देशभक्त और यशस्वी हों ..

ओउम
देशभक्त और यशस्वी हों ..
देशभक्ति किसी भी देश के नागरिकों की प्रथम तथा महत्वपूर्ण आवश्यकता होती है | जब तक देश के नागरिक देशभक्त नहीं, तब तक देश का उत्थान संभव नहीं, देश की उन्नति संभव नहीं , नागरिकों में चरित्र संभव नहीं , यहाँ तक कि किसी का उत्तम भविष्य भी संभव नहीं | एक सफल राष्ट्र की यह प्रथम आवश्यकता होती है कि उस देश के नागरिक देश भक्त हों | जिस देश के नागरिक देशभक्ति में पूर्णतया अनुरक्त हों, वह देश सब प्रकार की उन्नति करते हुए विश्व में एक अग्रणी देश के रूप में उभरता है | प्रत्येक उन्नत देश का अनुगामी बनाने का प्रयास अन्य देश भी करते हैं | ठीक वैसी ही देश भक्ति, वैसे ही उत्पादन, वैसी ही सरकार तथा वैसे ही नागरिक पैदा करने के उदहारण अन्य देशों में दिए जाते हैं | इस प्रकार उस देश की ख्याति भी विश्व भर में बढ़ जाती है | उस के इस यश व कीर्ति को देख कर उस जैसा बनने की प्रेरणा सब देशों में आती है , बस इस का नाम ही यश है, यशस्विता है | अथर्ववेद मैं भी इस तथ्य को स्पस्ट करते हुए कहा है कि : –
ब्रह्म च क्षत्रं च राष्ट्रं च विशश्च,
त्विविश्च यशश्च वर्च्श्च द्रविणम च || अथर्ववेद १२.५.८ ||
हम ब्रह्म शक्ति अर्थात विद्या , क्षात्र शक्ति अर्थात शौर्य देश की उन्नति , उत्तम प्रजा अर्थात वनिक वर्ग, यश, तेज , कांति और धन प्राप्त करें |
इस मन्त्र में प्रभु से समाज व परिवार की उन्नति के लिए आठ वस्तुएं मांगी गयी हैं , ये हैं – ब्रह्म शक्ति ,क्षात्र शक्ति राष्ट्रीय ,विष ,त्विथी ,यश ,वर्चस और द्रविण .माँगा गया है |
इस मन्त्र में देशभक्ति के तथा यश प्राप्ति के लिए जो आठ वस्तुएं मांगी गयी हैं, उन में से कुछ साधन हैं और कुछ साध्य हैं | . राष्ट्र और प्रजा की उन्नति साध्य है . जहाँ विष अर्थात प्रजावर्ग संतुष्ट है ,सुखी है ,कष्ट क्लेश से रहित है , कोई संकट प्रजा को नहीं सता रहा , वहां का राष्ट्र भी प्रसन्न है | हम जानते हैं कि राष्ट्र के साथ प्रजा का अभिन्न सम्बन्ध होता I. प्रजा अंग है तो राष्ट्र अंगी होता है | प्रजा की समृधि से राष्ट्र की समृद्धि संभव हो पाती है | प्रजा और राष्ट्र की उन्नति के साधन हैं – ब्रह्मशक्ति और क्षत्र शक्ति | . जहाँ ज्ञान और शौर्य प्रबल होंगे , जहन विद्वान तथा शक्तिशाली लोग होंगे वहां सब प्रकार की उन्नति होगी | इसलिए मन्त्र के प्रारम्भ में ही इन ब्रह्म और क्षात्र सब्दों को अथवा शक्तियों को रखा गया है . ब्रह्म और अर्थात ब्राह्मण अर्थात विद्वान् लोग अर्थात शिक्षा का प्रसार करने वाले लोग तथा क्षात्र अर्थात देशा के रक्षक अथवा सैनिक व सरकार उन्नत है तो वह राष्ट्र और प्रजा को भी उन्नत करेंगे | यदि यह सुस्त हैं, उन्नति की और बढने के अभिलाषी नहीं है , निष्क्रिय है , लालची व स्वार्थी हैं तो देश का डूबना भी निश्छित ही होता है |.
जब ब्रह्म और क्षात्र के आधार पर ही देश ,राष्ट्र व इस के सब समुदाय सुख , वैभव, धन एश्वर्य के स्वामी बन पाते हैं | यदि यह दोनों शक्तियां उन्नत होगी तो ही तो प्रजा में धन की समृधि होगी तथा व धन धन्य से भरपूर हो सब प्रकार के धन एशवर्य की स्वामी बनेगी | समृधि का आधार ब्रह्म और क्षात्रशक्ति का समन्वय ही तो ह्होता है | इन दोनों शक्तियोंका एक ही उद्देश्य होता है, प्रजा को सुखी बनाना | जब प्रजा की समृधि होगी , धन धान्य से भरपूर होगी , सब प्रकार के क्लेशों से मुक्त होगी तब राष्ट्र का भी यश होगा . इस बात की विशव भर में चर्चा होगी कि अमुक देश के लोग कितने संपन्न व कष्ट रहित हैं , हम भी उनके अनुगामी बनें | जब प्रजा के सब व्यक्ति इस प्रकार के यशस्वी होंगे .तो इस यशस्विता का फल होगा कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति में वर्चस और त्विथी उत्पन्न होंगे . त्विथी दे एप्ती या काँटी है . इससे स्फूर्ति आती है . ओजस और वर्चस को इस काँटी का कर्ण बताया है |.
ऋग्वेद में भी कहा है …
तिथ्ती दधान ओजसा | ऋग्वेद . ९ .३९ .३
इस सब से स्पस्ट होता है कि प्रत्येक राष्ट्र की उन्नति, समृद्धि , सुरक्षा का आधार उस देश कि ब्रह्म शक्ति तथा उस देश कि \क्षात्र शक्ति होती है | ब्रह्म शक्ति देश को शिक्षित करने वाले लोगों से बनती है | इन लोगों की अवस्था जैसी होगी , भाविष्य भी उस प्रकार का ही बनेगा | यह लोग सुखी व क्लेश रहित हैं तो इस से शिक्षा पाने वाले समुदायों को यह लोग अच्छी शिक्षा दे पावेंगे , जिस से सब वर्ग सुखी व धन ऐश्वर्यों के स्वामी बनेंगे | यदि यह समुदाय निर्धन है, बेसहारा है, दु:खी है तो अन्यों को क्या ख़ाक शिक्षा दे पावेगा | जब स्वयं ही अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संघर्ष में लगा रहेगा तो अन्यों को शिक्षित करने के लिए उसके पास समय ही कहाँ बचेगा | इस लिए ब्रह्मशक्ति का दुःख, कष्ट से रहित होना आवश्यक है |
देश की उन्नति का आधार जो दूसरी शक्ति है उसे क्षात्र शक्ति कहा गया है | इस शक्ति का कार्य देश की व्यवस्था व सुरक्षा का होता है | ईस शक्ति को हम देश की सेना के रूप में जानते हैं | सरकार को भी हम इस श्रेणी में रख सकते हैं | इस का कार्य होता है देश के लोगों के जान व माल की रक्षा न केवल चोर डाकुओं व लुटेरों से करना ही होता है अपितु विदेशी आक्रमण कारियों से भी बचाना होता है | यह कार्य भी वह व्यक्ति ही कर सकता है जो ब्राह्मण के समान ही सुखी व संपन्न होने के साथ ही साथ सब प्रकार की शक्तियों का स्वामी है | यह सब कुछ भी एक सुखी व संपन्न व्यक्ति ही कर सकता है अन्यथा वह स्वयं के परिवार की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए संघर्ष करता रहेगा , कई बार तो इन आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए देश में ही लूट आदि के कार्य करने लगेगा , फिर अन्यों का रक्षक, अन्यों का सहयोगी कैसे बन पावेगा ? इस लिए इस समुदाय का भी सुखी व संपन्न होना आवश्यक है ताकि यह अपने कर्तव्यों को आदर सहित संपन्न कर सके |संक्षेप में हम कह सकते हैं कि वह देश, वह राष्ट्र ही सुख संपन्न व धन ऐश्वर्यों का स्वामी बन सकता है जिस के नागरिक सुखी हों तथा उस देश के नागरिक ही सुखी व धन ऐश्वर्यों के स्वामी बन सकते है ,जिस के विद्या देने वाले तथा रक्षा करने वाले सुखी व धन ऐश्वर्यों के स्वामी हों | इस ल्लिये देश को सुखों व सम्पति से भरपूर बनाने के लिए हमें ऐसे साधन अपनाने होंगे, जिस से ब्रह्मशक्ति व क्षात्र शक्ति सुखी व संपन्न हो ताकि वह अपना पूरा समय प्रजा के सुखों को बढाने व प्रजा की रक्षा करने में ही लगा सके | इस से ही लोग देशभक्त होंगे | देशभक्त ही यश पाते हैं |
डा , अशोक आर्य्य
१०४ – शिप्रा ,अपार्टमेंट, koushaambi ,गाजियाबाद

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