आरक्षण नहीं, वैदिक संरक्षण

आरक्षण नहीं, वैदिक संरक्षण

– पं. नन्दलाल निर्भय सिद्धान्ताचार्य

धधक रही है देश में, आरक्षण की आग।

अपने, अपनों पर रहे, यहाँ गोलियाँ दाग।।

यहाँ गोलियाँ दाग रहे, मानव अज्ञानी।

नेता तिकडम-बाज, कराते हैं शैतानी।।

भारत में दी बढा, फूट की अब बीमारी।

गए धर्म को भूल, स्वार्थी अत्याचारी।। 1।।

 

नेताओं को लग गया, आरक्षण का रोग।

नर-नारी इस रोग का, भोग रहे हैं योग।।

भोग रहे हैं योग, दुःखी है जनता भारी।

दिन पर दिन बढ रही, भयंकर यह बीमारी।।

अगर रहा यह हाल, देश यह मिट जाएगा।

हमें सकल संसार, स्वार्थी बतलाएगा।। 2।।

 

कुर्सी की खातिर रहे, नेता रोग बढ़ाय।

लालच में ये फंस गए, लालच बुरी बलाय।।

लालच बुरी बलाय, भूख वोटों की भारी।

इसीलिए तो पाप, रहे कर भ्रष्टाचारी।।

जन्म-जाति का रोग, बढ़ाते ही जाते हैं।

करते खोटे काम, तनिक ना शर्माते हैं।। 3।।

 

मदद गरीबों की करों, कहते चारों वेद।

धूर्तलोग समझें नहीं, यही हमें है खेद।।

यही हमें है खेद, धूर्त आदर पाते हैं।

बड़े-बड़े विद्वान्, यहाँ धक्के खाते हैं।।

हे मित्रों! यदि मान, जगत में चाहो पाना।

वेदों का सिद्धान्त, तुहें होगा अपनाना।। 4।।

 

गुरुकुलों में सब पढ़े, निर्धन अरु धनवान।

खान-पान-पहरान हो, सबका एक समान।।

सबका एक समान, व्यवस्था हो सरकारी।

पढ लिखकर सब बनें, तपस्वी-वेदाचारी।।

योग्यता अनुसार, काम सरकार उन्हें दे।

आरक्षण को मिटा, संरक्षण को अपना लें।।5।।

 

देव दयानन्द की अगर, शिक्षा लें सब मान।

हो जाएगा विश्व का, याद रखो! कल्याण।।

याद रखो कल्याण, साथियों! यदि तुम चाहो।

स्वयं आर्य बनो, विश्व को आर्य बनाओ।।

वैदिक पथ पर चलो, मार्ग है यह सुखदाई।

‘‘नन्दलाल’’ हो भला, आर्यो! करो भलाई।।6।।

आर्य सदन बहीन जनपद पलवल, हरियाणा।

चलभाष क्रमांक – 09813845774

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *