आर्य महापुरुषों के प्रति डॉ0 अम्बेडकरजी का कृतज्ञता भाव:डॉ कुशलदेव शाश्त्री

डॉ0 अम्बेडकरजी भी आर्य महापुरुषों के प्रति हार्दिक कृतज्ञता भाव रखते थे। उन्होंने अपनी पी0एच0डी0 का प्रकाशित शोध-प्रबन्ध बड़ोदरा नरेश सयाजीराव गायकवाड़ को समर्पित किया है। डॉ0 अम्बेडकरजी के गुरु ज्योतिबा फुलेजी को महाराज सयाजीराव गायकवाड़जी ने ही सन् 1886 में मुम्बई के एक समारोह में ’महात्मा‘ उपाधि प्रदान की थी। 6 मई 1922 को कोल्हापुर नरेश शाहू महाराज का निधन हो गया। 10 मई 1922 को श्री अम्बेडकर ने युवराज राजाराम महाराज को लिखे अपने पत्र में कहा था –

’महाराज के निधन का समाचार पढ़कर मुझे तीव्र आघात पहुँचा। इस दुःखद घटना से मुझे दोहरा दुःख हुआ है। जहाँ मैं अपना एक असाधारण मित्र खो बैठा हूँ वहाँ दलित समाज अपने एक सबसे महान् हितचिन्तक से वंचित हो गया है। मैं स्वयं जब इस शोक में आकुल-व्याकुल हूँ, ऐसे समय में मैं आपके और महारानी के दुःख में अन्तःकरण पूर्वक सहानुभूति व्यक्त करने की त्वरा कर रहा हूँ।‘

 

स्वामी श्रद्धानन्दजी के विषय में डॉ0 अम्बेडकरजी लिखते हैं -’स्वामीजी अति जागरूक एवं प्रबुद्ध आर्यसमाजी थे और सच्चे दिल से अस्पृश्यता को मिटाना चाहते थे।‘ सुप्रसिद्ध राष्ट्रीय व आर्यसमाजी नेता लाला लाजपतराय की सन् 1915 में ही अमेरिका के एक पुस्तकालय में श्री अम्बेडकरजी से मुलाकात हुई थी। लालाजी ने तब इस भारतीय विद्यार्थी से बड़ी ही आस्थापूर्वक कुशलक्षेम पूछकर राष्ट्रीय विषयों की चर्चा की थी। अम्बेडकरजी दलित समाज से सम्बद्ध हैं, यह जानकारी तो लालाजी को बहुत-सा काल गुजरने के बाद ही मिली। लालाजी के सम्बन्ध में डॉ0 अम्बेडकरजी ने लिखा है-’उनके पिताजी आर्यसमाजी थे, अतः उन्हें प्रारम्भ से ही उदारमतवाद की घुट्टी पिलाई गई थी। राजनीतिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टियों से वे क्रान्तिकारी थे। दलितोद्धार के आन्दोलन में वे विश्वसनीय प्रामाणिकता और सहानुभूति के साथ शामिल थे।‘

            डॉ0 अम्बेडकरजी ने श्री सन्तराम बी0 ए0 और भाई परमानन्दजी के जात-पाँत तोड़क मण्डल से प्रेरणा ग्रहण करके ही ’समाज समता संघ‘ की स्थापना की थी। इस संघ के वे स्वयं अध्यक्ष थे। भारतीय समाज और राष्ट्र को भाई परमानन्द और श्री सन्तराम बी0 ए0 जैसे सार्वजनिक कार्यकत्र्ता आर्यसमाज की ही देन हैं। बाबासाहब अम्बेडकरजी अपने जीवन के पूर्वार्द्ध में वेदोक्त पद्धति से सम्पन्न विवाह-उपनयन आदि संस्कारों और श्रावणी कार्यक्रमों में शामिल होते हुए नजर आते हैं। घरेलू और सार्वजनिक पत्रों में ’जोहार‘ के स्थान पर ’नमस्ते‘ करते हुए दिखलाई देते हैं। सहभोज और अन्तर्जातीय विवाह आदि समाज-सुधार के उपक्रमों में सक्रिय आस्था बतलाते हैं। निश्चित रूप से उनकी इन सब गतिविधियों की पृष्ठभूमि में महर्षि दयानन्द व आर्यसमाज आन्दोलन की विस्मरणीय प्रेरणा रही है। इसका श्रेय बड़ोदरा की निर्धन-दलित बस्ती से श्री अम्बेडकरजी को सर्वप्रथम आर्यसमाज की खुली हवा में लानेवाले पं0 आत्मारामजी को विशेष रूप से है। कालान्तर में डॉ0 बाबासाहब अम्बेडकरजी मुम्बई के ना0 म0 जोशी मार्ग पर स्थित क्रमांक 98 के आर्यसमाज लोअर परल के समारोह में भी ˗प्रमुख अतिथि के रूप में पधारे थे। (आर्यसमाज लोअर परल स्मरणिका 1986-87, पृष्ठ 17)

यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि बड़ोदरा नरेश श्री सयाजीराव गायकवाड़, कोल्हापुर नरेश श्री राजर्षि शाहू महाराज और आर्यविद्वान् पं0 आत्मारामजी अमृतसरी के संयुक्त-समन्वित आर्योचित आचरण के माध्यम से सर्वप्रथम बाबासाहब अम्बेडकरजी को आर्यसमाज रूपी माँ की गोद मिली। महर्षि दयानन्द द्वारा स्थापित आर्यसमाज का वात्सल्य मिला। देव दयानन्द और आर्यसमाज की जीवन दृष्टि का उल्लेखनीय प्रभाव डॉ0 अम्बेडकरजी के पूर्वार्द्ध पर स्पष्ट रूप से दिखलाई देता है। उत्तरार्द्ध में तो उन्होंने ’नास्तिको वेदनिन्दकः‘ का रूप धारण कर लिया था। सम्भवतः इसका कारण डॉ0 अम्बेडकरजी की प्राच्य वैदिक दृष्टि से अनभिज्ञता और पाश्चात्य यूरोपीय दृष्टि से प्रभावित होना था।

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