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क्या ईसा मसीह कुंवारी से उत्पन्न हुए थे ?

यहूदी और ईसाई मत के सम्मिलित मजहबी ग्रन्थ प्राचीन और नवीन सुसमाचार आद्योपांत कई भाषाओ में पढ़े, परन्तु ईसाई मत की सर्वश्रेष्ठता के जितने दावे किये जाते हैं, उन सबका ही घोर खंडन प्रतिवाद इन्ही के माननीय ग्रंथो में स्थान स्थान पर पाया।

इनका सबसे प्रथम और आकर्षक दावा यह है की ईसा मसीह कुंवारी से उत्पन्न हुए थे, मरियम की युसूफ बढ़ई के साथ केवल मंगनी सगाई मात्र हुई थी, कि उसको गर्भवती पाया गया।

बाइबिल में मसीह के कई भाई बहिनो के नाम आते हैं। परन्तु कहीं उनके माँ बाप के परस्पर विवाह की चर्चा नहीं मिलती।

भाइयो ! इसलिए उनके सब भाई बहन कुंवारी और पवित्र आत्मा द्वारा उत्पन्न होने के कारण खुदा के बेटे और बेटियां क्यों नहीं माने जाने चाहिए ?

हजरत मसीह के भाई और बहन –

1. वह क्या बढ़ई का पुत्र नहीं है ? क्या उसकी माता का नाम मरियम और उसके भाइयो के नाम याकूब, योशी, शिमोन और जुदा नहीं हैं ? ।। ५५ ।।
और क्या उसकी बहन हमारे यहाँ नहीं हैं ?।। ५६ ।।

(बाइबिल का नया नियम)

2. जब वह (हजरत मसीह) भीड़ से बात कर ही रहा था तो देखो उसकी माता और भाई बाहर खड़े थे। (मत्ती १२:४६)

3. ये सब एकचित्त होकर स्त्रियों के यीशु की माता मरियम के संग और भाइयो संग प्रार्थना और विनती में लगे रहते थे। (प्रेरितों के काम १:१४)

4. खुदाबंद के भाई और केफस करते हैं। (१ करन्तीनियो को खत ९:५)

5. पर रसूलो में से किसी को नहीं देखा मगर खुदाबंद के भाई याकूब को। (गलैतियो को खत १:१९)

6. जेम्स मसीह का भाई। (पेज १८६ हैण्ड बुक टू दी न्यू टेस्टामेंट)

क्या इन ६ प्रमाणों से यह सिद्ध नहीं होता है की हजरत मसीह के कई भाई और बहन थे ? क्या ये सब बिना विवाह के ही हो गए ? केवल हमको ही नहीं प्रत्युत लंका के बड़े योरोपियन पादरी बैप्टिस्ट होवार्ड जे० चार्टर बी० ए० बी० डी० मिशनरी (Haward J. Charter, B.A.B.D. Baptist Missinary) स्वयं उस प्रश्न को उठाते हैं। यथा –

There has been much controversy on the question of Jame’s exact relation to jesus and opinions are still devided on there two views.
1. That jesus and his brothers Joses, Simon and Juda were the children of Joseph and Mary and younger of our Lord.

2. That they were the children of Joseph by a farmer marriage.
The first of these two views is the most naturat conclusion from the two verses which tell us of the relationship of Jesus to the rest of the family (Matt 13:55)

Is not this the carpenter’s son ? Is not his mother called Marry ? and his brothers, James and Joseph and Simon and Judas ? (Mark 6:2)
Is not this the carpenter, the son of Mary and brothers of James and Joses and Judas and Simon ? And are not his sisters here with us ? And they were offended in Him.

The secon view has some traditional support. P186.

It is said to have been derived from the Apocryphal Gaspels of the second century, and it became popular through Origen’s influence. P.186.

Hand book to the New Testoment by Rev. Haward Baptist.

रेवरेण्ड महोदय के लिखने का आशय यह है की –

“इस बात पर विशेष चर्चा होती है की – जेम्स का मुख्य सम्बन्ध मसीह से क्या था ?” इस विषय में दो सम्मतियाँ ठहराई गयी हैं –

1. जेम्स और उसके भाई जोसफ, सिमौन और जूड़े ये युसूफ और मरियम के पुत्र थे और हमारे प्रभु के भाई थे। यह सम्बन्ध तो वास्तिविक है।

2. यह की वे जेम्स आदि युसूफ की पहली पत्नी से उत्पन्न हुए थे। पहली सम्मति के विषय में तो यह स्वाभाविक परिणाम कई आयतो से मिलता है की युसूफ का सम्बन्ध उसी परिवार से था।

(देखो मत्ती १३:५५ और मार्क ६:२)

इन सभी आयतो में इनको मैरी और युसूफ के पुत्र और पुत्री कहा गया है।
दूसरी सम्मति की प्रचलित कथानक द्वारा – रिवायती दंतकथा के तौर पर पुष्टि होती है, वह अविश्वसनीय है। यानी गैर मुअतबिर है। यह दंतकथा गौस्पेल के नाम से “ओरिजन” के प्रभाव से दूसरी शब्दावली में सर्वसाधारण में फ़ैल गयी।

परिणाम यही निकलता है की मसीह के कई सगे भाई बहन विद्यमान थे, और युसूफ बढ़ई द्वारा मरियम के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। दो पत्नियों की कहानी मनगढ़ंत है।
नोट :- “पहलौटा” शब्द भी यही सिद्ध करता है की मसीह के और भी भाई बहन थे।

अंत में स्वयं रेवरेण्ड महोदय यह परिणाम निकालते हैं –

Many Christians hold this view why prefer to believe in the perpatual verginity of Mary. But of course we must remember that preference is not proof. P.186

अर्थात – बहुत से ईसाई मरियम के नित्यकुमारी रहने के विश्वास को विशेषता देते हैं, परन्तु उनको स्मरण रखना चाहिए की केवल विशेषता देना कोई प्रमाण नहीं है।

इन थोड़े प्रमाणों से ही जिज्ञासु गण इस परिणाम पर सहज ही में पहुँच सकते हैं की मसीह कुमारीपुत्र नहीं थे। हमारा दावा है की मसीह युसूफ के वीर्य से, कई बहन भाई सहित मरियम के गर्भ में उत्पन्न हुए।

बाइबिल की परस्पर विपरीत शिक्षा – विरोधाभासी वचनो का संग्रह – बाइबिल

ईसाई भाई बाइबिल को ईश्वर का पवित्र ग्रन्थ मानते हैं और हिन्दू भाइयो का धर्मांतरण इस बाइबिल के आधार पर करवाते हैं यह कहकर कि बाइबिल ईश्वर की वाणी है – और जो ईसा पर विश्वास ले आवे वो ही मुक्ति पायेगा क्योंकि ईश्वर की “पवित्र पुस्तक” बाइबिल ऐसा निर्देश करती है –

यदि ये बात सही है – तो बाइबिल जैसी पवित्र पुस्तक में कोई भी दोष न होना चाहिए और यदि दोष नहीं होगा तो परस्पर विरुद्ध बाते भी न होनी चाहिए क्योंकि ईश्वर सर्वज्ञ है – और ईश्वर अपनी एक बात से विपरीत बात कभी भी किसी पुस्तक में नहीं देता –

क्योंकि अपनी बात जो पहले बताई उससे विपरीत बात बोलना एक सामान्य मनुष्य का कार्य तो हो सकता है क्योंकि मनुष्य स्वार्थी है – कोई एक बात बोलकर बाद में विपरीत बात बोल सकता है – यदि ईश्वर भी ऐसा विपरीत बर्ताव करने लगे तो उसे ईश्वर नहीं एक सामान्य मनुष्य ही जानना चाहिए।

आइये एक नजर बाइबिल की विपरीत शिक्षाओ पर डालते हैं जिससे सिद्ध होगा की बाइबिल ईश्वर की पुस्तक नहीं महज एक मनुष्य की बनाई है जिसमे इतना विरोधाभास है की आप गिन नहीं सकते –

देखिये –

1. ईश्वर अपने कार्य से संतुष्ट हुआ (उत्पत्ति 1.31)

ईश्वर अपने कार्य से बहुत असंतुष्ट हुआ (उत्पत्ति 6.6)

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2. ईश्वर अपने द्वारा चुने मंदिर में बसता (रहता) है। (2 इतिहास 7.12, 16)

ईश्वर किसी मंदिर में नहीं बसता (रहता) है। (प्रेरितों के काम – 7.48)

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3. ईश्वर प्रकाश में बसता है। (1 तीमुथियुस 6.16)

ईश्वर अन्धकार में बसता है। (1 राजा 8.12) (भजन संहिता 18.11) (भजन संहिता 97.2)

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4. ईश्वर को देखा और आवाज़ सुनी।
(निर्गमन 33.11, 33.23) (निर्गमन 24.9,10, 11) (उत्पत्ति 3.9-10) (उत्पत्ति 32.30) (यशायाह 6.1)

ईश्वर को देखना और ईश्वर की आवाज़ सुनना असम्भव है
(यूहन्ना 1.18) (यूहन्ना 5.37) (निर्गमन 33.20) (1 तीमुथियुस 6.16)

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5. ईश्वर थक जाता है और विश्राम करता है।
(निर्गमन 31.17) (यिर्मयाह 15.6)

ईश्वर कभी नहीं थकता और न ही कभी विश्राम करता है।
(यशायाह 40.28)

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6. ईश्वर सर्वत्र उपस्थित है – सब कुछ सुनता और जानता है
(नीतिवचन 15.3) (भजन संहिता 139.7-10) (अय्यूब 34.21-22)

ईश्वर सर्वत्र उपस्थित नहीं है – न ही सब कुछ सुनता और न ही सब कुछ जानता है –
(उत्पत्ति 11.5) (उत्पत्ति 18.20-21) (उत्पत्ति 3.8) (प्रेरितों के काम – 1.24) (भजन संहिता 139.2-3)

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7. ईश्वर सब मनुष्यो के दिलो की बात और राज़ जानता है –
(प्रेरितों के काम – 1.24) (भजन संहिता 139.2-3)

ईश्वर मनुष्यो के दिलो की बात और राज़ जानने का प्रयास करता है –
(व्यवस्थाविवरण 13.3) (व्यवस्थाविवरण 8.2) (उत्पत्ति 22.12)

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8. ईश्वर सर्वशक्तिमान है –
(यिर्मयाह 32.27) (मत्ती 19.26)

ईश्वर सर्वशक्तिमान नहीं है –
(न्यायियों 1.19)

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9. ईश्वर और उसके वचन कभी नहीं पलटते (अपरिवर्तनीय) हैं –
(यहोशू 1.17) (मलाकी 3.6) (यहेजकेल 24-14) (गिनती 23.19)

ईश्वर और उसके वचन पलटते (परिवर्तनीय) हैं –
(उत्पत्ति 6.6) (योना 3.10) (1 शमूएल 2.30-31) (2 राजा 20.1,4,5,6) (निर्गमन 33.1,3,17,14)

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10. ईश्वर निष्पक्ष और न्यायकारी है
(भजन संहिता 92.15) (उत्पत्ति 18.25) (व्यवस्थाविवरण 32.4) (रोमियो 2.11) (यहेजकेल 18.25)

ईश्वर पक्षपाती और अन्यायकारी है –
(उत्पत्ति 9.25) (निर्गमन 20.5) (रोमियो 9.11,12,13) (मत्ती 13.12)

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ये तो मात्र कुछ झलकियाँ हैं – पूरी बाइबिल एक कथन से सर्वथा विपरीत कथनो एवं शिक्षाओ से परिपूर्ण है – यदि ये ईश्वर की पुस्तक होती तो इसमें विरोधाभासी बाते लेशमात्र भी न होती –

इससे सिद्ध है बाइबिल ईश्वरीय ज्ञान नहीं –

कृपया सत्य को जानिए – वेद की और लौटिए – क्योंकि एकमात्र वेद ही – पक्षपात, वैरभाव, विरोधाभासी शिक्षाओ से रहित ईश्वरीय ज्ञान है –

नमस्ते

क्या ईसा मरकर अपना बलिदान दिया और पुनः जिन्दा भी हुए थे ?

विषय को पढ़कर आप सभी चौंक जरूर गए होगे की ये क्या लिखा – सभी ईसाई ऐसा मानते हैं – ईसाई भाई कुछ इस प्रकार कहते हैं कि ईसा ने अपना बलिदान मनुष्यो के लिए दिया जिससे अब जो ईसा को “खुदा का बेटा” माने तो निश्चित ही स्वर्ग जायेगा – ये भी मात्र कपोल कल्पना ही है – क्योंकि यदि ईसा ने अपने आप बलिदान दिया होता तो क्रॉस पर चढाने से पहले और क्रॉस पर भी अपने मारे जाने से दुखी न होता न ही अपनी जान बचाने को ईश्वर से प्रार्थना करता और न ही ईसा मरकर पुनः जिन्दा हो गए थे मगर हमारे ईसाई भाइयो को इसमें भी शायद कोई संदेह दिखलाई नहीं देता इसीलिए इस भ्रान्ति को बहुत बड़ा चमत्कार बताते हुए नासमझ और भोले भाले हिन्दू भाइयो को बहकाते हैं – उनको स्वर्ग का सब्जबाग दिखाते हैं – और हिन्दू भाई इस स्वर्ग के लालच में आकर इस भ्रान्ति को चमत्कार मान अंगीकार करते हुए अपना शुद्ध वैदिक धर्म छोड़ ईसाइयो के अन्धविश्वास और पाखंड रुपी चंगुल में फंस जाते है।

इस चंगुल में फंस कर न तो कभी स्वर्ग अथवा नरक को समझ पाता – और मुक्ति विषय तो पूछिये ही मत क्योंकि जो व्यक्ति अंधविश्वास और पाखंड में सदैव लिप्त रहेगा वो कभी इस जन्म मरण के चक्र से मुक्त नहीं हो सकता – हाँ अपने किये कर्मो द्वारा स्वर्ग (सुख विशेष) और नरक (दुःख विशेष) प्राप्त अवश्य करता है और इस प्रकार के स्वर्ग नरक को प्राप्त करवाने हेतु कोई ईसा मूसा मुहम्मद आदि की गवाही और राह पर चलना जरुरी नहीं – क्योंकि जो व्यक्ति जैसे कर्म करता वैसे ही फल भोगता है – ये ईश्वरीय विधान है – इसमें कोई तथाकथित “ईश्वर का बेटा” या नबी अथवा रसूल कोई कुछ कम बढ़ती नहीं करवा सकता –

खैर हम विषय पर चलते हैं – विषय है क्या क्या ईसा मरकर अपना बलिदान दिया और पुनः जिन्दा भी हुए थे ?

पूरी बाइबिल (ओल्ड + न्यू टैस्टमैंट) को यदि आप ध्यानपूर्वक पढ़ लेवे तो आपकी शंका खुद ही खत्म हो जाएगी क्योंकि अलग अलग चैप्टर (अध्याय) में अलग अलग तरीके से बताया गया है – जिससे ईसा के मरने पर ही शंका हो जाती है –
दुबारा जिन्दा होने की तो बात ही छोड़िये – दुबारा जिन्दा तो तब होगा न भाई जब कोई मर गया हो – बाइबिल पढ़ने से तो यही ज्ञात होता है की ईसा साहब मरे ही नहीं थे – वे तो जिन्दा थे – इससे मरकर दुबारा जिन्दे होने का सवाल ही पैदा नहीं होता – और जब मरे ही नहीं तो बलिदान कैसा ?

जबकि सच्चाई यह है की अपनी जान बचाने के लिए ईसा ईश्वर से बार बार प्रार्थना करते नजर आये – यहाँ तक कि वो समय जिसमे ईसा को सूली पर चढ़ाया गया उस समय को टालने (अपने आप से हटाने) तक के लिए प्रार्थना की थी।

आइये सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं –

1. हे मेरे पिता ! जो हो सके तो यह कटोरा (सूली की मृत्यु) पास से टल जाए। (मत्ती २६:३९)

2. यदि हो सके तो यह घड़ी (मौत) उससे टल जाए। (मरकुस (मार्क) १४:३५)

3. यह बात कहकर यीशु आत्मा में घबराया। (यूहन्ना १३:२१)

4. उसने अपने शरीर के दिनों में ऊँचे शब्द से पुकारकर और रोकर, उससे जो मृत्यु से बचा सकता था, विनती की, निवेदन किये। (इब्रानियों को पत्र ५:७)

5. यीशु ने बड़े जोरो से पुकार कर कहा – “एलीएली लामा शवकतनी” अर्थात हे मेरे ईश्वर ! तूने मुझे क्यों त्यागा है ? (मत्ती २७:४)

उपरोक्त यीशु द्वारा की गयी प्रार्थनाओं और रुदन से स्पष्ट है की यीशु ने कोई बलिदान नहीं दिया – क्योंकि जो बलिदान होता है – उसमे ऐसे प्रार्थना और रुदन नहीं होता –

उदहारण के लिए शहीद भगत सिंह आदि वीरो को देखिये जब उन्हें फांसी के लिए ले जाया जा रहा था तो उन्हें कोई दुःख नहीं था – बल्कि वतन के लिए क़ुर्बान होने का सुख था – और वो “मेरा रंग दे बसंती चोला” गाकर जेलख़ानो में सुनाया गया – इसे कहते हैं बलिदान।

“सच्चा बलिदान”

अब हमारे ईसाई भाई कैसे इस “हत्या के षड्यंत्र” को ईसा का बलिदान सिद्ध करेंगे ? जबकि ईसा खुद स्वेच्छा से सूली पर नहीं चढ़ा – उसको तो मारने का षड्यंत्र किया गया क्योंकि ईसा ने अपने आप को “ईश्वर का बेटा” घोषित करने की मिथ्या चाल चली थी – जो की उस समय के कानून के हिसाब से दण्डित कृत्य था –

खैर जो भी हो अभी तो ईसाई भाई केवल यही बता देवे की जब ईसा ने अपना बलिदान ही नहीं दिया जैसे की बाइबिल खुद सिद्ध करती है – तो आप ईसाई ऐसा शोर क्यों मचाते हो की ईसा ने अपना बलिदान मनुष्यो के लिए दिया और जो ईसा को माने सो स्वर्ग का अधिकारी होगा ?

अभी भी समय है – पाखंड छोड़िये – और सत्य सनातन वैदिक धर्म को अपनाये – चाहे ईसा को मानो या न मानो – अपने कर्मो के आधार पर सभी स्वर्ग (सुख विशेष) के अधिकारी हैं –

इसलिए ये स्वर्ग का लालच छोड़ – शुद्ध और सात्विक कृत्य करे – वेदो की और लौटे
खैर अब आगे देखते हैं – क्या यीशु सूली पर मर गए थे और पुनः जिन्दा हो गए ?

अन्धविश्वास और पाखंड रुपी चंगुल

अगले भाग में …….

यहोवा का भूला बिसरा ज्ञान – ऊट पटांग विरोधी बातो से भरी बाइबिल

लगता है बाइबिल का लेखक नशे में टुन्न था – या फिर मदहोशी में बाइबिल लिखी गयी –

क्योंकि ईश्वर भूत भविष्य और वर्तमान सब जानता है – इसलिए वो अतीत की बातो का भी पूर्ण ज्ञान रखता है –

पर क्या बाइबिल का यहोवा इसी प्रकार का ज्ञान रखता है ? यदि हाँ तो “यहोवा” सब कुछ जानने वाला “सर्वज्ञ” है – नहीं तो वो ईश्वर नहीं – मात्र एक मनुष्य ही कहलायेगा – जिसे अपनी ही बनाई अतीत का पता तक नहीं ?

एक नजर बाइबिल में वर्णित इतिहास की बातो पर –

1. पशु आदि सभी जीवो की उत्पत्ति के बाद मनुष्य को बनाया (उत्पत्ति – १:२४,२५,२६,२७)

तब परमेश्वर ने कहा – “पृथ्वी हर एक जाती के जीव जंतु उत्पन्न करे बहुत से भिन्न जाती के जानवर हो ……. यही सब हुआ (२४)

तो, परमेश्वर ने हर जाती के जानवरो को बनाया। परमेश्वर ने जंगली जानवर, पालतू जानवर और सभी छोटे रेंगने वाले जीव ……. परमेश्वर ने देखा की यह अच्छा है (२५)

तब, परमेश्वर ने कहा, “अब हम मनुष्य बनाये। हम मनुष्य को अपने जैसा बनाएंगे। मनुष्य हमारी तरह होगा …………. जीवो पर राज करेगा।”

तो यहोवा द्वारा उत्पत्ति (gen) के पहले अध्याय में यह बताया जाना की पशु आदि सभी जीवो की उत्पत्ति के बाद मनुष्य को उत्पन्न किया – सिद्ध होता है –

चलिए अब दूसरे अध्याय में देखते हैं क्या वहां भी यहोवा यही बात कहता है ? कहीं ऐसा तो नहीं यहोवा भूल गया और कुछ का कुछ बोल दिया ?

आइये देखिये –

तब यहोवा परमेश्वर ने कहा, “में समझता हु कि मनुष्य का अकेला रहना ठीक नहीं है। में उसके (मनुष्य) के लिए एक सहायक बनाऊंगा जो उसके लिए उपयुक्त होगा।” (२:१८)

यहोवा ने पृथ्वी के हर एक जानवर और आकाश की हर एक पक्षी को भूमि की मिटटी से बनाया। यहोवा इन सभी जीवो को मनुष्य के सामने लाया और मनुष्य ने हर एक का नाम रखा। (२:१९)

मनुष्य ने पालतू जानवरो, आकाश के सभी पक्षियों और जंगल के सभी जानवरो का नाम रखा। मनुष्य ने अनेक जानवर और पक्षी देखे लेकिन मनुष्य कोई ऐसा सहायक नहीं पा सका जो उसके योग्य हो। (२:२०)

अब देखिये कितनी विचित्र बात है – यहोवा ने पहले अध्याय में बोला की पशु आदि सभी जीवो की उत्पत्ति के बाद मनुष्य को बनाया –

और दूसरे अध्याय में बता दिया की मनुष्य के लिए कोई सहायक होना चाहिए जिससे मनुष्य का अकेलापन दूर हो इसलिए मनुष्य उत्पन्न करने के बाद पशु आदि जीव उत्पन्न किये

अब इनमे से कौन सी बात सही माने ? कोई ईसाई भाई जरा शंका समाधान कर देवे।

नोट : एक विशेष बात नोट कीजिये – केवल यही विरोध नहीं है – दूसरा मसला है की जब यहोवा कुछ बनाता है उसके बाद ही उसे ज्ञात होता है की ये तो अच्छा है –
मतलब की पहले से नहीं पता होता की जो यहोवा बना रहा है – वो अच्छा ही बनेगा – कोई श्योरटी नहीं – पता नहीं कब बुरा बन जायेगा –

दूसरी बात जो ये पशु आदि जीव मनुष्य का अकेलापन दूर करने हेतु बनाये – उससे मनुष्य का अकेलापन दूर नहीं हुआ – और पशु आदि जीव उत्पन्न करने का कुछ प्रयोजन भी सफल नहीं हुआ – क्योंकि मनुष्य का एकाकीपन – इन पशुओ से दूर न हो सका – क्या यही यहोवा का ज्ञान है जो ये भी न जान सका की एक मनुष्य नहीं उसे भी जोड़े से ही उत्पन्न करना था जैसे की सभी पशु पक्षियों को जोड़ियों से उत्पन्न किया ?

शायद इसलिए आगे की आयत में एक अति विज्ञानं की बात यहोवा ने कर दी – मनुष्य को गहरी नींद में सुलाने के बहाने उसकी पसली चोरी की और हव्वा को बना दिया –

वाह क्या करामात है ! हैरत अंगेज – ये काम तो मनुष्य भी बुरा ही मानते हैं – किसी को सुला के या बेहोश कर उसकी किडनी आदि निकाल लेते – बताओ क्या ये ईश्वर के काम होंगे ?

ईश्वर होता तो जैसे मनुष्य और पशु आदि जीवो को मिटटी से बनाया – वैसे हव्वा को बनाने का विज्ञानं क्या यहोवा भूल गया था ? या हव्वा मिटटी से नहीं बन सकती थी ? और यदि मिटटी से ही बना दिया – तो जो शरीर है उसमे पानी अग्नि वायु आदि अवयव का करामात किसी और यहोवा ने किया ? यानी यहोवा का भी यहोवा ?

कुछ तो गड़बड़ जरूर रही होगी क्यों ईसाई मित्रो ?

क्या ये ईश्वर के कथन और गुण सिद्ध होते हैं ?

यहोवा तो शायद खुद कंफ्यूज है की पहले क्या बनाया ?

किसी ईसाई भाई को पता हो तो बताये – पहले किसकी उत्पत्ति हुई ?

मनुष्य की अथवा पशु आदि जीवो की ?

आखिर क्यों मैं एक ईसाई नहीं हु

यह लेख ईसाइयों के अनुरूप इस धारणा से प्रेरित है की यदि में ऐसा विश्वास करू की बाइबिल ही एक सच्ची ईश्वरीय किताब है तो मैं एक ईसाई बन जाऊंगा। मगर मेरे वैदिक धर्मी बने रहने के बहुत से अनेक कारण हैं जिन पर बाइबिल का ईश्वरी पुस्तक होने का विश्वास नहीं हो पाता। उनमे से कुछ मुख्य कारण हैं :

1. “सर्वोच्च शक्ति” मात्र एक “सनाई पर्वत” अथवा ७वे आसमान पर रहती है ? यह बात आज के आधुनिक विज्ञानं सम्मत तार्किक आधार युक्त नहीं।

जबकि दूसरी और वेद कहते हैं – कण कण में ईश्वर व्याप्त है और यही विज्ञानं का मूलभूत आधार है क्योंकि प्रत्येक अणु परमाणु को गति देने का काम ईश्वर करता है यदि ऐसा न हो तो ब्रह्माण्ड की गतिशीलता बंद होकर नाश का कारण होगा जबकि ईश्वर प्रत्येक अणु परमाणु में व्याप्त होकर उसे गति देता है जिससे ब्रह्माण्ड निरंतर नियमवत अपने कार्य में तल्लीन है

2. “सर्वोच्च शक्ति” का दयालु और प्रेम भाव बाइबिल के ईश्वर से नदारद रहना।

जबकि ईश्वर ने मनुष्यो को एक दूसरे से प्रेमभाव बरतने को कहा और सभी जीवो को अपने पुत्रवत समझकर अपना प्रेम एकसामान सभी जीवो पर लुटाया।

3. “सर्वोच्च शक्ति” का अर्थात बाइबिल के ईश्वर का बाइबिल अनुसार पूजा के लिए अधिकार न देकर एक मनुष्य की पूजा करवा पाखंड को बढ़ावा देना।

वेद में ईश्वर ने कहीं भी अपना गर्वगण्ड न करके मनुष्यो को स्वतंत्र कर्म करने को कहा – उस कर्म में ईश्वर की उपासना केवल उस ईश्वर का धन्यवाद स्वरुप है – जिसका स्वर्ग नरक से कुछ लेना देना नहीं

4. बाइबिल में “सर्वोच्च शक्ति” यानी बाइबिल के ईश्वर का अपनी कही बातो से मुकर जाना या फिर एक बात से दूसरी विरोधी बात करना।

वेद में ईश्वर की कल्याणमयी वाणी से सिद्ध है कहीं भी एक से उलट दूसरी बात वा शिक्षा नहीं पायी जाती

5. “सर्वोच्च शक्ति” का विज्ञानं सम्मत ज्ञान न होना।

वेद में तृण से लेके ब्रह्माण्ड पर्यन्त सब वस्तुओ का यथावत ज्ञान है

6. “सर्वोच्च शक्ति” का अपने बनाये मनुष्यो और उनके सद्भाव को देखकर, जलना, हिरस करना, चिढ़ना, द्वेष, घृणा और पक्षपात आदि करना।

वेद में ईश्वर ने कहा “मनुर्भव” अर्थात मनुष्य बनो – कहीं भी कोई सम्पर्दायी बात नहीं – ना ही कहीं – हिन्दू, मुस्लिम अथवा ईसाई बन जाने लालच या स्वर्ग नरक का डर।

7. “सर्वोच्च शक्ति” द्वारा महिलाओ के प्रति द्वेष, घृणा और नफरत आदि ज्ञान से उनका शोषण करवाना।

वेद ने महिलाओ को अबला नहीं सबला कहा, निर्मात्री कहा, ये सिद्ध करता है वेद नारियो को “देवी” पवित्र कहता है

8. “सर्वोच्च शक्ति” द्वारा भाई-बहन, माता पुत्र, पिता पुत्री, आदि अनेक रिश्तो की मर्यादाओ को तार तार करवाना।

पूरी सृष्टि जब से बनी तब से ही रिश्तो की मर्यादाओ का पूरा ध्यान वेद ने दिया है, इसीलिए सृष्टि की आदि में अनेक स्त्री पुरषो की उत्पत्ति ईश्वर करता है – ना की आदम हव्वा बना के भाई बहन का रिश्ता कलंकित करता है

9. “सर्वोच्च शक्ति” द्वारा उपलब्ध करवाई “ईश्वरीय पुस्तक” में ज्ञान, विज्ञानं की जगह, छल, कपट, धोखा, वैमनस्य, इतिहास, जादू, टोना, और अतार्किक अन्धविश्वास आदि भ्रम युक्त अज्ञान का समावेश होना।

वेद में केवल ज्ञान, विज्ञानं, और पदार्थविद्या का यथावत ज्ञान है, आडम्बर, ढकोसले, और पाखंड का वेद से दूर दूर तक कोई नाता नहीं

10. “सर्वोच्च शक्ति” द्वारा इस किताब पर बिना तर्क, प्रमाण आदि युक्तियों द्वारा सिद्ध किये केवल विश्वास ले आने पर ही स्वर्ग भेजने का प्रलोभन देना।

वेद कहता है – इसलिए ना मानो क्योंकि वेद है इसलिए मानो क्योंकि तुम्हारे पास बुद्धि है, सत्य को ग्रहण करो और असत्य का त्याग करो

कोई भी ऐसी पुस्तक जो अपने को ईश्वरीय होने का दम्भ भरती हो, लेकिन उसमे यदि ऐसी विवादास्पद बाते अथवा विषय पाये जाए तो क्या उसे ईश्वरीय पुस्तक का दर्ज़ा दिया जा सकता है ?

क्या कोई “सर्वोच्च शक्ति” ऐसी बेतुकी और निराधार बाते अपनी पुस्तक में लिखवा सकती है ?

में जानता हु अधिकांश लोग इन सभी बातो को ईश्वरीय होने से नकार देंगे – और यही वजह है की मेने भी बाइबिल को ईश्वरीय होने से इन्ही कारणों के मद्देनजर नकार दिया है। क्योंकि ये पुस्तक या ऐसी ही अन्य सम्प्रदायों की पुस्तके – ईश्वरीय होने का दम्भ तो भरती हैं मगर उनके सभी दावे जमीनी हकीकत पर खोखले सिद्ध होते हैं क्योंकि ईश्वरीय पुस्तक ज्ञान और विज्ञानं से भरी होनी चाहिए नाकि ऐसी बुद्धि विहीन बातो से।

जाहिर है इस लेख से सभ्य समाज सहमत होगा और इस पुस्तक को केवल कुछ मनुष्यो द्वारा अपने फायदे और स्वार्थ की पूर्ति हेतु बनाई गयी पुस्तको की संज्ञा देगा नाकि ईश्वरीय ग्रन्थ की।

अभी भी समय है, सम्पूर्ण विश्व के कल्याण हेतु, ब्रह्माण्ड की शांति हेतु, आइये लौटिए ईश्वर की सच्ची, कल्याणमयी वाणी की और, ज्ञान की और, न्याय और विज्ञानं की और

आओ लौट चले वेदो की और

नमस्ते

अभी पॉइंट तो बहुत उठ सकते हैं, मगर फिलहाल पोस्ट बड़ी न हो जाए इस हेतु मुख्यतया इन्ही १० बिन्दुओ पर विचार करेंगे।

शेष अगले भाग में –

ईसाई पैगम्बर अत्यंत चरित्र हीन थे – पार्ट 2

पैगम्बर दाऊद ने ऊरिय्याह की पत्नी से व्यभिचार किया।

2 सांझ के समय दाऊद पलंग पर से उठ कर राजभवन की छत पर टहल रहा था, और छत पर से उसको एक स्त्री, जो अति सुन्दर थी, नहाती हुई देख पड़ी।

3 जब दाऊद ने भेज कर उस स्त्री को पुछवाया, तब किसी ने कहा, क्या यह एलीआम की बेटी, और हित्ती ऊरिय्याह की पत्नी बतशेबा नहीं है?

4 तब दाऊद ने दूत भेज कर उसे बुलवा लिया; और वह दाऊद के पास आई, और वह उसके साथ सोया। ( वह तो ऋतु से शुद्ध हो गई थी ) तब वह अपने घर लौट गई।

5 और वह स्त्री गर्भवती हुई, तब दाऊद के पास कहला भेजा, कि मुझे गर्भ है।
(शमूएल 2 अध्याय 11)

अब दाऊद ने जो व्यभिचार और पाप किया उसे छिपाने को ऊरिय्याह को मरवा डालने की योजना बनाई

14 बिहान को दाऊद ने योआब के नाम पर एक चिट्ठी लिखकर ऊरिय्याह के हाथ से भेजदी।

15 उस चिट्ठी में यह लिखा था, कि सब से घोर युद्ध के साम्हने ऊरिय्याह को रखना, तब उसे छोडकर लौट आओ, कि वह घायल हो कर मर जाए।
(शमूएल 2 अध्याय 11)

अब जब ऊरिय्याह को मरवा डाला जोकि दाऊद की सोची समझी चाल थी –

16 और योआब ने नगर को अच्छी रीति से देख भालकर जिस स्थान में वह जानता था कि वीर हैं, उसी में ऊरिय्याह को ठहरा दिया।

17 तब नगर के पुरुषों ने निकलकर योआब से युद्ध किया, और लोगों में से, अर्थात दाऊद के सेवकों में से कितने खेत आए; और उन में हित्ती ऊरिय्यह भी मर गया।

18 तब योआब ने भेज कर दाऊद को युद्ध का पूरा हाल बताया;
(शमूएल 2 अध्याय 11)

अपनी योजना पूरी हो जाने पर अर्थात दाऊद की कामपिपासा शांत होने की राह का रोड़ा ऊरिय्यह के मर जाने पर फिर ऊरिय्याह की बीवी को अपने घर में डाला

27 और जब उसके विलाप के दिन बीत चुके, तब दाऊद ने उसे बुलवाकर अपने घर में रख लिया, और वह उसकी पत्नी हो गई, और उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। परन्तु उस काम से जो दाऊद ने किया था यहोवा क्रोधित हुआ।
(शमूएल 2 अध्याय 11)

ऐसे ऐसे पैगम्बर ईसाइयो में हुए हैं।

अब इन्हे पैगम्बर कौन कहे ?

क्या ये पैगम्बरी के काम थे ?

किसी औरत को नहाते देखना – फिर अपनी काम पिपासा को शांत करने हेतु उस औरत को बुलवा लेना – मौज मस्ती करना – अगर उस औरत का पति राह का रोड़ा बने तो ठिकाने लगवा देना – फिर उस औरत का जमकर उपभोग करना –
भाई फिल्मो में और हालिया जिंदगी में ऐसे काम विलेन करते हैं – यानी खलनायक – यानी बुरे लोग – मगर पुरानी फिल्मो में तो विलेन भी ऐसे नहीं दिखाते थे – कम से कम नारी का सम्मान कुछ तो होता ही था – ये तो पैगम्बर कम – प्रेम चोपड़ा और गुलशन ग्रोवर जैसे लोगो का दादा जरूर लगता है –
आप क्या कहते हो ?

नोट : ऊरिय्याह कौन था ? ये जानना बहुत जरुरी है –

ऊरिय्याह अपने स्वामी दाऊद के प्रति वफादार, कर्तव्यनिष्ठ, सच्चा, ईमानदार और वीर पुरुष था। जो की ऊरिय्याह की दाऊद को बोली इस बात से सिद्ध होता है

7 जब ऊरिय्याह उसके पास आया, तब दाऊद ने उस से योआब और सेना का कुशल क्षेम और युद्ध का हाल पूछा।

8 तब दाऊद ने ऊरिय्याह से कहा, अपने घर जा कर अपने पांव धो। और ऊरिय्याह राजभवन से निकला, और उसके पीछे राजा के पास से कुछ इनाम भेजा गया।

9 परन्तु ऊरिय्याह अपने स्वामी के सब सेवकों के संग राजभवन के द्वार में लेट गया, और अपने घर न गया।

10 जब दाऊद को यह समाचार मिला, कि ऊरिय्याह अपने घर नहीं गया, तब दाऊद ने ऊरिय्याह से कहा, क्या तू यात्रा करके नहीं आया? तो अपने घर क्यों नहीं गया?

11 ऊरिय्याह ने दाऊद से कहा, जब सन्दूक और इस्राएल और यहूदा झोंपडिय़ों में रहते हैं, और मेरा स्वामी योआब और मेरे स्वामी के सेवक खुले मैदान पर डेरे डाले हुए हैं, तो क्या मैं घर जा कर खाऊं, पीऊं, और अपनी पत्नी के साथ सोऊं? तेरे जीवन की शपथ, और तेरे प्राण की शपथ, कि मैं ऐसा काम नहीं करने का।

12 दाऊद ने ऊरिय्याह से कहा, आज यहीं रह, और कल मैं तुझे विदा करूंगा। इसलिये ऊरिय्याह उस दिन और दूसरे दिन भी यरूशलेम में रहा।

देखो ईसाई मित्रो – तुम्हारे बाइबिल में ही तुम्हारे पैगम्बरों के बारे में क्या क्या लिखा है ? फिर भी तुम ऐसे लोगो को श्रेष्ठ पुरुष समझने से बाज़ नहीं आ रहे ?
क्या श्रेष्ठ पुरुष ऐसे ही होते हैं जो :

औरत को नहाते हुए नगनवस्था में देखे ?

अपनी काम पिपासा को शांत भी न कर पाये ?

अपनी कामाग्नि को शांत करने को किसी नारी के साथ व्यभिचार तक कर लेवे ?

और हद्द तो तब हो जाए जब अपनी कामाग्नि से धहकते हुए – उस स्त्री के पति को मारने के लिए चालबाजियां करे ?

धूर्तता से, छल से, कपट से उस वीर को मारे ?

औरत को पाने के लिए चाल चले ?

अपने ही कर्तव्यपरायण, सच्चे, निर्भीक, वफादार, ईमानदार पुरुष को पुरस्कृत करने की बजाये उसे मरवा के उसकी बीवी के साथ रंगरलियां मनाते रहे ?

क्या इसी को ईसाइयत में पैगम्बरी कहते हो ?

और देखो – यहोवा क्रोधित हुआ और दाऊद को क्या कहा –

9 तू ने यहोवा की आज्ञा तुच्छ जान कर क्यों वह काम किया, जो उसकी दृष्टि में बुरा है? हित्ती ऊरिय्याह को तू ने तलवार से घात किया, और उसकी पत्नी को अपनी कर लिया है, और ऊरिय्याह को अम्मोनियों की तलवार से मरवा डाला है।

10 इसलिये अब तलवार तेरे घर से कभी दूर न होगी, क्योंकि तू ने मुझे तुच्छ जानकर हित्ती ऊरिय्याह की पत्नी को अपनी पत्नी कर लिया है।

11 यहोवा यों कहता है, कि सुन, मैं तेरे घर में से विपत्ति उठा कर तुझ पर डालूंगा; और तेरी पत्नियों को तेरे साम्हने ले कर दूसरे को दूंगा, और वह दिन दुपहरी में तेरी पत्नियों से कुकर्म करेगा।

12 तू ने तो वह काम छिपाकर किया; पर मैं यह काम सब इस्राएलियों के साम्हने दिन दुपहरी कराऊंगा।

13 तब दाऊद ने नातान से कहा, मैं ने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है। नातान ने दाऊद से कहा, यहोवा ने तेरे पाप को दूर किया है; तू न मरेगा।

14 तौभी तू ने जो इस काम के द्वारा यहोवा के शत्रुओं को तिरस्कार करने का बड़ा अवसर दिया है, इस कारण तेरा जो बेटा उत्पन्न हुआ है वह अवश्य ही मरेगा।
(शमूएल 2 अध्याय 12)

अब बताओ – ये इनके ईश्वर यहोवा का इन्साफ है – मतलब की एक व्यक्ति ने अगर किसी महिला का बलात्कार किया = तो उसकी सजा बलात्कारी की बहन को बलात्कार करके दी जाए –

वाह रे वाह धन्य हो ईसाइयो –

क्या महिला की कोई इज्जत नहीं होती ?

और वो जो बच्चा पैदा हुआ – उसमे उसकी क्या गलती थी ? उस बच्चे को क्यों मार ? मारना तो दाऊद को था –

क्या ये इन्साफ है ?

तो नाइंसाफी किसे कहे ?

कृपया सत्य को समझे –

ज्ञान और विज्ञानं की और लौटे

न्याय और धर्म की और लौटे

सत्य की और लौटे

आओ लौट चलो वेदो की ओर

नमस्ते

ईसाई पैगम्बर अत्यंत चरित्र हीन थे – पार्ट 3

मित्रो जैसे की पिछली दो पोस्ट से ये कारवां चलता आ रहा है की सत्य को सामने रखा जाए – और असत्य को दूर फेक दिया जाए – उसी कड़ी में पेश है – एक और सत्य की खोज।

हजरत दाऊद का चरित्र जो बाइबिल में एक कामांध, कामपिपासु, स्त्रियों का अत्यधिक सेवक, और निर्लज्ज आदमी – जिसने अपनी कामपिपासा को शांत करने हेतु अपने खुद के एक कर्तव्यनिष्ठ, सच्चे, वीर, वफादार योद्धा को जान से मरवा दिया ताकि उसकी बीवी को हथिया सके। उसके साथ रंगरलियां मना सके।

जिसकी मानसिकता ऐसी थी उसकी संतान कैसी होगी ? क्या आपने कभी सोचने का पर्यत्न किया ?

आइये आज प्रयत्न करते हैं सत्य को खोजने का

जैसे की हम सब जानते हैं –

बाप पे पूत,
नसल पे घोडा
बहुत नहीं, तो थोड़ा थोड़ा।

ये पोस्ट इसी विषय को चरितार्थ करती है। आपको पिछली पोस्ट में हजरत दाऊद जैसे पैगम्बर के बारे में बाइबिल क्या कहती है – उससे रूबरू करवाया था।
अब थोड़ा मुखातिब हुआ जाये हजरत दाऊद के संतानो से।

हजरत दाऊद का एक बेटा था – अबशालोम

हजरत दाऊद का एक और बेटा था – अम्नोन

हजरत दाऊद की एक बेटी – तामार जो अबशालोम की बहिन थी।

यानी तीनो एक ही पिता से उत्पन्न भाई बहिन थे।

अब हुआ क्या ?

हुआ ये की भाई का दिल अपनी बहन पर आ गया

यानी दाऊद के एक बेटे अम्नोन का दिल अपनी बहन तामार पर आ गया।

1 इसके बाद तामार नाम एक सुन्दरी जो दाऊद के पुत्र अबशालोम की बहिन थी, उस पर दाऊद का पुत्र अम्नोन मोहित हुआ।
(2 शमूएल, अध्याय 13)

अब दिल आ जाये तो क्या करे ? वही होता है – जो आशिक़ों का हाल होता है – खाना पीना छूट जाना – भूख प्यास न लगना, बीमार पड़ जाना आदि आदि। वही अम्नोन के साथ हुआ।

2 और अम्नोन अपनी बहिन तामार के कारण ऐसा विकल हो गया कि बीमार पड़ गया; क्योंकि वह कुमारी थी, और उसके साथ कुछ करना अम्नोन को कठिन जान पड़ता था।
(2 शमूएल, अध्याय 13)

अब क्या करे अम्नोन ? सो अपने दोस्त की सलाह ली।

3 अम्नोन के योनादाब नाम एक मित्र था, जो दाऊद के भाई शिमा का बेटा था; और वह बड़ा चतुर था।

4 और उसने अम्नोन से कहा, हे राजकुमार, क्या कारण है कि तू प्रति दिन ऐसा दुबला होता जाता है क्या तू मुझे न बताएगा? अम्नोन ने उस से कहा, मैं तो अपने भाई अबशालोम की बहिन तामार पर मोहित हूं।

5 योनादाब ने उस से कहा, अपने पलंग पर लेटकर बीमार बन जा; और जब तेरा पिता तुझे देखने को आए, तब उस से कहना, मेरी बहिन तामार आकर मुझे रोटी खिलाए, और भोजन को मेरे साम्हने बनाए, कि मैं उसको देखकर उसके हाथ से खाऊं।
(2 शमूएल, अध्याय 13)

बस जी बन गया काम – अंधे को क्या चाहिए – दो आँखे –

हजरत दाऊद जो की पैगम्बर थे – यहोवा इनसे बात करता था – पता नहीं यहोवा कहाँ गुम हुआ जो ऐसी जरुरत की बताने वाली बात – अथवा पाप को होने से बचा भी न पाया और न हजरत दाऊद को बता पाया – शायद यहोवा भी इस काम को पसंद करता हो ?

खैर हजरत दाऊद ने खबर भिजवा दी – तामार को भेजो – अम्नोन खाना खाना चाहता है – पता नहीं पैगम्बरी ने साथ क्यों न दिया – जो भविष्य की बात ऐसे पैगम्बर चुटकी में जान लेते हैं – इस पाप से अनभिज्ञ रहे ? हो सकता है हजरत दाऊद इस काम को मन से समर्थन दे रहे हो ?

खैर जो भी हो – तामार आ गयी अपने बीमार भाई को ठीक करने के लिए। धन्य है ऐसी बहिन जो अपने भाई की बिमारी की खबर मिलते ही पधार गयी – और पूरी बना दी।

7 और दाऊद ने अपने घर तामार के पास यह कहला भेजा, कि अपने भाई अम्नोन के घर जा कर उसके लिये भोजन बना।

8 तब तामार अपने भाई अम्नोन के घर गई, और वह पड़ा हुआ था। तब उसने आटा ले कर गूंधा, और उसके देखते पूरियां। पकाईं।

मगर अम्नोन के मन में जो पाप चल रहा था – उससे वो बेचारी अबला बहिन अनजान थी – उसे तो केवल अपने भाई के ठीक होने की जल्दी थी – इसलिए भाई को अकेले – एकांत कमरे में भी भोजन करवाने को राजी हो गयी।

तब उसने थाल ले कर उन को उसके लिये परोसा, परन्तु उसने खाने से इनकार किया। तब अम्नोन ने कहा, मेरे आस पास से सब लोगों को निकाल दो, तब सब लोग उसके पास से निकल गए।

10 तब अम्नोन ने तामार से कहा, भोजन को कोठरी में ले आ, कि मैं तेरे हाथ से खाऊं। तो तामार अपनी बनाई हुई पूरियों को उठा कर अपने भाई अम्नोन के पास कोठरी में ले गई।

भाई हमने तो सुना है – स्त्रियों में एक सेंस होती है – जो पहचान जाती है की कोई उसके साथ जो कर रहा है – उसमे उसकी मानसिकता अच्छी है या बुरी है। मगर बेचारी तामार इतनी भोली थी – की अपने भाई की बुरी बात को पहिचान तक न सकी।

11 जब वह उन को उसके खाने के लिये निकट ले गई, तब उसने उसे पकड़कर कहा, हे मेरी बहिन, आ, मुझ से मिल।

12 उसने कहा, हे मेरे भाई, ऐसा नहीं, मुझे भ्रष्ट न कर; क्योंकि इस्राएल में ऐसा काम होना नहीं चाहिये; ऐसी मूढ़ता का काम न कर।

13 और फिर मैं अपनी नामधराई लिये हुए कहां जाऊंगी? और तू इस्राएलियों में एक मूढ़ गिना जाएगा। तू राजा से बातचीत कर, वह मुझ को तुझे ब्याह देने के लिये मना न करेगा।

14 परन्तु उसने उसकी न सुनी; और उस से बलवान होने के कारण उसके साथ कुकर्म करके उसे भ्रष्ट किया।

और तामार जैसी सुशीला, नेक बहिन के साथ – हजरत दाऊद के पुत्र अम्नोन ने कुकर्म कर ही दिया। उसे भ्रष्ट करके ही माना।

छी ! छी ! छी !

कितनी घिनौनी हरकत थी – अपनी ही बहिन के साथ कुकर्म करना – मगर देखने वाली बात है – हजरत दाऊद जो एक महान पैगम्बर हुए हैं – उनके घर में – उनके अपने ही खून – अपने ही बेटे ने – ऐसा जलील काम किया।

क्या ये पाप कृत्य नहीं था ?

क्या हजरत दाऊद को अपनी पैगम्बरी के लिए – ऐसे कुपुत्र को दंड नहीं देना चाहिए था ?

क्या अपनी बेटी के लिए हजरत दाऊद को कोई सहानुभूति नहीं थी ?

क्या इसे पैगम्बरी कह सकते हैं ?

जो पैगम्बर अपने घर में हो रहे पाप को नहीं रोक सका ?

जो पैगम्बर अपने पुत्र को सही शिक्षा नहीं दे सका ?

जो पैगम्बर अपनी पुत्री की रक्षा नहीं कर सका ?

जो यहोवा सब कुछ जानने वाला है – पैगम्बरों से बात करता है – भविष्य की बात
बताता है – राष्ट्र को बनवाता और बिगड़वाता है –

वो अपने पैगम्बर की पुत्री की लाज न बचा सका ?

क्या ये बाइबिल धर्म की शिक्षा देती है ?

अगर देती है –

तो ये अधर्म करने वाले पैगम्बर और उनके पुत्रो को दंड का विधान क्यों नहीं ?

सत्य को जानो ईसाई मित्रो !

मनुष्य जीवन का लाभ उठाओ।

सत्य को जानो और मानो।

आओ लौट चले सत्य की और

वेद और विज्ञानं की और

मनुष्यता की और

“कृण्वन्तो विश्वमार्यम”

नमस्ते

ईसाई पैगम्बर अत्यंत चरित्र हीन थे – पार्ट 4

मित्रो जैसे की पिछली तीन पोस्ट से ये कारवां चलता आ रहा है की सत्य को सामने रखा जाए – और असत्य को दूर फेक दिया जाए – उसी कड़ी में पेश है – एक और सत्य की खोज।

हजरत याकूब (इजराइल) के 12 पुत्र हुए :

1. रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, जबूलून –
ये छह बेटे याकूब की पहली बीवी लिआ से हुए

2. युसूफ और बिन्यामीन – दूसरी बीवी राहेल से हुए

3. दान और नप्ताली – राहेल की दासी बिल्हा से थे

4. गाद और आशेर – ये लिआ की दासी जिल्पा से हुए।
(उत्पत्ति ३५:२३-२६)

ये तो हुआ संछिप्त परिचय – अब आप सोचोगे इसमें चरित्रहीनता कहाँ है ?

भाई लोगो – पहली चरित्रहीनता तो यही देख लो – की हजरत याकूब जो एक ईसाई पैगम्बर थे – उनकी एक नहीं दो दो बीवियां थी – क्या ये कम चरित्रहीनता है ?

चलो इसे चरित्रहीनता नहीं कहते – ये शादी थी। मगर क्या अपनी पत्नी की दासियों के साथ बिना शादी किये संतान पैदा करना चरित्रहीनता नहीं है ?

चलो एक बार को माना की दासी के साथ भी विवाह किया था – अव्वल तो ये संभव ही नहीं था – फिर भी यदि मान लिया जाए तो – अपनी पत्नी को सुरक्षा की जिंदगी देना ये एक मनुष्य का कर्तव्य होता है – लेकिन हजरत याकूब जो एक महान पैगम्बर थे – अपने बेटे को अच्छी शिक्षा तक न दे सके – क्या ये महानता की बात थी ?

मैं चरित्रहीनता इसलिए कहता हु की एक पैगम्बर होने के नाते समाज को और अपने परिवार को सुशिक्षा देना ही पैगम्बर का कार्य होता है – मगर ये कैसे पैगम्बर जिनके बेटे ने अपनी ही माँ के साथ कुकर्म कर दिया ?

देखिये –

जैसे की आपने ऊपर पढ़ा – रूबेन – याकूब की पहली पत्नी से उत्पन्न पुत्र हुआ था – मगर उसका आचरण इतना भ्रष्ट था की उसने अपनी ही सौतेली माँ के साथ कुकर्म किया।

इजराइल (याकूब) वहां थोड़े समय ठहरा। जब वह वहां था तब रूबेन इजराइल (याकूब) की दासी बिल्हा के साथ सोया। इजराइल ने इस बारे में सुना और बहुत क्रुद्ध हुआ।

(उत्पत्ति ३५:२२)

अब इस बात का थोड़ा गणित समझिए।

इजराइल (याकूब) के बीवी राहेल पुत्र को जन्म देते समय मर गयी तो – तो याकूब उसे दफनाने में व्यस्त था – बस फिर क्या था रूबेन को मौक़ा मिल गया – और उसने अपनी ही माँ का बलात्कार किया।

अब ऐसे ऐसे पिता पुत्र जिस समाज – कुल के पैगम्बर हुए हो – उस समाज से आप किस प्रकार की शिक्षा की उम्मीद कर सकते हैं ?

रूबेन के इस पाप की सुचना जब याकूब को मिली – तो उसने उसे क्या सजा दी ? क्या कोई ईसाई मित्र बताने का कष्ट करेगा ?

मेरे ईसाई मित्रो इस पापयुक्त आचरण को छोडो = सत्य सनातन वैदिक धर्म से नाता जोड़ो =

आओ लौटो वेदो की और

नमस्ते

ईसाई पैगम्बर अत्यंत चरित्रहीन थे – पार्ट 5

सभी मित्रो – जैसे की पिछली ४ पोस्ट से ये पोल खोल चालू है – की ईसाई पैगम्बर अत्यंत ही चरित्रहीन थे – खुद बाइबिल ऐसा प्रमाणित करती है – मगर फिर भी हमारे कुछ हिन्दू भाई – इस पाखंड में फंसते जाते हैं – क्योंकि वो बाइबिल को पढ़ते नहीं – और जो कुछ पढ़ते हैं – वो सही से समझते नहीं – आइये अपने हिन्दू भाइयो को इस पाखंड रुपी चुंगल से निकालने के लिए सहयोग करे और इस पोस्ट के माध्यम से सत्य को एक बार फिर प्रसारित करे –

आज जिन महान पैगम्बर की चरित्रहीनता का जिक्र इस पोस्ट में किया जायेगा – वो इतने महान थे – की उन्होंने न केवल अपने फायदे और कामपिपासा को शांत करने के लिए अपने खुदा (यहोवा) की आज्ञा का अपमान किया – बल्कि इस बाइबिल में अपने खुदा (यहोवा) से इस कृत्य के लिए आशीर्वाद भी प्राप्त किया –

ऐसा लिखवा दिया –

आइये एक नजर डाले – आखिर माजरा क्या है –

बाइबिल में अनेक जगह पर यहोवा कहता है –

शापित हो वह जो अपनी बहिन, चाहे सगी हो चाहे सौतेली, उस से कुकर्म करे। तब सब लोग कहें, आमीन॥
व्यवस्थाविवरण, अध्याय २७:२२)

और यदि कोई अपनी बहिन का, चाहे उसकी संगी बहिन हो चाहे सौतेली, उसका नग्न तन देखे, तो वह निन्दित बात है, वे दोनों अपने जाति भाइयों की आंखों के साम्हने नाश किए जाएं; क्योंकि जो अपनी बहिन का तन उघाड़ने वाला ठहरेगा उसे अपने अधर्म का भार स्वयं उठाना पड़ेगा।
लैव्यव्यवस्था, अध्याय २०:१७)

तो उपरलिखित प्रमाणों से सिद्ध है की अपनी बहिन – चाहे सगी हो अथवा सौतेली – उस से यदि कोई गलत काम करता है – तो वो व्यभिचारी है – यानी ऐसा मनुष्य चरित्रहीन है – निन्दित है – और उसका नाश किया जाए –

बात बिलकुल ठीक है – कायदे की है – ऐसा ही होना चाहिए – मगर मेरी उस वक़्त आँख फटी की फटी रह गयी जब मेने – महान ईसाई पैगम्बर “इब्राहिम” का जिक्र बाइबिल में पढ़ा –

अरे दादा इतना घोर अनर्थ – इतना व्यभिचारी पैगम्बर ? अपनी ही बहिन को अपनी हवस का शिकार बना डाला ?

छिः धिक्कार है ऐसी बाइबिल पर और ऐसे ईश्वर पर जो एक जगह कहता कुछ है – और जब पैगम्बर की बात आई तो बदल गया ? क्या ऐसा भी ईश्वर का काम हो सकता है ?

देखिये

इब्राहिम ने कहा, मैं ने यह सोचा था, कि इस स्थान में परमेश्वर का कुछ भी भय न होगा; सो ये लोग मेरी पत्नी के कारण मेरा घात करेंगे।
(उत्पत्ति, अध्याय २०:११)

और फिर भी सचमुच वह मेरी बहिन है, वह मेरे पिता की बेटी तो है पर मेरी माता की बेटी नहीं; फिर वह मेरी पत्नी हो गई।
(उत्पत्ति, अध्याय २०:११)

ईसाई मित्रो देखो आपका पैगम्बर – जिसने अपने ही खुदा की कही बात को मिटटी में मिला दिया ?

क्या ऐसे ही पैगम्बर होते हैं ?

पैगम्बर तो वो कहलाते हैं – जो खुदा की बात पर चले – मगर क्या “इब्राहिम” जो महान पैगम्बर थे – खुदा की बात पर अमल कर पाये ? नहीं – क्योंकि अपनी काम पिपासा जो शांत करनी थी ? और देखो अपनी जान बचाने को भी अपनी पत्नी को बहिन बनवा दिया – फिर सच भी बता दिया की हाँ वो बहिन तो है मगर बीवी भी है – क्योंकि इब्राहिम के पिता की बेटी थी – उसके माँ की नहीं ?

क्या ये पैगम्बर के कर्म होते हैं ?

अब देखो आपका खुदा कैसे बदला – क्योंकि पैगम्बर की बात जो है –
फिर परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, तेरी जो पत्नी सारै है, उसको तू अब सारै न कहना, उसका नाम सारा होगा।
(उत्पत्ति, अध्याय १७:१५)

और मैं उसको आशीष दूंगा, और तुझ को उसके द्वारा एक पुत्र दूंगा; और मैं उसको ऐसी आशीष दूंगा, कि वह जाति जाति की मूलमाता हो जाएगी; और उसके वंश में राज्य राज्य के राजा उत्पन्न होंगे।
(उत्पत्ति, अध्याय १७:१६)

अब बताओ – क्या भरोसा किया जाए आपके खुदा का ?

जो अपनी एक बात पर ही टिका नहीं रहता – अरे भाई न्याय तो कम से कम सही होना चाहिए – बल्कि एक पैगम्बर के लिए तो खासकर कोई रियायत नहीं होनी चाहिए – क्योंकि वो एक समाज का नेता होता है – अब यदि नेता ही ऐसे कानून तोड़ने लगे – और यहोवा आशीर्वाद देता रहे – तो आम आदमी क्यों नहीं ये सब पाप कर्म करेगा ?

मेरे ईसाई मित्रो अभी समय है – इस पापयुक्त आचरण से अपने को भ्रष्ट ना करो – ईश्वर की शरण में आओ – सच्ची मुक्ति वेद के द्वारा है – इस झूठी मिलावटी – हर पैगम्बर द्वारा रचित अपने फायदों के लिए बनाई बाइबिल से आपका घर परिवार ही दूषित होगा – और कुछ नहीं

वेद शिक्षा अपनाओ

धर्म में पुनः स्थापित हो जाओ

सत्य और न्याय की और

ईश्वर की सत्य सनातन व्यवस्था की और

चलो चले वेदो की और

नमस्ते

Unmasking Mother Teresa :RAKESH KRISHNAN

teresa

You think Mother Teresa was a saint, right? Perhaps you also believe she lifted millions of poor people around the world out of poverty. Think again.

Teresa was no saint. She was no friend of the poor either. On the contrary, the Albanian nun celebrated poverty and suffering, and refused to give medicines to the inmates under her care, in the process allowing them to die painful deaths.

A new study by Canadian researchers backs up what rationalists and neutral observers – like Britain’s Christopher Hitchens – have long held: Teresa only cared about poverty and not the poor. Researchers Serge Larivee and Genevieve Chenard from the University of Montreal and Carole Senechal of the University of Ottawa argue that Teresa was a saint of the media, not the gutters.

The Canadians analysed over 500 published writings about Teresa and conclude that her hallowed image, “which does not stand up to analysis of the facts, was constructed, and that her beatification was orchestrated by an effective media campaign”. Over 50 per cent of the books and articles were hagiographies, they say. The controversial study, to be published this month in the journal of studies in religion and sciences called Religieuses, says Teresa actually felt it was beautiful to see the poor suffer. According to the study, the Vatican overlooked the crucial human side of Teresa – her dubious way of caring for the sick by glorifying their suffering instead of relieving it.

Most people will find this hard to believe all this because the media has painted this lovely picture of a caring mother who dedicated her life to charity. But where she went wrong was in believing suffering was good for the people. She believed in her cause but she had no idea what effect it had on the poor and sick people under her care. A fawning media, idiotic politicians and countless donors have overlooked these aspects. But facts are humbling so let’s look at Teresa’s history – the uncensored bits, that is.

Tainted donations

Remember Charles Keating? An investment fraud artist, he was the chairman of the Lincoln Savings and Loan Association, which was the target of a federal investigation after the 1989 savings and loans collapse, which wiped out $160 billion in savings. Many of those affected were ordinary Americans, mostly retirees.

Keating it was discovered, had given more than US$1 million to Teresa and flew her around in his jet. During his trial for fraud, Teresa wrote to the judge, telling him what a good guy Keating was and asked for leniency in sentencing. She advised him to do what Jesus would do.

What Jesus would have done is debatable, but the judge gave Keating 10 years for fraud.

The scene now gets murkier. According to Dr Don Boys, author and former member of the Indiana House of Representatives, ”Teresa received a letter from the Deputy District Attorney telling her that the money Keating had given her was stolen from hard working people and suggested that she return the money. I would have suggested, after all, that is what Jesus would have you do. The good nun never answered his letter (nor returned the stolen money). After all, it was for the ‘poor’.”

Seedy connections

Dr Boys says Teresa or her handlers were very astute in using the media for her own end, raising money for her cause of adding members to the church. ”Some of the sugar daddies she fawned over were disreputable, unscrupulous people such as the bloody Haitian dictator Jean-Claude Duvalier (who plundered Haiti), the Communist Albanian dictator Enver Hoxha, Charles Keating, and other scoundrels,” he says. Taking money from Duvalier, one of the most vicious tyrants to walk the earth, would have been enough to subpoena Teresa. But she didn’t stop there.

One of the characters in her inner circle was Jim Towey, who became her legal counsel in the late 1980s. In February 2002, President George W. Bush violated both the letter and the spirit of the American constitution by setting up the Office of Faith-Based and Community Initiatives to further the cause of fundamentalist churches and religious conversions. Towey was appointed director of this office.

Anti-reformist

Teresa was a faithful servant of the Vatican. In an article on Slate.com, author Christopher Hitchens says, ”During the deliberations over the Second Vatican Council, under the stewardship of Pope John XXIII, (Teresa) was to the fore in opposing all suggestions of reform. Her position was ultra-reactionary and fundamentalist even in orthodox Catholic terms.” In fact, while receiving the Nobel Peace Prize she told a dumbfounded audience that abortion is “the greatest destroyer of peace.”

(Nobel Prize winning economist and author Steven Levitt has demonstrated in his brilliantly written book, Freakonomics, how the legalisation of abortion contributed to the sharp – and unexpected – drop in crime in the United States. Abortions prevented the birth of unwanted children in precisely those families that might have raised them as criminals.)

Insider reveals

One of the most compelling accounts of the macabre world of Teresa’s order, the Missionaries of Charity, is by the Australian, Collete Livermore. A nun who worked in Teresa’s order for 11 years, she ended up sick and disillusioned. In 1984 she quit and wrote the book Hope Endures, where she talks about a little known but disturbing side of Teresa, which she says hurt the truly needy.

Livermore explains how the nuns were not provided with medical advice, the use of mosquito repellents, or information about malaria and vaccinations because Teresa believed “God” would look after the nuns. Livermore got into trouble with the order for helping a man with dysentery who was in danger of dying.

“The order cared more about obedience than doing the right thing,” she writes. Teresa quoted Peter 2:18-23, which orders slaves to obey their masters even if they are abusive and difficult, and used this text to urge her nuns to obey superiors without question.

In Manila, Teresa wouldn’t let the nuns have a washing machine, which forced them to wash the underwear of the incontinent with brushes. Livermore felt the order was more concerned about inflicting hardship on the nuns than on helping the sick. More angst was in store for Livermore when she was forbidden to help a sick boy named Alex. That’s when Livermore decided to leave the order because she didn’t like the way she was expected to let the poor suffer.

Pain is beautiful

Before she died, Teresa had opened over 600 missions in 123 countries. Some of these missions have been described as “homes for the dying” by visiting doctors. The doctors observed a significant lack of hygiene, even unfit conditions, as well as a shortage of actual care, inadequate food and no painkillers. ”There is something beautiful in seeing the poor accept their lot, to suffer it like Christ’s passion. The world gains much from their suffering,” was her reply to criticism, cites Hitchens.

It would be pertinent to mention here that each time Teresa herself fell sick she sought the finest medical care. Despite the fact that medical tourists from the West travel to India for treatment, Teresa reckoned India wasn’t good enough for her. She was admitted to California’s Scripps Clinic and Research Foundation.

Canonisation capers

In 1997, a year after her death, the pope nominated Teresa for beatification, the first step towards sainthood. However, by doing this the pope violated a Vatican tradition that allowed a cooling off period of five years to guard against dubious characters.

Writes Hitchens: “As for the ‘miracle’ that had to be attested, what can one say? Surely any respectable Catholic cringes with shame at the obviousness of the fakery. A Bengali woman named Monica Besra claims that a beam of light emerged from a picture of (Teresa), which she happened to have in her home, and relieved her of a cancerous tumor. Her physician, Dr Ranjan Mustafi, says that she didn’t have a cancerous tumor in the first place and that the tubercular cyst she did have was cured by a course of prescription medicine. Was he interviewed by the Vatican’s investigators? No.”

Poverty hugger

What did Teresa and her charity achieve in the last six decades? I have argued in the past that aid never works. Not even a dent has been made in the sum total of suffering because of Teresa. Take Calcutta. Virtually nothing has changed there, except that Teresa has given that unfortunate metropolis a rank bad name.

Today, large swathes of India are entering the First World thanks to employment generated by free enterprise. On the other hand, Calcutta, virtually alone among India’s cities, seems stuck in LDC (Least Developed Country) mode. While its long association with Marxism, another vile import, may have something to do with the lack of progress, the presence of the poverty mongers ensures the city finds it impossible to shake off its Third World image. Teresa’s fundraising sermons have drilled into people’s mind that it is a city of lepers and beggars. As Hitchens said, “On one instance the nuns claimed, untruthfully of course, that Calcutta had 450,000 lepers, knowing that the rich have a poor conscience and would promptly despatch their dollars.”

Making of a myth

Despite these disturbing facts, how did Mother Teresa succeed in building an image of holiness and infinite goodness? According to the three Canadian researchers, her meeting in London in 1968 with the BBC’s Malcom Muggeridge, an anti-abortion journalist, was what catapulted her to superstardom.

In 1969, Muggeridge made a eulogistic film about the missionary. During filming, the interiors of Teresa’s mission in Calcutta were too dark, and he thought the scene wouldn’t come out well. But when the film was developed it turned out to be amazingly bright. Muggeridge trumpeted it as the ”first photographic miracle” when it should have been attributed to the new film stock being marketed by Kodak.

Teresa discovered the power of mass media; she travelled the world and received numerous awards, including the Nobel Peace Prize.

No accountability

Today, around the world Teresa’s charities have attained untouchable status, which helps them fend off any attempts by the authorities to stop their morbid experiments on sick and poor people.

There is also the question of the missing millions. Millions of dollars were transferred to the charity’s many bank accounts, but most of the accounts are secret, says Larivee. ”Given the parsimonious management of (Teresa’s) works, one may ask where the millions of dollars for the poorest of the poor have gone?” he asks.

According to the researchers, Teresa raised almost $100 million before 1980. A good chunk was used for building houses for the missionaries. Just 5 per cent went to the cause. Let’s hear that again – just 5 per cent of that went to the poor.

The legacy

In India where Teresa did her ‘charity’ work for more than half a century, the ruling party flagged off a train named Mother Express to commemorate her birth centenary in 2010. Perhaps it’s just a coincidence that the party, and therefore, the country, is headed by the Italian Sonia Maino, a.k.a. Sonia Gandhi.

Teresa has been known to be stingy even during national emergencies. During numerous floods in India she offered numerous prayers and medallions of the Virgin Mary but no direct or monetary aid, the Canadian researchers say.

It’s noteworthy that all the abandoned children who are taken in Teresa’s missions are brought up as Christians. I’m for conversion if it’s voluntary but these children were never offered a choice in the matter of religion.

In India, for instance, Teresa was (and her mission continues to be) actively engaged in proselytising work, which is not only illegal but will negatively impact India’s complex social hierarchy. In effect, the Indian government is allowing the long-term balkanisation of the country, because wherever Hindus have become a minority in India, separatist movements have cropped up.

Gandhi roots for Teresa

I don’t get invited to luxury car launches. Or to wine festivals. But this landed in my inbox not too long ago: ”…invites you to an official interfaith gathering to honour Nobel Laureate, the late Mother Teresa of Kolkata India (sic) and pay tribute to her selfless service to the poor.” Boldly underlined was the name of the guest speaker: Gopalkrishna Gandhi, the grandson of the deranged M.K. Gandhi. The meeting was held in a central Auckland church.

Curiously, the person who sent me the invite asked me not to write about the meeting. I can’t figure why. Can you?

Source : http://i.stuff.co.nz/auckland/local-news/local-blogs/dark-matter/8408272/Unmasking-Mother-Teresa