अमेरिका – एक विहंगम दृष्टि

अमेरिका – एक विहंगम दृष्टि

– डॉ. धर्मवीर

लगभग एक करोड़ भारतीय अमेरिका में रहते हैं। लाखों भारतीय प्रतिवर्ष अमेरिका की यात्रा करते हैं। अमेरिका के समबन्ध में हमारे देशवासियों की जानकारी बहुत है, फिर भी गत 11 मार्च को अमेरिका आने पर यात्रा में कुछ बातों ने मेरा ध्यान खींचा। वैसे बातें तो बहुत छोटी हैं, परन्तु किसी व्यक्ति के लिये जिज्ञासा को शान्त करने या उत्सुकता उत्पन्न करने के योग्य हो सकती हैं, ऐसी कुछ बातें यहाँ प्रस्तुत हैं-

सबसे पहले इस देश में आने पर जिस बात ने चौंकाया, वह थी हमारे यहाँ किसी बिजली के बटन को प्रकाश के लिये नीचे करना होता है। यहाँ बिजली, पंखा, दरवाजा सभी को खोलने, बन्द करने के लिये बटन को नीचे से ऊपर करना पड़ता है। ऐसा क्यों है? इसको कोई नहीं बता सका, परन्तु ऐसा होता है। एक ही बटन से बिजली का प्रकाश कम-अधिक भी किया जा सकता है। यहाँ बल्ब ही देखने में आते हैं, दण्ड (ट्यूबलाईट) नहीं।

भारत में बायीं ओर चलने की परमपरा है। गाड़ी में चालक का स्थान भी दायीं ओर होता है। भारत में इंग्लैण्ड के कारण ऐसी परमपरा आई है। वहाँ पर सड़क के बायीं और चलने का नियम है, परन्तु अमेरिका में सड़क के दायीं और चलते हैं। यहाँ की बस, कार, ट्रक आदि में चालक का स्थान बायीं ओर होता है, परन्तु डाक बाँटने वाली गाड़ी में चालक दायीं ओर बैठता है, क्योंकि गाड़ी में बैठे-बैठे वह घर के सामने सड़क के किनारे पर लगे डिबे में पत्र आदि डालता जाता है।

छोटी सड़क बड़ी सड़क से मिलती है, तो वहाँ पर स्टॉप लिखा होता है। यहाँ पर आगे कोई वाहन न होने पर भी रुकना होता है, चाहे वह स्थान जंगल ही क्यों न हो।

सड़क को गन्दा करने पर पाँच सौ से हजार डॉलर तक अर्थ दण्ड हो सकता है।

अमेरिका बहुत बड़ा देश है, यह भौगोलिक दृष्टि से भारत से तीन गुना बड़ा है और जनसंखया में तीन गुना छोटा, अतः सब कुछ बहुत खुला-खुला लगता है।

देश का भूभाग बहुत बड़ा होने के कारण यहाँ समय को तीन भागों में बाँटा गया है। तीनों क्षेत्र में अलग-अलग समय होता है। गर्मी-सर्दी में हमारे यहाँ सुविधा के लिये समय बदलते हैं, जैसे ग्रीष्म काल में कार्य का प्रारमभ साढ़े छः बजे होता है तो शीत काल में सात बजे होगा, परन्तु अमेरिका में घड़ी बदली जाती है। काम तो उतने ही बजे होता है, परन्तु मार्च मास में घड़ी एक घण्टा आगे को जाती है तो नवमबर मास में एक घण्टा पीछे को जाती है। देश की सारी घड़ियाँ ऐसे ही चलती हैं।

नगर केन्द्र भाग को डाउन टाउन कहा जाता है। यहाँ ऊँचे भवन, बाजार आदि होते हैं। डाउन टाउन क्यों कहते हैं, कोई नहीं बता पाया।

यहाँ केन्द्रीय सरकार के पास केवल तीन काम हैं- डाक व्यवस्था, सेना और मुद्रा। उसको यहाँ के लोग थ्री एम कहते हैं- मनी, मिलीट्री, मेल। शेष सब कुछ निजी व्यवस्था में हैं।

नियम-कानून की पालना कठोरता से की जाती है। जब यह कहा जाता है कि यह कानून है, फिर कोई प्रश्न नहीं किया जा सकता, फिर तो पालन करना ही होगा।

निर्धारित गति सीमा से अधिक गाड़ी चलाने पर पुलिस पकड़ती है, तो उसे टिकिट देना कहते हैं। तीन बार टिकिट मिलने पर चालक का लाइसेन्स निरस्त कर दिया जाता है। गलत गाड़ी चलाते हुए पकड़े जाने पर बीमे की राशि अधिक भरनी पड़ती है।

आप कहीं से भी पैदल सड़क पार नहीं कर सकते, सड़क पार करने के लिये सड़क के किनारे खमभे पर बटन लगा रहता है, उसे दबाने पर संकेत मिलता है, तभी सड़क पार कर सकते हैं।

सड़कें बहुत चौड़ी और अच्छी बनी हुई हैं। सड़कों पर पुलों की भरमार है। कहीं-कहीं तो एक ही सड़क पर आठ मार्ग आने के और आठ मार्ग जाने के होते हैं, दो-चार-छः तो प्रायः हैं। लमबे मार्गों पर एक कार एक सौ बीस किलोमीटर की गति से प्रायः चलती है। कार में प्रायः एक व्यक्ति यात्रा करता है। घर में हर सदस्य की कार अलग है। सरकार द्वारा एक से अधिक व्यक्ति यदि एक कार में यात्रा करते हैं, तो सड़क पर चलने के लिये अलग से मार्ग दिया गया है।

इस देश में सार्वजनिक वाहन की व्यवस्था बहुत कम स्थानों पर है। यहाँ पर सभी लोग अपनी-अपनी कार से चलते हैं। कहा जाता है कि यहाँ की कार कमपनियाँ सार्वजनिक वाहन व्यवस्था को बनने ही नहीं देतीं, जिससे कार पर चलना सबकी विवशता है। यहाँ समपन्नता बहुत है, बहुत लोग निजी वायुयान रखते हैं, उसी से यात्रा करते हैं।

इसी प्रकार यहाँ की शस्त्र निर्माण कमपनियाँ भी हथियारों पर रोक नहीं लगाने देती। यहाँ शस्त्रास्त्र व्यवसाय बहुत बड़ा है और इनका सरकार पर बहुत प्रभाव है। शस्त्र के लिये अनुमति-पत्र की आवश्यकता नहीं है।

यह देश वैधानिक रूप से एक ईसाई देश है। जब भी कोई नगर या कॉलोनी बनाई जाती है, तो उसमें तीन-चार बड़े-बड़े प्रमुख स्थान चर्च के लिये छोड़े जाते हैं।

नगर, ग्राम सभी स्थानों पर अग्नि-शमन की सपूर्ण व्यवस्था है। अग्निशमन के समय जहाँ से जल लिया जायेगा, वह स्थान लाल रंग से चिह्नित किया गया होता है, वहाँ पर कोई वाहन नहीं खड़ा किया जा सकता, उस स्थान को सदा खाली रखना होता है। यहाँ लोगों में नियम पालन के अयास में सज्जनता से अधिक दण्ड-भय का है, जिससे सब बचना चाहते हैं।

छोटे-से-छोटे स्थान पर अन्य सुविधाओं के साथ-साथ पुस्तकालय होता है। यह प्रतिदिन प्रातः 9 बजे से रात्रि 9 बजे तक खुला रहता है। पुस्तक को कभी भी जमा किया जा सकता है। यह काम कमप्यूटर से होता है। पुस्तक निर्धारित मशीन में डाल दीजिये, आपके नाम पर जमा हो जायेगी। अलमारी में पुस्तक देखने के लिये ऊँचाई के लिये सीढ़ी तथा बैठकर देखने के लिये छोटी चौपाई सब स्थानों पर सुलभ है। बच्चों के लिये पृथक् कक्ष होता है। कमप्यूटर पर काम करने की सुविधा है। पुस्तकालय का उपयोग करने के लिये केवल उस क्षेत्र का नागरिक होना आवश्यक है। कोई शुल्क नहीं लगता। लोग हर समय पुस्तकालय का उपयोग करते देखे जा सकते हैं।

अमेरिका में साबुन से कपड़े धोने की प्रथा नहीं है, अतः इस देश में स्नान के लिये साबुन मिल जाता है, परन्तु कपड़े धोने का साबुन नहीं मिलता।

कपड़े मशीन में धोये जाते हैं और कपड़े सुखाने का कार्य भी मशीन से किया जाता है। घर के बाहर कपड़े सुखाना असभयता समझी जाती है।

यहाँ सार्वजनिक स्थानों पर पीने के पानी के नल लगे होते हैं, परन्तु उनमें पानी ऊपर की ओर निकलता है। नल की धार में मुँह लगाकर लोग पानी पीते हैं। यहाँ पात्र या अंजलि का प्रयोग कोई नहीं करता।

यहाँ शौचालयों में पानी की व्यवस्था नहीं होती। इस देश में भोजनालय से शौचालय तक सफाई का काम कागज से ही किया जाता है। यहाँ रूमाल का प्रयोग करने की प्रथा नहीं है।

दूरभाष या बैट्री चार्ज करने के लिये उपकरण में पिन के स्थान पर पत्ती होती है। अमेरिका में उतरते ही मेरे सामने सबसे पहले यही समस्या आई। मेरे पास पिन वाला चार्जर था, यहाँ पत्ती वाला काम आता है।

यहाँ के निवासियों को बहुत समय होने पर भी भोजन बनाना नहीं आता। इनका भोजन बर्गर, पिज्जा, नूडल, सिरियल्स आदि कुछ भी मिलाकर, कुछ भी बनाने जैसा है। किसी भी भोजन में मैदा और मांस ही मुखय होता है। इनके भोजन में दाल, शाक जैसी कोई कल्पना नहीं है, इसीलिये इनके यहाँ सूप और सलाद की कल्पना की गई है। हमारे यहाँ दाल, शाक, चटनी जैसी चीजों के रहते सलाद सूप की कल्पना नकल से अधिक कुछ नहीं है। यहाँ के लोग दाल-शाक के अभाव में भोजन के साथ कॉफी या कोक का प्रयोग करते हैं।

यहाँ रहने वाले भारतीय प्रायः अपना भोजन रविवार को बना लेते हैं और एक सप्ताह तक गर्म करके खाते हैं।

एक ओर यहाँ शुद्धता का बहुत ध्यान रखा जाता है, परन्तु इनके भोजन में विटामिन, प्रोटीन, मिनरल के नाम पर खाने के पदार्थों में भयंकर मिलावट रहती है। यहाँ आकर कोई यह नहीं कह सकता कि वह शाकाहारी बचा है। यहाँ दूध में विटामिन आदि के नाम पर कुछ भी पशु उत्पाद मिलाते रहते हैं। दही जमाने के लिये बछड़े की आँतों से निकलने वाले रेनिन का उपयोग किया जाता है। दही को गाढ़ा जमाने के लिये जिलेटिन उसमें मिलाया जाता है। डबल रोटी में अण्डा मिलाना सामान्य बात है, नान और रोटी के आटे में अण्डा मिला देते हैं। पनीर बनाने के लिये रेनिन का ही प्रयोग किया जाता है।

चॉकलेट, टॉफी, बिस्कुट में सब मांस के पदार्थ मिश्रित रहते हैं, अतः कोई भी मिठाई शाकाहार नहीं है।

यहाँ एक अच्छी बात है। भारत में रसोई के कचरे को लेकर बड़ी समस्या होती है। गीले कचरे को बाहर फेंका जाता है, परन्तु अमेरिका में गीला कचरा नल के नीचे डालकर बहा दिया जाता है, जिसे उसमें लगी मशीन चूरा करके पानी के साथ बहा देती है।

इस देश में शिक्षा निःशुल्क है। दसवीं तक शिक्षा के साथ भोजन की आवश्यकता हो तो सरकार उसकी भी व्यवस्था करती है। पूरे देश में शिक्षा व्यवस्था एक जैसी है, पूरे देश की भाषा एक ही है, इसलिये माध्यम में किसी प्रकार का संकट नहीं हैं। जो परिवार जिस क्षेत्र में रहता है, उसे अपने बच्चों को उसी क्षेत्र के विद्यालय में पढ़ाना अनिवार्य होता है। निजी विद्यालय बहुत कम और बहुत महँगे होते हैं।

छोटे बच्चों को कार की आगे की सीट पर बैठाना दण्डनीय होता है, उनके लिये पीछे की सीट पर अलग व्यवस्था करनी पड़ती है।

बारह वर्ष तक के बालक को अकेले घर पर छोड़ना दण्डनीय अपराध है।

दूरभाष पर बात करते हुए समबन्धित व्यक्ति न मिलने पर शबद सन्देश देने की परमपरा है।

घर से निकलते समय व्यक्ति समय के साथ वातावरण कैसा रहेगा, यह भी देखता है।

यहाँ वर्षा, आँधी, हवा, धूप, गर्मी, शीत का अनुमान बहुत पहले लग जाता है। पर्यावरण विज्ञान कार्यालय की घोषणा सटीक होती है, लोग उसके अनुसार अपने कार्यक्रम बनाते हैं।

भारत में पुराने छत के पंखों में दो पत्तियाँ होती थीं, फिर प्रायः तीन पत्ती होती हैं। अब कहीं-कहीं चार पत्तियाँ भी देखी जा सकती है, परन्तु अमेरिका में पंखों में पाँच पत्तियाँ होती हैं।

केलिफोर्निया में पीने का पानी छः सौ मील की दूरी से पहाड़ों से आता है, जबकि प्रदेश समुद्र के किनारे है।

अमेरिका में आयकर बहुत अधिक है। प्रदेश और केन्द्र का आयकर मिलकर चालीस से पैंतालीस प्रतिशत है। सभी सेवा कार्य करने वाले लोग इससे पीड़ित रहते हैं।

अमेरिका में चिकित्सकों की प्रतिष्ठा बहुत है, उनकी आय भी अधिक है। चिकित्सक बीमा कमपनियों से बँधे रहते हैं। स्वतन्त्र चिकित्सक बीमा के बिना देखता है तो बहुत पैसे लगते हैं। एक दाँत उखड़वाने में भारत जाकर आने और दाँत की चिकित्सा कराने जितना पैसा लगता है। सामान्य व्यक्ति के लिये आवास, भोजन, वाहन, भाषा की समस्या का संकट रहता है।

इस देश में सहायता के लिये एक अंक 711 है, इससे भारतीय लोग बहुत भयभीत रहते हैं। किसी भी प्रकार की सहायता के लिये पुलिस को बुलाया जा सकता है। विद्यालय में बच्चों को सिखाया जाता है- जब कोई तुमसे दुर्व्यवहार करे तो तुम इस अंक पर सूचना दे सकते हो। बच्चों को डांटना, पीटना इस देश में अपराध है। ऐसा अनेक बार होता है। भारतीय माता-पिता बच्चों को डाँटते या मारते हैं, तो बच्चे पुलिस में शिकायत कर देते हैं। पुलिस पकड़कर ले जाती है, पीटने वाले को जेल में बन्द कर देती है।

शिकागो में श्री भूपेन्द्र शाह ने बताया कि यहाँ एक माता-पिता अपने पुत्र-पुत्रवधू के पास रहने के लिये भारत छोड़कर अमेरिका आ गये। सास ने किसी बात पर नाराज होकर पुत्रवधू को बहुत डांट दिया। बहू ने इस अंक पर शिकायत कर दी, पुलिस सास-श्वसुर को पकड़कर थाने ले गई। फिर अलग होटल में रखा और फिर भारत भेज दिया।

16 वर्ष की आयु के बाद बच्चे स्वतन्त्र होते हैं। आप उन्हें घर जबरदस्ती नहीं रख सकते, वे घर छोड़कर कहीं भी जा सकते हैं।

इस देश में विद्यालय की शिक्षा निःशुल्क है, परन्तु कॉलेज विश्वविद्यालय की उच्च शिक्षा बहुत महँगी है। जो प्रतिभाशाली बच्चे हैं, उन्हें छात्रवृत्ति मिल जाती है, जो समपन्न है या पुरुषार्थी हैं, स्वयं कमाकर पढ़ते हैं। शेष लोग अपनी आजीविका में लग जाते हैं। यहाँ के संस्थानों में ईसाई लोगों को प्राथमिकता दी जाती है।

इस देश की विशेषता है कि आपके पास धन है तो आपके पास सब कुछ है। आप जो सुविधा चाहो, प्राप्त कर सकते हो। यहाँ पर संवेदना, भावात्मकता का कोई स्थान नहीं। जिन बातों से मन में संवेदना जागती है, उनका यहाँ नितान्त अभाव है। डॉ. सुखदेव सोनी के शबदों में यहाँ के लोगों के पास माता-पिता, गुरु, अतिथि को छोड़कर सब कुछ है। माता-पिता उत्पन्न कर देते है, परन्तु उनका कब और कितनी बार तलाक होगा, पता नहीं। ऐसे में बच्चों की संवेदना किससे जुड़ेगी? कक्षा में शिष्य अध्यापक के सामने टेबल पर पैर फैलाकर बैठता है तो अध्यापक उसे कुछ भी नहीं कह सकता, फिर आदर का भाव कहाँ से उत्पन्न होगा? अतिथि तो यहाँ कोई होता ही नहीं। सबके सब यहाँ अनुमति से आते-जाते हैं।

यहाँ निवास करने वाले भारतीयों का स्वभाव भिन्न है। किसी गोरे व्यक्ति से दृष्टि मिलती है, तो वह हँसकर ‘कैसे हो’ पूछता है, ‘धन्यवाद’ कहता है, परन्तु अधिकांश भारतीयों के चेहरे पर देखकर अप्रसन्नता का भाव प्रकट होता है, आँख मिलने पर चेहरा घुमा लेते हैं।

भारतीय लोग घर में भी अंग्रेजी का व्यवहार करने में गौरव समझते हैं। बच्चों से अंग्रेजी ही बोलते हैं। परिणामस्वरूप बच्चों को मातृभाषा या हिन्दी से परिचय नहीं हो पाता। कुछ परिवार घर में मातृभाषा का प्रयोग करते हैं।

इस देश में दूरी आज भी मील में नापी जाती है, तोल नाप के लिये पौण्ड, गेलन का ही प्रयोग होता है,गर्मी का माप फारनहाइट में ही होता है।

बस में परिचालक नहीं होता। एक पास राज्य या नगर में चलता है। एक यात्रा का नगर में एक ही टिकिट होता है।

सड़क पर कोई पैदल चलता हुआ दिखाई नहीं देता। सड़क पर कारें या बड़े लमबे-लमबे बन्द ट्रक चलते दीखते हैं।

सभी यान, सार्वजनिक स्थानों पर नियम से अशक्तों की पृथक् से व्यवस्था करनी होती है। इसमें किसी प्रकार की कमी दण्डनीय होती है।

कारों में पेट्रोल अपने-आप भरना होता है। कोई सहायक या दुकानदार नहीं होता। लेन-देन का सारा काम क्रेडिट कार्ड से होता है। नकद का व्यवहार बहुत कम होता है।

यहाँ सरकार पर पूँजीपतियों और बड़ी कमपनियों का कबजा है तो दवा बनाने वाले, डॉक्टर, बीमा कपनियाँ और वकील मिलकर जनता को लूटते हैं। एक डॉक्टर ने अपने व्यवसाय के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा था- डॉक्टर क्या करता है,एक मनुष्य की सारे जीवन की कमाई का नबे प्रतिशत उसकी आयु के अन्तिम पाँच सालों में लूट लेता है।

बड़ा देश होने के कारण यहाँ की जलवायु सभी प्रदेशों में भिन्न-भिन्न है। आज धूप में चलने पर लॉस एन्जलस में दिल्ली की तरह गर्मी लगती है, वहीं सनीवेल में गर्मी-सर्दी दोनों नहीं है। यहाँ धूप प्रातः पाँच बजे से सायं सात बजे तक रहती है।

शिकागो में प्रातः उठा तब हिमपात हो रहा था। मध्याह्न में धूप निकल रही थी। सायंकाल के समय तेज हवायें चल रही थीं।

ह्यूस्टन पर समुद्र का प्रभाव बहुत रहता है। आज समुद्री तूफान में डूब रहा है, एक दिन उत्तर की हवायें चलती हैं, शीत बढ़ जाता है। दक्षिण की हवा चलती है, उष्णता बढ़ जाती है।

सड़क पर कोई किसी से आगे भागने का प्रयास नहीं करता। बड़े राज मार्ग पर तेज चलने के लिये अपनी पंक्ति बदलनी होती है।

सड़क पर कहीं भी  अकस्मात् रुक नहीं सकते। रुकने के लिये स्थान बने होते हैं।

सड़क को कहीं से पार नहीं कर सकते। सड़क पार करने के लिये निशान बने हैं, गाड़ी वहीं से पार हो सकती है। गाड़ी के उपमार्ग से मुखय मार्ग पर आने का स्थान निश्चित है, उसी प्रकार बाहर निकलने के लिये भी स्थान निश्चित है।

इस देश में सड़क पर यात्रा करते हुए बड़े खेतों में गायों के झुण्ड चरते हुए देख कर प्रसन्न मत होइये। गाय अमेरिका का सबसे दुर्भाग्यशाली पशु है। इसका समबन्ध इसका मांस खाने से है। यहाँ वालों का मुखय भोजन गाय का मांस (बीफ) है। इसके बाद सूअर, घोड़े आदि आते हैं। यहाँ का भाग्यशाली जानवर कुत्ता है, इसकी बहुत सेवा होती है।

दूध मशीन से निकालते हैं, अतः बछड़ा पैदा होने पर मारकर गाय को चारे में मिलाकर खिला देते हैं। दूध में खून आने पर उसका मिल्क चॉकलेट बन जाता है।

इस देश में दैनिक घरेलू काम से लेकर सामाजिक समारोह तक के सारे काम सभी लोग मिल-बाँट कर ही कर लेते हैं। मजदूर से कार्य कराना, महँगा होने से समभव नहीं है।

– ऋषि उद्यान, पुष्कर मार्ग, अजमेर

 

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