आर्यसमाज की प्रगतिशील दृष्टि: कुशलदेव शास्त्री

बड़ौदा नरेश सयाजीराव गायकवाड़ (1863-1939) और कोल्हापुर नरेश राजर्षि शाहू (1874-1922) का स्वामी दयानन्द और आर्यसमाज की ओर आकृष्ट होने का महत्त्वपूर्ण कारण है-आर्यसमाज की वेद विषयक प्रगतिशील दृष्टि। इन क्षत्रिय राजाओं को तत्कालीन रूढ़िवादी पण्डित शूद्र समझते थे और इसी कारण इन्हें वेदोक्त संस्कार का अधिकार प्रदान करने के लिए तैयार न थे, जबकि स्वामी दयानन्द की दृष्टि में वेद पढ़ने का अधिकार मानवमात्र को था। महाराष्ट्र केसरी छत्रपति शिवाजी का यज्ञोपवीत संस्कार करने में हिचककिचाहट करने वाले रूढ़िवादी पण्डितों की परम्परागत संकीर्णता 20वीं सदी में भी ज्यों की त्यों बनी हुई थी, जबकि स्वामी दयानन्द ने वेद के आधार पर ही यह सिद्ध किया था कि मानवमात्र के साथ समस्त स्त्री-शूद्रों को भी वेदाध्ययन करने का अधिकार है। रूढ़िवादी पण्डितों की इस संकीर्णता से बेचैन होकर श्री सयाजीराव गायकवाड़ और शाहू महाराज आर्यसमाज की ओर आकृष्ट हुए। इन आर्यनरेशों ने केवलमात्र डॉ0 भीमराव अम्बेडकर को ही नहीं, अपितु अन्य प्रतिभावान् दलितों को भी छात्रवृत्तियाँ प्रदान की थीं।

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