यज्ञ के ब्रह्मा द्वारा यज्ञ में तीन बार दक्षिणा लेना कहाँ तक उचित है?

. यज्ञ के ब्रह्मा द्वारा यज्ञ में तीन बार दक्षिणा लेना कहाँ तक उचित है?

कृपया सविस्तार समाधान दीजिये। धन्यवाद!

– मन्त्री, रविकान्त राणा, सहारनपुर

समाधान-

(ग)यज्ञ करवाने के बाद यजमान पुरोहित को उचित दक्षिणा अपने सामर्थ्य अनुसार अवश्य देवें, यह शास्त्र का विधान है। यज्ञ की दक्षिणा एक बार यज्ञ समपन्न होने पर दी जाती है अथवा यज्ञ समपन्न होने पर पुरोहित को दक्षिणा लेनी चाहिए। वह दक्षिणा एक ही बार दी जाती है। तीन-तीन बार लेने वाला भी पुरोहित महापुरुष है, इसका तो आश्चर्य है। आज यज्ञ जैसे परोपकार-रूप कर्म को भी कमाई का साधन बनाते जा रहे हैं। पौराणिक पुरोहित तो धन-हरण के लिए यज्ञकर्म में अनेक अवैदिक लीलाएँ करते हैं, किन्तु आर्यसमाज के पुरोहित द्रव्य के लालच में ऐसी क्रियाएँ कर बैठते हैं। यजमान से संकल्प पाठ करवाते समय पैसे रखवा लेते हैं, यज्ञ की दक्षिणा तो लेते ही हैं। यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद यजमानों व अन्य लोगों को फल व अन्य खाद्य पदार्थ का पुरोहित या ब्रह्मा अपने हाथ से प्रसाद के रूप में वितरण करते हैं, इस वितरण का प्रयोजन द्रव्य प्राप्ति ही है।

तीन-तीन बार दक्षिणा किस प्रकार ले लेते हैं यह तो मेरी भी समझ में नहीं आया। फिर भी जो तीन-तीन बार लेता है सो अनुचित ही करता है। अस्तु।

One thought on “यज्ञ के ब्रह्मा द्वारा यज्ञ में तीन बार दक्षिणा लेना कहाँ तक उचित है?”

  1. ओ३म्
    तीन बार दक्षिणा विषय पर जानकारी उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद। आजकल हमारी संस्थाओं में यह कुरीति पूरे जोर पर है। जब कभी किसी भी आर्य समाज में वार्षिक उत्सव मनाया जाता है तो समापन के दिन आर्य समाज के पुरोहित फल का टोकरा रख कर आऐ हुए लोगों को आशीर्वाद के लिए बुलाते हैं तो शिश्टाचारवश लोगों को दक्षिणा देनी ही पड़ती है। जब कि उत्सव के दौरान सभी सदस्य व अन्य लोग यथा योग्य दान दक्षिणा दे चुके होते हैं। पुरोहित को भी उस उत्सव का संस्था की ओर से उचित पुरस्कार अर्थात सामुहिक दक्षिणा मिल चुकी होती है। अक्सर लोगों को यह टोकरी रख कर आशीर्वाद का तरीका पसंद नहीं होता। यह परंपरा बदली जानी चाहिए। और उच्च परंपरा का पालन होना चाहिए।
    धन्यवाद।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *