DARSHAN
दर्शन शास्त्र : Meemansa दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :सत्सम्प्रयोगे पुरुषस्येन्येन् द्रियाणां बुद्धिजन्म तत् प्रत्य क्षमनिमित्तं निमित्तं विद्य-मानोपलम्भनत्वा त् ४
सूत्र संख्या :4

व्याख्याकार : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय

अर्थ : प्रथम पाद सूत्र १ से ३२ तक की व्याख्या : प्रश्न—धर्म क्या है? उत्तर—वेद में जिन कर्मों के करने का आदेश है, अर्थात् वेद ने जिन कर्मों का करना मनुष्य जीवन के कल्याण के लिये बताया है वही धर्म है।१ प्रश्न—क्या बिना वेद के धर्म का ज्ञान नहीं हो सकता? उत्तर—नहीं। प्रश्न—सृष्टि के अवलोकन से भी तो धर्म का ज्ञान होता है? उत्तर—नहीं। आंख रूप को देखती है, कान शब्द को सुनता है, जीभ रस को चखती है, नाक गंध को सूंघती है, चमड़ा गर्मी सर्दी का स्पर्श करता है। ये पाँच इन्द्रियां उन्हीं चीजों का ज्ञान देती हैं जो विद्यमान हैं। इन्द्रियों का उनके अर्थों के साथ संपर्क होने से प्रत्यक्ष होता है। अर्थात् उन्हीं चीजों का जो उस समय विद्यमान हैं। अनुमान, उपमान, अर्थापत्ति, अभाव आदि प्रमाण भी प्रत्यक्ष के ही अनुसार चलते हैं। प्रत्यक्ष से स्वतन्त्र उनका कोई उपयोग नहीं। कर्तव्य कर्म विद्यमान तो होते नहीं। जब मनुष्य उनको करेगा तभी उनका प्रादुर्भाव होगा। अत: धर्म प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों द्वारा जाना नहीं जा सकता। उसके लिये वेद का उपदेश चाहिये। मुक्ति, स्वर्ग, परलोक आदि का ज्ञान आप प्रत्यक्ष द्वारा कर ही नहीं सकते।२ इसलिये धर्म को जानने के लिये वेद के ज्ञान की आवश्यकता है। प्रश्न—वेद किसको कहते हैं? उत्तर—नित्य अर्थों (Eternal Truths ) का नित्य शब्दों के साथ जो नित्य सम्बन्ध है, उसका ज्ञान वेद या उपदेश है। दिश् धातु का अर्थ है मार्ग दिखाना (To direct )। उपदेश वह है जिससे किसी कत्र्तव्य की प्रेरणा मिले (उपदिश्यते अनेन इति)। प्रश्न—शब्द का अर्थ के साथ सम्बन्ध नित्य है या नैमित्तिक? उत्तर—नित्य। अर्थात् मनुष्यकृत नहीं। ‘औत्पत्तिक’३ है। ‘उत्पत्ति’ शब्द का लाक्षणिक अर्थ है भाव या स्वभाव। शब्द और अर्थ का सम्बन्ध मनुष्य द्वारा कल्पित नहीं है। शब्द वाणी से बोला जाता है। कान से सुना जाता है। ये दोनों बातें स्वाभाविक हैं, मनुष्य कल्पित नहीं। एक मनुष्य बोलता है दूसरा सुनता है। यह बोलने सुनने का काम अर्थ-ज्ञान के लिये ही होता है। अर्थात् बोलने वाला अपने भाव दूसरे१ को बताना चाहता है। यदि भावों को दूसरों पर प्रकट करने की आवश्यकता या इच्छा न होती तो कोई न बोलता न सुनता। इससे सिद्ध हुआ कि शब्द का अर्थ के साथ स्वाभाविक या नित्य सम्बन्ध है। प्रश्न—शब्द नित्य है या अनित्य? उत्तर—शब्द नित्य है। प्रश्न—शब्द का उच्चारण होता है इसलिये अनित्य है। उत्तर—शब्द नया पैदा नहीं किया जाता। जो है उसी का प्रकाश किया जाता है। बोलने का अर्थ उत्पन्न करना नहीं है। प्रश्न—शब्द को घटा-बढ़ा सकते हैं इसलिए अनित्य हुआ? उत्तर—नाद घटता बढ़ता है। शब्द नहीं। ‘रोटी’ शब्द धीरे से बोला जाय तब भी वही अर्थ देगा जो उच्च स्वर से बोलने से। शब्द वही रहा, नाद बढ़ गया। ‘नाद’ और ‘शब्द’ में भेद है।२ प्रश्न—‘गो’ शब्द व्यक्तिबोधक है या जातिबोधक? उत्तर—उत्तर जातिबोधक। मीमांसा दर्शन में ‘जाति’ और आकृति समानार्थक हैं, ‘गो’ शब्द को सुनकर उन सब गायों पर ध्यान जाता है जो कहीं हों, कभी रही हों या भविष्य में उत्पन्न होने वाली हों। ‘यह गाय’, ‘काली गाय’, ‘मेरी गाय’ में विशेषण ‘यह’, ‘काली’, ‘मेरी’ लगाने से व्यक्ति का बोध होता है। प्रश्न—वाक्य में शब्द अलग-अलग अर्थ देते हैं या सब मिलकर? यदि हर शब्द जातिवाचक है तो वाक्य का कोई निश्चित अर्थ हो ही नहीं सकता। यह क्यों न माना जाय कि शब्दों के अर्थों की उपेक्षा करके वाक्य स्वयं अपना अर्थ देता है। उत्तर—वाक्य का अर्थ जानने में शब्दों के अर्थों की उपेक्षा नहीं कर सकते। हर शब्द अपना अर्थ देता है। उसको छोड़ता नहीं, परन्तु वाक्य में एक ‘क्रिया’ शब्द के साथ मिलकर वाक्य का अर्थ बताते हैं।१ प्रश्न—वेद पुरुषों के बनाये हैं। उनके साथ बनाने वाले पुरुषों का नाम दिया गया है। जैसे काठक (कठ के बनाये), कालापक (कलाप के बनाये), पैप्पलादक (पिप्पलाद के बनाये), मौहुल (मुहुल के बनाये)। उत्तर—नहीं, यह नाम वेद बनाने वालों के नहीं, वेदों का प्रवचन२ करने वालों के हैं। वेद तो इन पुरुषों से भी पहले थे। प्रश्न—वेद में कुछ व्यक्तियों के नाम मिलते हैं। कुछ ऐसे भी शब्द हैं जो निरर्थक प्रतीत होते हैं। उत्तर—वे नाम व्यक्तियों के नहीं हैं, उनके अर्थ हैं और अर्थों पर विचार करने से पता चल जाता है कि वे विशेष पुरुषों के नाम नहीं।३ विनियोग से ज्ञात हो जाता है कि किसी यज्ञ के सम्बन्ध में मंत्रों के शब्दों का क्या अर्थ है। वेदों में नित्यता की पुष्टि में एक लिङ्गवचन भी है। ‘‘वाचा विरूप नित्यया’’ (ऋग्वेद ८.७५.६)।

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: fwrite(): write of 34 bytes failed with errno=122 Disk quota exceeded

Filename: drivers/Session_files_driver.php

Line Number: 263

Backtrace:

A PHP Error was encountered

Severity: Warning

Message: session_write_close(): Failed to write session data using user defined save handler. (session.save_path: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/system//cache)

Filename: Unknown

Line Number: 0

Backtrace: