अल्लाहमियाँ की कसमें | – चमूपति

क़ुरान में कसमें खाना निषिद्ध है. अतएव  कहा गया है –

कुलला तकसमू  – सूरते नूर ५३

Allah-promise

कह कि कसमें मत खाओ

परन्तु स्वयं परमात्मा स्थान स्थान पर कसमें खाता चला जाता है.

त  अल्लाह लक़द अरसलना – सूरते नहल आयत ६३

कसम है अल्लाह की भेजे हमने पैगम्बर

यह कौन है ? –  इस बात को ध्यान दें कि कसम खानी  भी चाहिए कि नहीं। क्या यह वचन अल्लाह का विदित होता है ? अल्लाह तो अपने आप को हम (बहुवचन ) कह रहा है , परन्तु कसम खाते हुए कहता है कि अल्लाह मियाँ  की कसम , स्पष्ट है कि ‘ हम’ कोई और है और अल्लाह मियाँ  कोई दूसरा।

 

वलकुरानुल हकीम

कसम है कुराने हकीम की

फल अकसमो बिबाकि अन्नुजूम – सूरते वाकिया आयत ७५

बस कसम खाता हूँ गिरने वाले तारों की

वस्समाओ जातल  बरजे – सूरते बुरुज आयत – १

और कसम है आसमान बुरजों वाले की

 

कुरान  में इस प्रकार की कसमों की भरमार है. यह कसमें क्या हैं ? ईंट की कसम , पत्थर की कसम, घोड़े के टापों  की कसम, कुछ निरर्थक सी बात प्रतीत होती है मगर यह है ईश्वरीय सन्देश (इल्हाम) का भाग ! कोई साधारण व्यक्ति किसी बात में कसम खाये तो कहते हैं कि इसे अपने आप पर विश्वास नहीं। परन्तु अल्लाहमियाँ  को कोई क्या कहे ? बड़े आदमियों को अदालत भी कसम से छूट देती है, परन्तु यहाँ तो अदालत की भी विवशता नहीं कि कानून के नियम का बंधन हो और इस आज्ञापालन से बच न सकें। होगी कोई बात|

कहीं इस निरर्थक अनावश्यक कसमें खाने का नाम ही तो साहित्य सौष्ठव नहीं। कुरान  मानने वालों का दावा  है कुरान जैसा कोई साहित्य सौष्ठव पूर्ण नहीं |

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