बोद्ध अष्टांग मार्ग की वैदिक सिद्धांतो से तुलना

Image result for बुद्ध Image result for वेद
मित्रो बोद्ध ने कोई नया धर्म या मत नही चलाया था उनका धम्म वैदिक धर्म का एक सुधारवादी धम्म था जसी तरह वैदिक धम्म में कई मिलावट , ओर वेद विरुद्ध मत बन गये उन्हें सुधारने का कार्य बुद्ध ने किया लेकिन धीरे धीरे बुद्ध के उपदेशो में भी उनके शिष्यों ने गडबड कर दी ये धम्म भी कई सम्प्रदायों में टूट गया जिनमे अन्धविश्वास ,अश्लीलता ,जातिवाद आदि भर गये …
यहा हम बोद्ध के अष्टांगिक मार्ग की तुलना वेदों के उपदेशो से करेंगे जिससे ये साबित होगा की इस धम्म का मूल वेद ही है जो वेद में है उससे नया किसी मत की पुस्तक में नही है –
बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग धम्म चक्क प्पवत्तन सूक्त में निम्न दिए है –
(१) सम्मादिठ्ठि (सम्यक दृष्टि )- शुद्ध दृष्टि या शुद्ध ज्ञान
(२) सम्मा संकल्प (सम्यक संकल्प )-शुद्ध संकल्प
(३) सम्मा वाचा (सम्यक वाणी )- शुद्ध वाणी
(४) सम्मा कम्मन्त (सम्यक कर्म )- शुभ कर्म
(५) सम्मा आजीविका (सम्यक आजीविका )- शुद्ध जीविका वृति
(६) सम्मा व्यायाम (सम्यक व्यायाम )- शुद्ध उद्योग या परिश्रम
(७) सम्मास्ति (सम्यक स्मृति )- शुद्ध विचार
(८) सम्मा समाधि (सम्यक समाधि )- शुद्ध ध्यान व् मन की शान्ति
इन्हें बुद्ध ने आर्य अष्टांगिक मार्ग नाम दिया था ..
अब प्रत्येक को वेदों से दिखलाते है –
(१) सम्मा दिठ्ठि- ऋग्वेद में भावना से युक्त देखने ओर सुनने का उपदेश है –
भद्र कर्णेभि: श्रृणुयाम देवा भद्र पश्येमाक्षभिर्यजत्रा­:- ऋग्वेद १/८९/८
-मानव देखकर ओर सुनकर ही भद्र या अभद्र भावना वाला बन सकता है |
(२) सम्मा संकल्प – इस पर तो वेदों में कई मन्त्र है लेकिन हम एक ऋचा लिख देते है ताकि समझदार समझ जायेंगे –
तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु -यजु. ३४/१-६
मेरा मन शुभ विचारो .संकल्प वाला हो |
(३) सम्मा वाचा – वेदों में आया है – ” अन्यो अन्यस्मै वल्गु वदन्त एत -अर्थव. ३/३०/५ एक दुसरे से मनोहर वचनों का प्रयोग करते हुए मिलो |भूयास मधुसंदृश्य: -अर्थव १/३४/३ -शहद के समान मीठे होए |
(४)सम्मा कममन्त -यजुर्वेद में शुभ कर्म की प्रेरणा देते हुए कहा है – ” परि माग्ने दुश्चरिताद बाधस्व मा सुचरिते भज -यजु ४/२८ है अग्नि ! मुझे दुश्यचरित्र से रोको सुचरित्र या शुभ कर्म के लिए प्रेरित करो |
(५) सम्मा जीविका – अग्ने नय सुपथा राये -यजु ५/३६ ,७/४३ ४०/१६ है ईश्वर हमे धन प्राप्ति हेतु सुपथ मार्ग पर ले चल |
शुद्धो रयि निधारय -ऋग. ८/१५/८ है इंद्र परमएश्वर्य शाली ईश्वर हमे शुभ ऐश्वर्य प्रदान कर | इस तरह शुद्द आजीविका का उलेख वेदों में मिलता है |
(६) सम्मा व्यायाम – ऋग्वेद में श्रम के विषय में कहा है – ” भूम्या अंत प्रयेके चरन्ति रथस्य धूर्षु युक्तासो अस्तु | श्रमस्य दाय विभ्जन्त्येभ्यो यदा यमो भवति हमर्ये हित:||-ऋग्वेद १०/११४ /१० इसका भावार्थ है की परिश्रमी व्यक्ति को यम (ईश्वर ) श्रम दाय अवश्य देते है अर्थात पुरुस्कृत करते है |
(७) सम्मा सति – शुद्ध विचारों या स्मृति का नेतिक जीवन में बहुत महत्व है | वेदों में पवित्रता का उपदेश अनेक जगह हुआ है – ” य: पोता स पुनातु न: -ऋग्वेद ९/६७/२२ -जो पवित्र करने वाले है वे हमे पवित्र करे ..”मा पुनीहि: विश्वत: ” (ऋग ९/६७/२५ ) मुझे सभी ओर से पवित्र करे |
(८) सम्मा समाधि – समाधिस्थ योगीजन के विषय में वेद कहता है – तद्विप्रासो विपन्यवो जागृवास: समिन्धते| विष्णोर्यत्परम पदम् ||- ऋग १/२२/२१ – जागरूक योगी जन व्यापक परमात्मा को स्वात्मा में पाते है |
उपर हमने बोद्ध मार्गो की वैदिक उपदेशो से तुलना की इन सभी से सिद्ध होता है कि वेद सभी मतो का मूल है ओर बुद्ध ने कोई नये उपदेश नही दिए वो वेद में पहले से ही थे |

5 thoughts on “बोद्ध अष्टांग मार्ग की वैदिक सिद्धांतो से तुलना”

  1. अष्टांग मार्ग के उगम या तुलनामें वक्त क्यु जाया करे? उसके अनुकरण एव उपयुक्ततासे मतलब रखनेमेही सबकी भलाई है.

    1. क्षुद्र जी
      सबसे पहली बात यह की तुलना करके सत्य मार्ग की ओर लौटा जा सकता है इस कारण तुलना की गयी जिससे बौध लोग सत्य सनातन वैदिक धर्म की ओर लौट सके | सत्य की ज्ञान हो सके सभी को |

  2. हमे किसी धर्म क्या जरुरत हैं इंसान होना काफी है तुम्ही एक धर्म हो अपने अन्दर के धर्म को पहचानो

  3. भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
    स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ॥
    (ऋग्वेद मंडल 1, सूक्त 89, मंत्र 8)

    (भद्रम् कर्णेभिः शृणुयाम देवाः भद्रम् पश्येम अक्षभिः यजत्राः स्थिरैः अङ्गैः तुष्टुवांसः तनूभिः वि-अशेम देव-हितम् यत् आयुः ।)

    भावार्थ: हे देववृंद, हम अपने कानों से कल्याणमय वचन सुनें । जो याज्ञिक अनुष्ठानों के योग्य हैं (यजत्राः) ऐसे हे देवो, हम अपनी आंखों से मंगलमय घटित होते देखें । नीरोग इंद्रियों एवं स्वस्थ देह के माध्यम से आपकी स्तुति करते हुए (तुष्टुवांसः) हम प्रजापति ब्रह्मा द्वारा हमारे हितार्थ (देवहितं) सौ वर्ष अथवा उससे भी अधिक जो आयु नियत कर रखी है उसे प्राप्त करें (व्यशेम) । तात्पर्य है कि हमारे शरीर के सभी अंग और इंद्रियां स्वस्थ एवं क्रियाशील बने रहें और हम सौ या उससे अधिक लंबी आयु पावें ।

    यहा बुध्द के सम्यक दृष्टि की बात नहीं हो रही हैं. बुध्द की -1. सम्यक दृष्टि : इसे सही दृष्टि कह सकते हैं। इसे यथार्थ को समझने की दृष्टि भी कह सकते हैं। सम्यक दृष्टि का अर्थ है कि हम जीवन के दुःख और सुख का सही अवलोकन करें। आर्य सत्यों को समझें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *