यह भाव से अभाव तथा अभाव से भाव कैसे हो जाता है? आचार्य सोमदेव

जिज्ञासा :-

आचार्य जी, ‘‘समाधान – 93’’ में आपने जो दिया है, उसमें थोड़ी-सी शंका शेष रह गई है और वह यह है कि ईश्वर ने इस साकार जगत् की रचना प्रकृति के परमाणुओं से की है। इसका मतलब प्रकृति के परमाणुओं में साकारत्व का गुण है, तभी तो साकार जगत् बन पाया। पंचभौतिक तत्त्व भी प्रकृति के परमाणुओं से ही बने हैं, तो इन परमाणुओं से निराकार पदार्थ कैसे बन जाते हैं और फिर वे निराकार पदार्थ परस्पर मिलते हैं, तो आकार कैसे ग्रहण कर लेते हैं, अर्थात् साकार कैसे बन जाते हैं? यह भाव से अभाव तथा अभाव से भाव कैसे हो जाता है?

निम्न बिन्दुओं पर भी स्थिति स्पष्ट करने का कष्ट करें-

(1) आपने आकाश निराकार बताया है। यह प्रकृति के परमाणुओं से बना है। इसी तरह वायु भी निराकार है, अग्नि जब प्रकट होती तब साकार होती है, अन्यथा निराकार। यह क्यों है?

(2) मेरे विचार से प्रलयकाल में जब प्रकृति अपने विशुद्ध रूप में होती है, तब निराकार ही होती है और ईश्वर तथा जीव निराकार होते ही हैं। फिर निराकार प्रकृति से साकार जगत् कैसे बना?

(3) महर्षि दयानन्द जी ने बताया है कि साकार चीजें असीम नहीं होती, बल्कि जीवात्माएँ भी संया वाली हैं, चाहे वे मनुष्य की गिनती से बाहर हों। ऐसी अवस्था में आकाश या अवकाश रूप आकाश असीम है या ससीम है?

(4) वायु ससीम है या असीम?

(5) क्या ईश्वर के अतिरिक्त अन्य भी कोई तत्त्व ऐसा है, जो असीम हो?

कृपया, समाधान करने का कष्ट करें।

– इन्द्रसिंह पूर्व एस.डी.एम. 29- नई अनाज मण्डी, भिवानी (हरियाणा) चलभाषः – 9416057813

समाधानः परमेश्वर ने यह संसार अपने सामर्थ्य से मूल प्रकृति को लेकर बनाया है। संसार के बनाने में परमेश्वर निमित्त कारण और प्रकृति उपादान कारण है। स्थूल जगत् के बनने की प्रक्रिया महर्षि कपिल ने अपने सांय दर्शन में दी है-

सत्त्वरजतमसां सायावस्था प्रकृतिः प्रकृतेर्महान्, महतोऽहङ्कारोऽहङ्कारात् पञ्चतन्मात्राण्युभयमिद्रियं पञ्चतन्मात्रेयः स्थूलभूतानि……।।  सां.- 1.61

सत्त्व, रज, तम- इन तीन वस्तुओं से मिलकरजो एक संघात है, उसका नाम प्रकृति है। उस प्रकृति से महतत्त्व बुद्धि, उस महतत्त्व से अहंकार, अहंकार से पाँच तन्मात्रा अर्थात् सूक्ष्म भूत- रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द , दस इन्द्रियाँ तथा ग्यारहवाँ मन, पाँच तन्मात्राओं से पाँच स्थूल भूत अर्थात् पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, आकाश और इन पाँच महाभूतों से यह दृश्य जगत्।

प्रकृति से जो कुछ भी उत्पन्न होता है, वह आकार वाला होता है, क्योंकि प्रकृति स्वयं आकार वाली है, जो गुण कारण में नहीं होते, वे कार्य में भी नहीं होते। यदि ऐसा होने लग जाये, तो अभाव से भाव की उत्पत्ति माननी पड़ेगी, जो द्रव्यात्मक पदार्थों में कभी घट ही नहीं सकता। महर्षि दयानन्द ने भी प्रकृति को आकार वाला माना है। महर्षि लिखते हैं-‘‘…….वह प्रकृति और परमाणु जगत् का उपादान कारण है और वे सर्वथा निराकार नहीं, किन्तु परमेश्वर से स्थूल और अन्य कार्य से सूक्ष्म आकार रखते हैं।’’ – स. प्र. स. 8

आपने जो कहा कि ‘‘मेरे विचार से प्रलयकाल में जब प्रकृति अपने विशुद्ध रूप में होती है, तब निराकार ही होती है।’’ यह विचार ऋषि के विचार से नहीं मिल रहा है। यदि ऐसा मान भी लें तो अभाव से भाव की उत्पत्ति वाली बात हो जायेगी, जो कि युक्त नहीं है। ऊपर जो लिखा कि प्रकृति से उत्पन्न पदार्थ आकार वाले होते हैं, इस कथन से आकाश निराकार कैसे सिद्ध होगा- यह प्रश्न खड़ा हो जायेगा। इसके लिए मेरा कथन है कि जो आपने परोपकारी के जिज्ञासा समाधान-93 की चर्चा की है, उसमें साकार निराकार की तीन परिभाषाएँ लिखी हैं, उनको यहाँ पुनः उद्धृत करता हूँ-

  1. साकार वह है, जो प्रकृति से बना हुआ, इसके अतिरिक्त निराकार।
  2. साकार वह, जिसमें रूप, रस, गन्धादि पाँचों गुण प्रकट हों, इससे भिन्न अर्थात् जिसमें पाँचों गुण प्रकट न हों, वह निराकार।
  3. साकार वह, जिसमें केवल रूप गुण प्रकट रूप में हो, अर्थात् जो आँखों से दिखाई दे वह साकार, इससे भिन्न निराकार।

इन परिभाषाओं के आधार से पहली परिभाषा के अनुसार देखें तो जो प्रकृति से बना आकाश है, वह भी साकार होगा। जहाँ आकाश को निराकार कहा है, वहाँ सापेक्ष रूप से कहा है। आकाश पाँच भूतों में सबसे सूक्ष्म है, उसको हम केवल शब्द  के आधार से अनुमान लगाकर जान पाते हैं। इसी प्रकार वायु को स्पर्श से जान पाते हैं। रूप क ी दृष्टि से तो ये निराकार ही कहलाएँगे।

हाँ, जिस अवकाश रूप आकाश की बात ऋषि करते हैं, जो कि प्रकृति से नहीं बना, वह तो निराकार ही है और यह अवकाश रूप आकाश असीम है। इन आकाश, वायु आदि के असीम-ससीम के विषय में हम इतना ही कह सकते हैं कि ये पदार्थ प्रकृति से बने होने केकारण ससीम हैं। शेष बाद में लिखेंगे।

– ऋषि उद्यान, पुष्कर मार्ग, अजमेर

One thought on “यह भाव से अभाव तथा अभाव से भाव कैसे हो जाता है? आचार्य सोमदेव”

  1. acharya ji namaste

    Aap kahte hain ki akash prakriti se bana hai par swami ji likhte hain ki akash ki uttpati nahin hoti. satyartha prakash 8.

    kripaya samjhane ka kashta karein.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *