ऋषि दयानन्द का हत्यारा कौन? –डॉ. धर्मवीर जी

साभार :- परोपकारी पत्रिका 1994

ऋषि दयानन्द का हत्यारा कौन?

 

कुछ दिन पहले परली बैजनाथ में था, वहाँ यमुनानगर से श्री इन्द्रजित देव का दूरभाष आया, जिसमें सत्यार्थ प्रकाश के सम्बन्ध में अग्निवेश द्वारा दिये गये वक्तव्य की चर्चा थी। कल उनके द्वारा भेजी गई समाचार पत्रों की कतरने भी मिलीं, जिनमें अग्निवेश का वक्तव्य तथा पंजाब में उस पर हुई प्रतिक्रिया छपी है। अग्निवेश का यह वक्तव्य भड़काऊ और शान्तिभंग करने वाला है। यह बात उस पर हई प्रतिक्रिया से भली प्रकार जानी जा सकती है।

११ जून के पंजाबी दैनिक स्पोक्समेन चण्डीगढ़ के पृष्ठ १ पर छपे अग्निवेश के वक्तव्य में कहा गया है कि वह आर्यसमाज का मुखिया हैं। और उन्होंने जोर देकर कहा- मुखिया होने के नाते वह वायदा करता है कि सत्यार्थ प्रकाश ग्रन्थ दोबारा छापा जायेगा, इस ग्रन्थ को दोबारा छापने से पूर्व शिरोमणि कमेटी से वांछनीय सझाव मांगे जायेंगे। उसका यह भी कहना है कि सब धर्म महान् और सब ग्रन्थ पवित्र हैं।

इस वक्तव्य को पढ़कर ऐसा लगता है कि कल अग्निवेश पाकिस्तान में मुशर्रफ से मिलने जाये और तोहफे में दिल्ली भेट कर आये तो आप उसे क्या कहेंगे? यह तो उसकी मर्जी है, वह दिल्ली भेंट दे सकता है, परन्तु क्या अग्निवेश के कहने से दिल्ली मुशर्रफ की भेंट हो जायेगी?

सत्यार्थ प्रकाश के सम्बन्ध में दिया गया वक्तव्य इसी कोटि का है।

पहले तो जो व्यक्ति अपने को आर्यसमाज का मुखिया बता रहा है, वह मुखिया है भी? इस व्यक्ति ने अपने जीवन में जो किया, चोर दरवाजे से, उलटे रास्ते किया। दूसरों के द्वारा बुलाये गये सम्मेलनों में जाकर उनका कार्यक्रम बिगाड़ना इस व्यक्ति फितरत रही है।

सभी संस्थाओं में धाँधली करना. चोर दरवाजे से घुसने की कोशिश करना जीवन भर का कार्यक्रम रहा उसी के चलते सार्वदेशिक सभा के भवन में उसने कब्जा कर लिया, ऐसा करके यदि कोई अपने को मुखिया कहे तो इसमें गलत कुछ भी नहीं। आज समाज और राजनीति में दादा लोग स्वयं ही मुखिया बन जाते हैं, उन्हें कोई मुखिया बनाता नही है।

इससे भी महत्त्वपूर्ण बात है कि इस मुखिया को पता नहीं है कि आर्यसमाज के संगठन की वैधानिक स्थिति क्या है, ऋषि दयानन्द ने अपने जीवन में तीन संगठन बनाये और तीन ही संविधान बनाये।

गोकरुणानिधि लिखी तो गोकृष्यादिरक्षणी सभा बनाई, उसके नियम और विधान बनाये, जीवन के अन्तिम दिनों में ऋषि ने परोपकारिणी सभा बनाई और उसका विधान और नियम बनाये।

इस अन्तिम सभा को महाराणा उदयपुर के यहाँ पर पंजीकृत कराया और सभा को अपनी समस्त चल, अचल सम्पत्ति सौंपी तथा अपने ग्रन्थ, यंत्रालय, वस्त्र, रुपये के साथ अपना उत्तराधिकार सौंपा।

इतनी ही नहीं, ऋषि ने अधिकांश ग्रन्थों की रजिस्ट्री भी कराई, जिससे कोई अग्निवेश उनके ग्रन्थों में उलट फेर न कर सके। चूंकि रजिस्ट्री कानूनन पचास साल तक चलता है, अत: अन्य लोग ऋषि ग्रन्थ पचास साल बाद ही छाप सके। इस प्रकार सत्यार्थ प्रकाश के सम्बन्ध में अग्निवेश को किसी तरह का वक्तव्य देने का अधिकार ही नहीं है, परन्तु अग्निवेश को नियम औचित्य की परवाह ही कब है? यह फुंस के ढेर में आग लगाकर तमाशा देखने का आदी है।

यह वक्तव्य गलत है, एक अनधिकृत व्यक्ति के द्वारा दिया गया है, परन्तु लोगों को क्या पता कौन अधिकृत है। और कौन नहीं है? समाज गुटों में बँटा है, मुकदमों में फँसा है, जो चाहे अपने को मुखिया कह सकता है, इसलिए इस गलत वक्तव्य का भी समाज पर गंभीर प्रभाव होना ही था, हो रहा है।

पंजाबी दैनिक स्पोक्समेन चण्डीगढ़ १२ जून के पृष्ठ ३ पर खबर जो बरनाला शहर के हवाले से छपी है, उसमें कहा गया है,

“आर्यसमाज के मुखिया अग्निवेश की ओर से अमृतसर में श्री गुरु अर्जुनदेव की चौथी बलिदान शताब्दी को समर्पित शिरोमणि कमेटी की ओर से कराये गये आर्यसमाज के ‘सत्यार्थ प्रकाश’ को दोबारा शोध कर प्रकाशित करने की घोषणा का हार्दिक स्वागत करते हुए गुरु गोविन्द सिंह स्टडी सर्किल युनिट बरनाला के प्रधान प्रि. कर्मसिंह भण्डारी ने कहा कि इस ग्रन्थ का शोधन करते समय केवल गुरु नानक देव जी के बारे में लिखे अपशब्द ही नहीं हटाये जायें अपितु श्री गुरु अर्जुनदेव जी के महावाक्य ‘ब्रह्मज्ञानी आप परमेश्वर’ के अर्थ का बिगाड़ रूप, श्री गोविन्दसिंह जी की ओर सज्जित व खालसा पन्थ के वरदान रूप में दिये ५ ककारों का उड़ाया गया मखौल तथा श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के सत्कार प्रति लिखे अपशब्दों के अतिरिक्त भक्त शिरोमणि कबीर जी, दाददयाल, महात्मा बद्ध तथा जैन धर्म की की गई निन्दा के शब्द भी हटाये जायें।”

समाचारों की इन पंक्तियों को पढने के बाद यह समझना इतना कठिन नहीं है कि अग्निवेश ने अपने वक्तव्य से ऋषि दयानन्द को गलत साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अगले ही दिन १२ जून के पंजाबी अखबार दैनिक स्पोक्समेन पृष्ठ ३ पर जालन्धर के हवाले से छपी पंक्तियां गौर करने लायक हैं-

“अमृतसर में अग्निवेश की ओर से सत्यार्थ प्रकाश में संशोधन करने सम्बन्धी बयान पर प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए महान् चिन्तक श्री सी.एल. चुम्बर ने इस पुस्तक पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने की माँग की। उन्होंने  कहा कि इस पुस्तक में श्री गुरुनानक देव साहिब के अतिरिक्त भक्त कबीर जी, ईसाइयों, बौद्धों, जैनियों तथा मुसलमानों विरुद्ध काफी कुछ आपत्तिजनक शब्द लिखे गये हैं…। सत्यार्थ प्रकाश सम्बन्धी और विवरण देते हुए श्री चुम्बर ने बताया कि इसमें समाज को जातियों-पॉतियों में बाँटने वाली मनुस्मति के १५० से अधिक सन्दर्भ दर्ज हैं।” |

२६ जून २००६ को आउटलुक पत्रिका ने लिखा- चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता और प्रगतिशील संत कहे जाने वाले स्वामी अग्निवेश ने एक नया शिगूफा छोड़ दिया है। पंजाब में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा पंचम गुरु अर्जुन देव जी के ४०० वे शहीदो वर्ष को समर्पित एक सेमीनार को संबोधित करते हुए स्वामी अग्निवेश ने यह दावा कर दिया कि आर्यसमाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में सिखों के प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी  के बारे में की गई टिप्पणियों को संशोधित किया जाएगा।

वर्ल्ड कौंसिल ऑफ आर्यसमाज के अध्यक्ष होने के नाते स्वामी अग्निवेश ने पंजाब के राज्यपाल जनरल (सेवा.) एस. एफ. रोड्रिग्स, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, एसजीपीसी के मुखिया अवतार सिंह मक्कड बोबी जागीर कौर की मौजूदगी में यह दावा किया कि सत्यार्थ प्रकाश का आगामी संस्करण संशोधित होगा और जिन बातों पर सिख बुद्धिजीवियों को आपत्ति है, उन अंशों को हटा दिया जाएगा।

उसके इस दावे से पंजाब में एक नई बहस उठ खड़ी हुई है, जिसने नई पीढ़ी के सिख युवकों में जिज्ञासा पैदा कर दी है कि स्वामी दयानन्द जी ने प्रथम गुरु श्री गुरुनानक देव जी के बार में ऐसी कौन-सी आपत्तिजनक बातें लिखी थी जिन्हें इस वक्त हटाने की जरूरत पड़ गई है? दूसरी तरफ पुरानी पीढ़ी के सिखों को शिरोमणि अकाली दल व आर्यसमाज के बीच पुराने विवादों का वह दौर याद आ गया है, जब अकालियों व आर्यसमाजियों के बीच तनातनी के रिश्ते थे |

 

 अग्निवेश को आर्यसमाज के सिद्धान्तों में कोई आस्था नहीं रही। ऋषि में कोई निष्ठा नहीं, उसकी आर्यसमाज को समाप्त करने के लिए विधर्मी और राष्ट्र विरोधी लोगों की ताकत बढ़ाने वाले कार्यकर्ता की छवि है। जो व्यक्ति सब धर्मों को पवित्र और सब धर्म ग्रन्थों को महान् बता रहा है, वही व्यक्ति ऋषि दयानन्द को और सत्यार्थ प्रकाश को गलत साबित कर रहा है। उसकी नजर में वैदिक धर्म महान् नहीं है, सत्यार्थ प्रकाश उसके लिए पवित्र नहीं है।

अग्निवेश का यह कोई आर्यसमाज और दयानन्द को गलत साबित करने का पहला प्रयास नहीं है, व्यक्तिगत रूप से और मंच से ऐसी बातें पहले भी अनेक बार कही गई हैं। परली बैजनाथ में कार्यकर्ताओं से विचार-विमर्श के दौरान दिल्ली सभा के प्रधान श्री राजसिंह ने बताया था कि हवाई जहाज में यात्रा करते हुए सत्यार्थ प्रकाश से १३वें व १४वें समुल्लास को निकालने की चर्चा अग्निवेश ने की थी। आर्यसमाज को सन्ध्या एण्ड हवन कम्पनी कहना इन्हीं लोगों ने शुरू किया था।

पिछले दिनों स्वामी सम्पूर्णानन्द करनाल वालों ने एक प्रसंग सुनाया। जब उड़ीसा में एक पादरी को जिन्दा जलाया गया था, अग्निवेश ने एक यात्रा निकालने की तैयारी की थी। इस व्यक्ति ने स्वामी सम्पूर्णानन्द को यात्रा के लिये निमन्त्रित किया।

उन्होंने कहा- उससे अधिक हिन्दू कश्मीर में मारे गये हैं, उनके लिए यात्रा निकालना पहले आवश्यक है।

अग्निवेश ने कहा ईसाई अल्पसंख्यक हैं, अत: उनका समर्थन जरूरी है।

स्वामी सम्पूर्णानन्द ने कहा- कश्मीर में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, इसलिए उनका ध्यान रखना अधिक जरूरी है।

इसका उत्तर अग्निवेश के पास नहीं था, क्योंकि समर्थन कमजोर का नहीं ईसाई का करना था। यहाँ स्मरण दिलाना उचित होगा कि अग्निवेश की सिफारिश पर चर्च ने धर्मबन्धु को २२ लाख रुपये का सहयोग किया था।

इससे अग्निवेश और चर्च के रिश्तों का अनुमान लगाया जा सकता है। अमेरिका वैदिक धर्म का प्रचार करने वालों को राय बहादुर नहीं बनाता, राय बहादुर बनने के लिए उनकी सेवा उनकी शर्तों पर करनी पड़ती है।

इस व्यक्ति की न संगठन में आस्था है, न सिद्धान्त में। इस व्यक्ति ने अपने जीवन में संगठन और सिद्धान्त को जितना तहसनहस किया जा सकता था, उसे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, फिर इस व्यक्ति को जो मिला, उसके पीछे समाज में और संगठन में सिद्धान्तहीन, स्वार्थी, कमजोर लोगों का होना ही मुख्य कारण रहा है। जिस समय इस व्यक्ति ने सार्वदेशिक सभा भवन पर कब्जा किया, उस समय आर्यजनता को दु:ख हुआ, परन्तु जो गये उनको समाज के लोग स्वार्थी और कमजोर मानते थे। समाज के लोग सिद्धान्तहीन होते जाते हैं, तभी दुष्ट लोग नेतृत्व पर काबिज होते हैं।

सार्वदेशिक भवन में बैठकर तथा उससे पहले भी संगठन को विकृत करने के लिए अग्निवेश ने मुसलमान, ईसाइयों को आर्यसमाज का सदस्य बनाने की वकालत की थी। ऐसा करने वालों के बारे में हमें स्पष्ट होना चाहिए जो कि स्वार्थी दष्ट प्रकृति का होता है उसे संस्था, समाज या देश के नुकसान की चिन्ता नहीं होती। यह कहना कि ईसाई मुसलमान रहते हुए वह आर्यसमाजी हो सकता है तो उससे भी आसान है सनातनी रहते हुए आर्यसमाजी रहना। अग्निवेश की नजर में सनातनी, मूर्तिपूजक, पुराणपन्थी का आर्यसमाजी होना रुचिकर नहीं होगा, जबकि वेद विरोधी सिद्धांत

 

विरोधी ईसाई और मुसलमानों का आर्यसमाजी होना उसे सही लगता है। वास्तविकता यह है कि ईसाई, की उपासना करने वाले व्यक्ति को आर्यसमाजी कहना बौद्धिक व्यभिचार व सैद्धान्तिक वेश्यावृत्ति है। या वेश्या, स्त्री के नाते तो एक है, परन्तु अन्तर इतना ही हैं कि एक की एक के साथ निष्ठा है, दूसरा निष्ठा नहीं, उसकी निष्ठा पैसों के साथ है।

ऐसे ही अग्निवेश की निष्ठा अपने व्यक्तिगत स्वार्थ लक्ष्य की पूर्ती में है अतः उसका यह कथन कि कोई मुसलमान, ईसाई, जड़ पूजक, साकार उपासना वाला व्यक्ति हो सकता है, यह केवल बौद्धिक वेश्यावृत्ति है और कुछ नहीं।

इस बात की पुष्टि में एक और प्रसंग उद्धृत करना उचित रहेगा। दिसम्बर मास में नागपुर में राष्ट्रीय संगोष्ठी का प्रसंग। गोष्ठी की समाप्ति के दिन सायंकाल भोजन के पश्चात् डॉ. रामप्रकाश और अग्निवेश चर्चा कर रहे थे। अग्निवेश को डॉ. साहब से शिकायत थी।

अग्निवेश ने आचार्य बलदेव जी और आचार्य विजयपाल जी को हवालात पहुचाने का षड्यंत्र रच रखा था, जिसे डॉ. राम प्रकाश जी ने अनुचित मानकर असफल करा दिया। उनका कहना था- उनके जानते-बुझते आर्यसमाज की साधु गलत आरोप में हवालात भेजा जाय, यह कभी संभव नहीं। अग्निवेश से कहा गया- आचार्य बलदेव साधु हैं, उनके विरुद्ध ऐसा मिथ्या आरोप उचित नहीं, तो अग्निवेश का उत्तर था- कोई भी गेरवे कपड़े से क्या साधु हो जाता है? अब कोई बताये कौन साधु है या नहीं- यह प्रमाण-पत्र भी ढोंगी साधु से लेना पड़ेगा?

इससे इस व्यक्ति की मानसिकता का पता चलता है।

पाठको को याद होगा, अग्निवेश डॉट काम पर वर्षों तक वैदिक धर्म और ऋषि विरोधी बातों का प्रचार-प्रसार होता रहा। जब आपत्ति हुई तो मासूम कहता है, ये तो हमारे नाम से किसी ने बना दी है। हर बार अपराध करना और लोगों ने मुझे गलत समझा है- कहकर पीछा छुड़ाना, क्या यह लोगों को बेवकूफ बनाने वाली बात नहीं है? अग्निवेश का सिद्धान्तों और स्वामी दयानन्द से कितना प्रेम है.

इसके उदाहरण रूप में जनसत्ता दिनांक ६ अक्टूबर १९८९ का निम्न सन्दर्भ पढ़ने लायक है- “मुकदमें में स्वामी अग्निवेश ने मनु को देशद्रोही करार देते हुए उसे समाज का प्रबल शत्रु बताया। उन्होने कहा कि न्यायालय में जात-पाँत और छुआछुत के जन्मदाता मनु की प्रतिमा की स्थापना अन्यायपूर्ण है।” क्या ऐसा व्यक्ति ऋषि दयानन्द के सम्मान की रक्षा कर सकता है? अग्निवेश के बारे में सत्यार्थ प्रकाश की एक पंक्ति बड़ी सटीक लगती है

“अन्तः शाक्ता बहिश्शैवा: सभा मध्ये त वैष्णवाः’।

जहाँ तक दूसरे लोगों द्वारा सत्यार्थ प्रकाश पर आक्षेप करने का प्रश्न है, उन लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि ऋषि दयानन्द का स्थान किसी समाज सुधारक की तुलना में कम आँकने से ऋषि दयानन्द का कुछ बिगड़ने वाला है, परन्तु यह काम आकलन कर्ता के बुद्धि के दिवालियेपन का द्योतक अवश्य है।

ऋषि दयानन्द ने जो लिखा और जो कहा, छिप कर नहीं कहा, समाज में उन वर्गों में जाकर कहा। उनका उद्देश्य देश और समाज के हित में वास्तविकता का बोध कराना मात्र था, किसी के प्रति राग-द्वेष नहीं। उन्होंने किसी बात को अच्छी लगने पर उसकी प्रशंसा में कोई कमी नहीं छोड़ी।।

सत्यार्थ प्रकाश पिछले डेढ़ सौ वर्षों से पढ़ा-पढ़ाया जा रहा है, क्या पहले लोगों की समझ नहीं थी? मालूम होना चाहिए कि पटियाला नरेश के सामने शास्त्रार्थ के समय यही प्रश्न उठा था। उस समय भी यही उचित समझा गया था कि गुरु भी बड़े हैं स्वामी जी भी बड़े। किसी ने किसी को कुछ कहा-सुना तो उसके लिए अनुयायियों को लड़ना उचित नहीं है।

आज तो नेता बनने के चक्कर में लोग ऐसी बात ढूँढने की कोशिश में रहते हैं, जिससे समाज में विघटन और संघर्ष पैदा हो और उनको नेतागिरी करने का मौका मिले। हमें स्मरण रखना चाहिए कि सिक्खों में बहुत लोग आर्यसमाजी थे, क्या वे गुरुओं का महत्त्व नहीं मानते थे या शहीद भगतसिंह के पिता, चाचा को सत्यार्थ प्रकाश समझ में नहीं आता था? जब तब आपत्ति नहीं हुई तो आज क्यों होनी चाहिए?

जो व्यक्ति सत्यार्थ प्रकाश से आपत्तिजनक वक्तव्य हटाने की बात कर सकता है, क्या वह कुरान की उन आयतों को जिसे न्यायालय ने भी आपत्तिजनक माना है, उन्हें हटाना तो दूर हटाने की सिफारिश भी कर सकता है या नहीं, क्योंकि उसकी नजर में इस्लाम महान् धर्म है और कुरान पवित्र धर्म पुस्तक है। यहाँ वह उनका वकील है। ईसाइयों द्वारा देश में किये जा रहे षड्यन्त्रों की वह वकालत करता है, क्योंकि राजनीति में स्थान चाहिए।

क्या गुरु गोविन्दसिंह के शब्दों को वह पुस्तक से निकलवा सकता है, जिनमें तुर्क को गो-ब्राह्मण घातक कहकर उनके नाश की प्रतिज्ञा की है

जगे धर्म हिन्दू सकल धुन्ध भाजे

 

7 thoughts on “ऋषि दयानन्द का हत्यारा कौन? –डॉ. धर्मवीर जी”

  1. आर्यसमाज से भटके हुए दिशा हीन इस संत को परमात्मा शदबुद्धी दे। आर्य समाज अमर रहे

  2. Now its time to remove anarya and dhongi swami agnivesh from Arya Samaj who is doing badnami of Arya Samaj

  3. यदि सत्यार्थ प्रकाश को बदल दिया जायगा, तो वह स्वामी दयानन्द जी का सत्यार्थ प्रकाश क्योंकर होगा और क्योंकर​ रह जायगा? क्या वह​ अग्निवेश जी का नहीं हो जायगा? यदि वह​ बहुत आग्रही हैं तो उनको अग्निवेश सत्यार्थ प्रकाश नाम से एक नवीन सत्यार्थ प्रकाश मुद्रित प्रकाशित करना चाहिये। यही युक्त एवं न्याय सङ्गत होगा।

    डा० रणजीत सिंह (लन्दन​)

    1. वह अपना कैसा भी ग्रन्थ प्रकाशित करें कोई सरोकार नही है परन्तु ऐसा ग्रन्थ जो ऋषि के सिधान्तों का हनन करता हो और उसे आर्य समाज के नाम से प्रकाशित करें यह स्वीकार्य नही

  4. First thing first. First remove the repeatedly repeated anti-humanity, anti-women and objectionable statements of other religious books and then only can he talk about Satyarth Prakash. Because Satyarth Prakash is not the initiator, but in response to those objectionable statements.

    Kabir, Lal Dyed of Kashmir, Sikhs gurus, even Adi Shankar (in Para Puja) ….. have critcized murti puja. Why single out Mahrishi Dayanand? Because his logic is surgical and un-answerable!

    How can Agnivesh or any one alter the character of Satyarth Prakash? He can write his own book.

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