते , न किसी को परेशान करते । हमारे बीच मतभेद हो सकता है मन भेद नही ।

    और आप ये भी जानती होगीं गाली-गलौज , धमकि पौराणिक या मुस्लमान या कोई छद्मभेषी ही आपको (किसी वैदिक को) दे सकता है ।

    आप विदुषि होकर द्वेश बस हम पर ऐसे आरोप मढ दियें जो हम सोच भी न सकते थे । कृप्या कर अपने शब्द वापस लें _/_ ।

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