डॉ० अम्बेडकर के मतानुसार मनुस्मृति और मनु की प्रतिष्ठा एवं प्रामाणिकता: डॉ. सुरेन्द कुमार

.   मनुस्मृति धर्मग्रन्थ एवं विधिग्रन्थ है

भारतीय साहित्य और डॉ. अम्बेडकर इस बात पर एकमत हैं कि ‘मनु मानव-समाज के आदरणीय आदि-पुरुष हैं।’ अब यह विचारणीय रहता है कि उस मनु ने कैसी समाज-व्यवस्था प्रदान की है। मनुस्मृति का अध्ययन करने के उपरान्त डॉ० अम्बेडकर ने यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया है-

(क) ‘‘स्मृतियां अनेक हैं, तो भी वे मूलतः एक-दूसरे से भिन्न नहीं हैं।………इनका स्रोत एक ही है। यह स्रोत है ‘मनुस्मृति’ जो ‘मानव धर्मशास्त्र’ के नाम से भी प्रसिद्ध है। अन्य स्मृतियां मनुस्मृति की सटीक पुनरावृ     िा हैं। इसलिए हिन्दुओं के आचार-विचार और धार्मिक संकल्पनाओं के विषय में पर्याप्त अवधारणा के लिए मनुस्मृति का अध्ययन ही यथेष्ट है।’’ (डॉ० अम्बेडकर वाङ्मय, खंड ७, पृ० २२३)

(ख) ‘‘अब हम साहित्य की उस श्रेणी पर आते हैं जो स्मृति कहलाता है। जिसमें से सबसे मह   वपूर्ण मनुस्मृति और याज्ञवल्क्यस्मृति हैं।’’ (वही, खंड ८, पृ० ६५)

(ग) ‘‘मैं निश्चित हूं कि कोई भी रूढिवादी हिन्दू ऐसा कहने का साहस नहीं कर सकता कि मनुस्मृति हिन्दू धर्म का धर्मग्रन्थ नहीं है।’’ (वही, खंड ६, पृ० १०३)

(घ) ‘‘मनुस्मृति को धर्मग्रन्थ के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।’’ (वही, खंड ७, पृ० २२८)

(ङ) ‘‘मनुस्मृति कानून का ग्रन्थ है, जिसमें धर्म और सदाचार को एक में मिला दिया गया है। चूंकि इसमें मनुष्य के कर्    ाव्य की विवेचना है, इसलिए यह आचार शास्त्र का ग्रन्थ है। चूंकि इसमें जाति (वर्ण) का विवेचन है, जो हिन्दू धर्म की आत्मा है, इसलिए यह धर्मग्रन्थ है। चूंकि इसमें कर्      ाव्य न करने पर दंड की व्यवस्था दी गयी है, इसलिए यह कानून है।’’ (वही खंड ७, पृ. २२६)

इस प्रकार मनुस्मृति एक संविधान है, धर्मशास्त्र है, आचार शास्त्र है। यही प्राचीन भारतीय साहित्य मानता है। सम्पूर्ण साहित्य में मनुस्मृति को सबसे प्राचीन और सर्वोच्च स्मृति घोषित किया है। डॉ० अम्बेडकर की उपर्युक्त यही मान्यता स्थापित होती है।

.   मनुस्मृति का रचयिता मनु आदरणीय है

डॉ० अम्बेडकर उक्त मनुस्मृति के रचयिता को आदर के साथ स्मरण करते हैं-

(क) ‘‘प्राचीन भारतीय इतिहास में मनु आदरसूचक संज्ञा थी।’’ (वही, खंड ७, पृ० १५१)

(ख) ‘‘याज्ञवल्क्य नामक विद्वान् जो मनु जितना महान् है।’’ (वही, खंड ७, पृ० १७९)

जहां डॉ० अम्बेडकर का साहित्य-समीक्षक का रूप होता है वहां वे मनु और मनुस्मृति को सम्मान के साथ स्मरण करते हैं। इस स्थिति में प्रश्न उठता है कि मान्यताओं की एकरूपता होने पर भी मनु का विरोध क्यों?

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