पेरियार रचित सच्ची रामायण का खंडन भाग-११

*पेरियार रचित सच्ची रामायण का खंडन भाग-११*
*अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
-कार्तिक अय्यर
ओ३म्
प्रिय पाठकगण! सादर नमस्ते।पिछली पोस्ट पर हमने महाराज दशरथ व उनके परिजनों एवं मंत्रिगणों का संक्षिप्त चरित्र चित्रण किया।इस पोस्ट में पेरियार साहब के *दशरथ* नाम से किये ३२ आक्षेपों की समीक्षा का क्रम आगे बढ़ाते हैं।पाठकगण आलोचनाओं को पढ़ें और आनंद ले।
*आक्षेप १* *कैकेई के ब्याह के पहले दशरथ ने उससे प्रतिज्ञा की थी कि उससे उत्पन्न पुत्र को अयोध्या की राजगद्दी दी जाएगी ।कुछ कथाओं में वर्णन किया गया है ब्याह के बाद दशरथ ने अपना राज्य के कई को सौंप दिया था और दशरथ उसका प्रतिनिधि मात्र बनकर शासन करता था।*
*समीक्षा*:- पेरियार साहब ने अपने इस प्रश्न का करके कोई श्लोक प्रमाण नहीं दिया आगे जिस प्रकार की रीति आपने अपना ही है कम से कम उस की तरह ही कोई झूठा पता लिख देते! खैर हम आप की समीक्षा करते हैं यह कहना कि “कैकई के ब्याह करने के पहले महाराज दशरथ ने कैकई राज से प्रतिज्ञा की थी कि कैकई से उत्पन्न संतान ही अयोध्या की राजगद्दी पर विराजमान होगी” यह बात रामायण में प्रक्षिप्त की गई है इस बात का प्रबल प्रमाण हम देते हैं । पहले निम्न हेतुओं पर प्रकाश डालते हैं:-
१. प्रथम तो इक्ष्वाकु कुल की परंपरा थी कि राजा का ज्येष्ठ पुत्र ही राज्य सिंहासन पर बैठेगा महाराज दशरथ इस परंपरा के विरुद्ध केकई के पिता को ऐसा अन्यथा वचन नहीं दे सकते।
२. यदि मान लिया जाए कि महाराज दशरथ ने ऐसा कोई वचन दिया भी था तो राम जी के राज्याभिषेक के समय में यह बात मंथरा और कैकई को याद नहीं थी? मंथरा को तो यह कहना था कि हे कैकेई राजा अपना वचन भंग करके श्रीराम को राजा बना रहे हैं उनको वह वचन याद दिलाओ जो उन्होंने तुम्हारे पिता को विवाह के समय दिया था ,परंतु मंथरा ऐसा नहीं करती मंथरा कहती है कि राजा दशरथ ने तुमको जो दो वरदान दिए थे उनका प्रयोग करो। कैकेई उसकी बात को मान भी जाती है इससे यह सिद्ध है केकयराज को राजा दशरथ ने कोई वचन नहीं दिया।
३. कैकई मंथरा के मुख से श्रीराम के राज्याभिषेक की घोषणा सुनकर बहुत प्रसन्न हो जाती है और कहती है कि राम मुझे अपनी मां कौसल्यासे भी अधिक सम्मान देता है।यही नहीं वह कहती है कि राजा भरत बने या राम बने कोई भी बने उसके लिए दोनों समान हैं। यदि कोई प्रतिज्ञा राजा ने की होती तो कह कई खुश होने के बजाए गुस्से में आ जाती की राजा भरत को राजगद्दी देने की जगह श्री राम को दे रहे हैं।कैकेई मंथरा को खुश होकर अपने गले का एक बहूमूल्य हार भेंट भी करती है।
४.महाराज दशरथ जब सभी जनपदों के राजाओं की सभा में जब श्रीराम के राज्याभिषेक की घोषणा की तब सभी राजाओं और मंत्रियों ने महाराज का अनुमोदन किया तब किसी भी मंत्री या राजाने इस प्रस्ताव का विरोध नहीं किया इससे सिद्ध है कि किसी भी मंत्री,ऋत्विक या राजा को भारत को राजगद्दी देने का वचन के बारे में ज्ञान नहीं था ,और होगा भी कैसे जब ऐसा वचन दिया ही नहीं गया!
५. भारत के ननिहाल जाने और भारत और श्री राम के वन में मिलाप के प्रसंग में जब भारत श्री रामचंद्र जी को अयोध्या वापस लौटने का आग्रह करते हैं उसे समय श्रीराम ने वचन वाली कही थी। वह पूरा प्रकरण प्रक्षेपों से भरा है एक जगह जाबाल नामक ऋषि रामजी से नास्तिक कथन कहते हैं उत्तर में श्री राम आस्तिक मतका मंडन और नास्तिक मत का खंडन करते हैं,साथ ही बौद्ध तथा चार्वाक मत की निंदा भी करते हैं जबकि रामायण में कई बार यह आया है की उस समय कोई भी व्यक्ति नास्तिक या वेद विरोधी नहीं था और ना ही बौद्ध गया चार्वाक रामायण काल में थे। इससे यह सिद्ध है कि यह पूरा प्रकरण  का बौद्ध काल में किसी हिंदू पंडित ने नास्तिक मत की निंदा करने के लिए रामायण में प्रक्षिप्त किया है।
आगे इन बिंदुओं पर वाल्मीकि रामायण से प्रमाण लिखते हैं:-
*सुमंत्र ने कैकेयी से कहा*
यथावयो हि राज्यानि प्राप्नुवन्ति नृपक्षये ।
इक्ष्वाकुकुलनाथेऽस्मिम्स्तल्लोपयितुमिच्छसि ॥अयोध्याकांड-३५-९॥
अर्थात्, ” देख! राजा दशरथ के मरने पर राज्य का स्वामी अवस्था अनुसार जेष्ठ पुत्र होता है। क्या तुम महाराज दशरथ के जीवित रहते ही इक्ष्वाकु कुल की इस प्राचीन व्यवस्था का लोप करना चाहती हो?”।।९।।
भरत,जिसके लिए कैकई इतना प्रपंच कर रही थी,वह भी इसी परंपरा का अनुमोदन करते हैं:-
अस्मिन् कुले हि सर्वेषाम् ज्येष्ठो राज्येऽभिषिच्यते ।
अपरे भ्रातरस्तस्मिन् प्रवर्तन्ते समाहिताः ॥अयोध्याकांड ७३-२०॥
अर्थात,”रघुवंश के यहां परंपरा है कि बड़ा भाई ही राज्य का अधिकारी होता है और छोटे भाई उसके अधीन सब कार्य करते हैं”।।२०।।
शाश्वतो ऽयं सदा धर्म्म: स्थितो ऽस्मासु नरर्षभ ।
ज्येष्ठपुत्रे स्थिते राजन्न कनीयान् नृपो भवेत् ।। अयोध्याकांड १०२.२ ।।(कुछ संस्करणों में सर्ग १०२ श्लोक २ में यह श्लोक है।यहां हम गीताप्रेस संस्करण के अनुसार संदर्भ दे रहे हैं)
अर्थात्, ” हे पुरुष श्रेष्ठ! हमारे कुल में तो यही सनातन नियम है की जेष्ठ पुत्र के समक्ष छोटा पुत्र राजा नहीं होता”।।२।।
   रघुकुल के कुलगुरु महर्षि वसिष्ठ भी कहते हैं:-
पितुर्व्म्शचरित्रज्ञः सोऽन्यथा न करिष्यति ॥अयोध्याकांड ३७-३१॥
अर्थात् “अपने पितृ कुल के आचार्य को जानने वाले भरत कुलाचार के विरुद्ध आचरण कभी न करेंगे” ।।३१।।
अतः इस परंपरा के विरुद्ध दशरथ कोई भी वचन नहीं दे सकते।
अयोध्याकांड सर्ग 7,8और 9 में वर्णन है वह संक्षेप में कहते हैं।
जब मंथन राम माता कौसल्या का धनवान तथा अयोध्या वासियों को आनंदित होते देखती है तब श्री राम की भाई से इस विषय के बारे में पूछती है। धात्री कहती है कि प्रातः काल पुष्य नक्षत्र में महाराज श्रीराम को युवराज पद पर अभिषिक्त करेंगे। यह समाचार सुनकर क्रोध में जलती हुई मंथरा कैकेई के शयनागार की ओर गई और कैकई को जगा कर उससे बोली,” हे मुढे!उठ! पड़ी-पड़ी क्या सो रही है तेरे ऊपर को बड़ा भारी भय आ रहा है। इत्यादि वचन कैकेयी से कहने लगी। मंथरा के वचन सुनकर हर्ष परिपूर्ण सुंदर मुखी कैकेयी शय्या से उठी।
अतीव सा तु संहृष्टाअ कैकेयी विस्मयान्विता ।
एकमाभरणं तस्यै कुब्जायै प्रददौ शुभम् ॥२-७-३२॥
अर्थात उसने अत्यंत हर्षित होकर एवं आश्चर्यचकित हो कर अपना एक बहुमूल्य आभूषण कुब्जा को प्रदान किया।।३२।। और मंथरा से बोली,” हे मंथरे! तूने मुझे परम प्रिय संवाद सुनाया है इसके लिए मैं तुझे क्या उपहार दूं इत्यादि।” मंथरा कैकई को भड़काते हुए बहुत सी बातें कहती हैं जैसे, राम के राजा बनने पर है कि वह भारत की दुर्गति होगी इत्यादि। जब मंथन आने के कई को इस प्रकार पट्टी पढ़ाई तो क्रोध के मारे लाल मुख करके एक ही ने उसे कहा ,”मैं आज ही राम को वन में भेजती हूं और शीघ्र ही भरत को युवराज पद पर अभिषिक्त कर आती हूं।” मैं जब कह कर उससे इसका उपाय पूछती है तो मंथरा देवासुर संग्राम में कैकई का राजा दशरथ के प्राण बचाने का वृतांत सुनाती है ,फिर कहती है कि जब राजा ने प्रसन्न होकर तुझे दो वर दिए थे तब तूने कहा था कि जब आवश्यकता होगी तब मांग लूंगी। उन चारों में से तू भरत का राज्याभिषेक और श्रीराम का १४ वर्ष का वनवास मांग ले। (सर्ग ९/३०)
इस पूरे प्रकरण में मंथरा राजा दशरथ की कैकयराज को दी हुई प्रतिज्ञा का उल्लेख नहीं करती उसे दो वरदानों के अलावा पिता को दिए वचन दुबारा स्मरण कराने की आवश्यकता थी। दशरथ ने कैकई को कहना था ,”हे राजन्! मेरे पिता के समक्ष आपने जो वचन दिया था उसे याद कर आप भारत को युवराज बनाइए। पर ऐसा नहीं हुआ ।कैकेई देवासुर संग्राम में रक्षा करते करने के कारण मिले दो वरदान मांगती है इससे सिद्ध है कि कैकयराज अश्वपति को कोई वचन नहीं दिया गया था पूरा प्रकरण पीछे से रामायण में मिलाया गया है।
यदि कैकयराज वाले वचन की बात सत्य मान ली जाए तो फिर भी कैकेई राजा दशरथ से उक्त दो वरदान पूर्ण करने की आशा कैसे कर सकती थी? जो व्यक्ति उसके पिता को दिए वचन से मुकर गया वह भला कैकई को दिए वचनों को भला क्या खाकर पूरा करेगा? अतः कैकयराज के वचन वाली बात झूठी और कपोलकल्पित है।
इस वचन की बात “श्रीराम भरत- मिलन” के प्रकरण में आती है।
अयोध्या कांड सर्ग १०२ में भरत श्री राम से पुनः राज्य ग्रहण करने का अनुरोध करते हैं। साथ ही उनके पिता की  मृत्यु के लिए शोक ना करने का उपदेश देते हैं और पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए ही राज्य ग्रहण ना करके वन में रहने का ही दृढ़ निश्चय करते हैं।
यत्राहमपि तेनैव नियुक्त: पुण्यकर्मणा ।
तत्रैवाहं करिष्यामि पितुरार्य्यस्य शासनम् ।।
न मया शासनं तस्य त्यक्तुं न्याय्यमरिन्दम ।
तत् त्वयापि सदा मान्यं स वै बन्धु: स न: पिता ।।
तद्वच: पितुरेवाहं सम्मतं धर्मचारिण: ।
कर्मणा पालयिष्यामि वनवासेन राघव ।।
धीर्मिकेणानृशंसेन नरेण गुरुवर्त्तिना ।
भवितव्यं नरव्याघ्र परलोकं जिगीषता ।। २.१०५. ४१-४४ ।।
अर्थात्,”उन पुण्य कर्मा महाराज ने मुझे जहां रहने की आज्ञा दी है वहीं रह कर मैं उन पूज्य पिता के आदेश का पालन करूंगा ।शत्रु दमन!भरत पिता की आज्ञा की अवहेलना करना मेरे लिए कदापि उचित नहीं है वह तुम्हारे लिए भी सर्वदा सम्मान के योग्य है क्योंकि वही हम लोगों के हितैषी बंधु और जन्मदाता थे। रघुनंदन! मैं इस वनवास रूपी कर्म के द्वारा पिताजी के ही वचन का जो धर्मात्माओं को भी मान्य है, पालन करूंगा। नरश्रेष्ठ!परलोक पर विजय पाने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को धार्मिक क्रूरता से रहित और गुरुजनों का आज्ञापालक होना चाहिए।” ४१-४४।।
यहां पर श्री राम कैकयराज को दिए वचन की कोई बात नहीं करते।आगे सर्ग १०६ में भरत पुनः बहुत सी बातें कहकर श्रीराम को मनाने का प्रयास करते हैं।तब सर्ग १०७ में श्रीराम भरत के नाना कैकयराज को दिये वचन का उल्लेख करते हैं।
सर्ग १०७:
जब भारत पुनः इस प्रकार प्रार्थना करने लगे तब कुटुंबीजनों के बीच में सत्कार पूर्वक बैठे हुए लक्ष्मण के बड़े भाई श्री रामचंद्र जी ने उन्हें इस प्रकार उत्तर दिया-
उपपन्नमिदं वाक्यं यत्त्वमेवमभाषथा: ।
जात: पुत्रो दशरथात् कैकेय्यां राजसत्तमात् ।। २.१०७.२ ।।
पुरा भ्रात: पिता न: स मातरं ते समुद्वहन् ।
मातामहे समाश्रौषीद्राज्यशुल्कमनुत्तमम् ।। २.१०७.३ ।।
इन दो श्लोकों में श्री राम कहते हैं कि, महाराज दशरथ के द्वारा राज्य कन्या कैकई के गर्भ से उत्पन्न हुए हो। आज से पहले की बात है- पिताजी का जब तुम्हारी माताजी के साथ विवाह हुआ था तभी तुम्हारे नाना से कैकेयी के पुत्र को राज्य देने की उत्तम शर्त कर ली थी।।२-३।।
इसके बाद पुनः कैकई को दो वरदानों का वर्णन है।
पूरा प्रकरण पढ़कर लगता है कि व्यर्थ ही बात को यों खींचा जा रहा है। सर्ग १०४ में श्रीराम इस वचन की बात नहीं करते प्रत्युत कैकेयी को दिये दो वरदानों(प्रतिज्ञाओं) की ही बात करते हैं।अब अचानक सर्ग १०७ में भरत के नाना को दिये वचन को कहते हैं और कैकेयी के वरदानों की बाद उसके बाद कहते हैं। प्रश्न यह है कि श्रीराम पहले इस वचन का उल्लेख क्यों नहीं करते? दरअसल यह पूरा स्थल प्रक्षेपों से भरा हुआ है ।सर्ग १०७ के आगे के दो सर्ग पूरी तरह से प्रक्षिप्त है। सर्ग १०८ में जाबालि नामक एक ऋषि श्रीराम से नास्तिकमत का अवलंबन लेकर श्रीराम को समझाते हैं।उनकी सारी दलीलें बौद्ध और चार्वाकमत से मिलती हैं। सर्ग १०९ में श्रीराम जाबालि के नास्तिक मत का खंडन और आस्तिक मत का मंडन करते हैं।विस्तारभय से हम उनको पूरा नहीं लिख रहे हैं।मात्र एक श्लोक लिखकर उसका अर्थ देते हैं:-
यथा हि चोर: स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि ।
तस्माद्धि य: शङ्क्यतम: प्रजानां न नास्तिकेनाभिमुखो बुध: स्यात् ।। २.१०९.३४ ।।
‘ जैसे चोर दंडनीय होता है उसी प्रकार वेद विरोधी बुद्ध (बौद्ध मतावलंबी)भी दंडनीय है तथागत (नास्तिक विशेष) और नास्तिक (चार्वाक)को भी इसी कोटि में समझना चाहिए। इसीलिए प्रजा पर अनुग्रह करने के लिए राजा द्वारा जिस नास्तिक को दंड दिलाया जा सके,उसे तो चोर के समान दंड दिलाया ही जाय परंतु जो वश के बाहर हो ,उस नास्तिक के प्रति विद्वान ब्राह्मण कभी उन्मुख ना हो।३४।।
इस प्रकरण में बौद्ध मत का नाम आया है।इससे यह सिद्ध है कि यह श्लोक बौद्ध काल में ही किसी पौराणिक पंडित ने रामायण में बौद्धों की निंदा करने के लिये प्रक्षिप्त किया है।क्योंकि रामायण में कई बार आया है कि उस समय कोई भी नास्तिक नहीं था,और बौद्ध और चार्वाकमत भी रामायण से कई सदियों बाद अस्तित्व में आये।ये पूरे दो सर्गों का ड्रामा केवल इस श्लोक के लिये प्रक्षिप्त किया गया ताकि श्रीराम के मुख से बौद्ध मत की निंदा कहलाई जाये।अतः भरत के नाना को दिये वचन वाली बात भी प्रक्षेपों के इस अंबार में से ही है।अतः राजा दशरथ ने कैकेयी के पिता को कोई वचन नहीं दिया था।
अब रही कैकेयी के रानी बनने की बात,तो पेरियार साहब ने इसका कोई प्रमाण नहीं दिया।रामायण में कहीं नहीं लिखा कि राजा दशरथ ने अपना राज्य कैकेयी को सौंप दिया था।दावा बिना किसी सबूत के होने से खारिज करने योग्य है।
पाठकगण! पेरियार के पहले बिंदु की आलोचना हमने भली भांति की।इसका उद्देश्य यह था कि बाकी के कई प्रश्नों के उत्तप इसी से आ जायेंगे। इतना विस्तृत लेख अब आगे लिखने से बचेंगे।आगे के बिंदुओं की समीक्षा छोटी-बड़ी होगी।विस्तार कम करने का पूरा प्रयास रहेगा।अगले लेख में बिदु २-५ का खंडन किया जायेगा।
पूरा लेख पढ़ने के लिये धन्यवाद।कृपया अधिकाधिक शेयर करें।
क्रमशः
नमस्ते ।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र की जय।
योगेश्वर कृष्ण चंद्र जी की जय।
नोट : इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आर्यमंतव्य  टीम  या पंडित लेखराम वैदिक मिशन  उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. |

हदीस : तीर्थयात्रा

तीर्थयात्रा

हज ”रवाना होगा“ की किताब विधि-विधान के ब्यौरों से भरी है, जिसमें गैर-मुसलमानों को बहुत कम दिलचस्पी होगी। उसके 92 अध्यायों में तीर्थयात्रा के कर्मकाण्डों और अनुष्ठानों पर बारीकी से निर्देश दिये गये हैं। वे किसी भी हाजी के लिए उपयोगी मार्गदर्शन हैं। किन्तु किसी आध्यात्मिक यात्री के लिए उनका महत्त्व संदिग्ध है।

author :ram swarup

गृहस्थ ने मुझे छोड़ दिया

गृहस्थ ने मुझे छोड़ दिया

मुझे अच्छी प्रकार से याद है कि 1949 ई0 में मैंने पूज्य महात्मा नारायण स्वामीजी की जीवनी (आत्मकथा) में यह पढ़ा था कि महात्माजी को अपनी विधवा माता के आग्रह पर बचपन में

विवाह की स्वीकृति देनी पड़ी। पन्द्रह वर्ष की आयु में नारायणप्रसाद (नारायण स्वामीजी का पूर्व नाम) गृहस्थी बन गये, परन्तु पत्नी को पाँच वर्ष तक मायके में ही रज़्खा। बीस वर्ष के हो गये तो पत्नी उनके पास आ गई।

महात्माजी ने आत्म-चिन्तन करते हुए निश्चय किया कि पाँच वर्ष पहले गृहस्थी बना हूँ तो दस वर्ष पूर्व अर्थात् चालीस वर्ष की अवस्था में गृहस्थ छोड़ दूँगा। जब नारायणप्रसाद चालीस वर्ष के

हुए तो उनकी पत्नी का देहान्त हो गया। आपने स्वेच्छा से गृहस्थ को अभी छोड़ा नहीं था।

महात्माजी ने स्वयं आत्मकथा में लिखा है कि मैंने गृहस्थ को नहीं छोड़ा, गृहस्थ ने स्वयं मुझे छोड़ दिया। इस प्रकार मेरा पुराना संकल्प अपने-आप पूरा हो गया। शज़्द चाहे कुछ भी लिखे हों,

परन्तु भाव यही है।

कितने सत्यनिष्ठ थे वे लोग! कैसी सरलता से अपनी मनःस्थिति का वर्णन किया है। अपने इसी शुद्ध धर्मज़ाव से वे ऊँचे उठते गये।

HADEES : Marriage and Divorce

Marriage and Divorce
(Al-NikAh and Al-TalAq)
 

The eighth book is entitled the �Book of Marriage�; one section of it also discusses divorce (al-talAq).

Muhammad forbids celibacy.  �Those among you who can support a wife should marry, for it restrains eyes from casting evil glances and preserves one from immorality� (3231).  One of his Companions wanted to live in celibacy, but Muhammad �forbade him to do so� (3239).

In fact, Muhammad discouraged self-denial in general.  One of his Companions said, �I will not marry women�; another said, �I will not eat meat�; and yet another said, �I will not lie down in bed.� Muhammad asked himself: �What has happened to these people that they say so and so, whereas I observe prayer and sleep too; I observe fast and suspend observing them; I marry women also?  And who turns away from my Sunnah, he has no relation with me� (3236).

A woman is a great safety valve, but if even that fails and a man is aroused by some other woman, he should come home and cohabit with his wife.  �Allah�s Messenger saw a woman and so he came to his wife, Zainab, as she was tanning a leather and had sexual intercourse with her.  He then went to his Companions and told them: The woman advances and returns in the shape of a devil, so when one of you see a woman, he should come to his wife, for that will repel what he feels in his heart� (3240).  We are all too ready to see the devil in others, but not in our own selves.

author: ram swarup

सच्ची रामायण का खंडन- १०

*सच्ची रामायण की पोल खोल-१०

अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*

-लेखक कार्तिक अय्यर ।

*प्रश्न १० आगे लिखा है-लक्ष्मण,भरत,शत्रुघ्न आदि राजा दशरथ से पैदै न होकर कथित पुरोहितों द्वारा पैदा हुये तथापि आर्यधर्म के अनुसार कोई पाप नहीं था।उन पुरोहितों के नाम होता,अर्ध्वयु,उद्गाता लिखा है।महाभारत का संदर्भ लेकर नियोग संबंधी आरोप लगाये हैं।व्यास जी का उल्लेख करके कहा है कि धृतराष्ट्र और पांडु इसी कोटि की संतान थीं।*
*क्या श्रीरामादि नियोग से उत्पन्न हुये थे अथवा महाराज दशरथ की औरस संतान थे?*
*नोट*-यह लेख लंबा है क्योंकि आरोप गंभीर है। हममे इस लेख में सिद्ध करने का प्रयासकिया है कि श्रीरामादि महाराज दशरथ की औरस संतान थे।कृपया पाठकगण लेख को आद्योपांत पढे़ें एवं सत्य को स्वीकार करें।इस लेख को तीन भागों में विभक्त करते हैं:-
१:-नियोग का सत्य स्वरूप
२:- राजा दशरथ द्वारा पुत्रकामेष्टि यज्ञ तथा श्रीरामादि की उत्पत्ति
३:- श्रीरामादि के दशरथपुत्र होने की रामायण की अंतःसाक्षी।
४:- ललई सिंह जी के प्रमाणों की परीक्षा।
*समीक्षा*-  *१ नियोग का सत्य स्नरूप*यहां पेरियार साहब की एक और धूर्तता तथा चालबाजी की हद पार कर दी।बिना किसी आधार के एक तो श्रीराम आदि को नियोग की संतान बता दिया ,ऊपर इसे अपनी धूर्तता छिपाने के लिये व्यासजी का महाभारतोक्त वर्णन और पांडुआदि का जन्म वर्णन लिख दिया।*क्यों जी!राम पर आक्षेप लगाने के लिये वाल्मीकि आदि रामायण ग्रंथ कम थे जो बारंबार आप महाभारत और पुराण में जा छिपते हैं?खैर,आप चाहें जितने पर्दे में सच को छिपायें,हम उसको उधेड़कर निकालेंगे।
पेरियार साहब!पहले आपको बता दूं कि नियोग एक आपद्धर्म है।जब कोई स्त्री बिना संतान के विधवा हो जाती है,तब उत्तम गुण-कर्म-स्वभाव युक्त पुरुष से वीर्यदान करवाकर  गर्भधारण द्वारा संतान प्राप्त कर सकती है।संतान देने के बाद *नियुक्त* पति का स्त्री से संबंध नहीं रहता तथा संतान को माता का नाम मिलता है।यदि विधवा या विधुर हो तो पुनर्विवाह कर लें अन्यथा नियोगकर ले।यदि नहीं,तो संतान गोद ले ले।
*नियोग की आज्ञा दोनों पक्ष तथा परिवारों की सहमति से हो,तभी उचित है।पंचायत के समक्ष दोनों पक्षों को निर्धारित करना होगा कि वे नियोग कर रहे हैं।संतान हो जाने के बाद दोनों के बीच कोई संबंध नहीं होता।*
प्राचीनकाल में जब राजाओं को वंशपरंपरा चलाने वाला कोई वारिस नहीं होता था,तब रानियां उत्तम वर्ण के पुरुष से नियोग करती थीं।उस समय में वंश और देश को बचाने हेतु नियोग आवश्यक था।व्यास जी ने विचित्रवीर्य की स्त्रियों :-अंबिका और अंबालिका को पुत्रदान किया।यदि ऐसा न होता,तो राष्ट्र में अराजकता,मार-काट,विदेशी आक्रमण होने का भय था।अतः नियोग आपदा का धर्म है। इस विषय पर अधिक जानकारी लेने के लिये पढ़ें – सत्यार्थप्रकाश चतुर्थसमुल्लास।
*२ राजा दशरथ द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ एवं पुत्रों की प्राप्ति*:-
अब आते हैं *पेरियार एंड कंपनी* के मूल आरोप पर। *हम डंके की चोट पर यह कहते हैं कि श्रीरामादि राजा दशरथ के ही औरस(वीर्य से उत्पन्न) संतान थे।*
वाल्मीकि रामायण में पूरा वर्णन इस प्रकार है:-
*तस्य चैवं प्रभावस्य धर्मज्ञस्य महात्मनः।सुतार्थं तप्यमानस्य नासीद्वशकरः सुतः।।* (बालकांड ८:१)
 अर्थ:- ‘ऐसे प्रभावशाली,धर्मज्ञ,महात्मा के पुत्र के लिये पीड़ित महाराज दशरथ के लिये वंश को चलाने वाला कोई पुत्र नहीं था।’
तब राजा दशरथ ने अपनी प्राणप्रिया पत्नियों से कहा कि ‘मैं पुत्र-प्राप्ति के लिये यज्ञ करंगा।तुम यज्ञ की दीक्षा लो।इस प्रकार ऋष्यश्रृंग ऋषि से दशरथ मिलते हैं तथा सात-आठ दिन बाद रोमपाद जी ( ऋष्यश्रृंग के श्वसुर)से यज्ञ के विषय में वार्तालाप करते हैं। ऋष्यश्रृंग मुनि अपनी पत्नी शांता के साथ अयोध्या पधारते हैं।उनके आगमन के कुछ समय बाद वसंत ऋतु का आगमन हुआ।तब महाराज को यज्ञ करने की इच्छा हुई। वे बोले:- *कुलस्य वर्धनं त्वं तु कर्तुमर्हसि सुव्रत।* (बालकांड १४:५८) अर्थात् ‘हे सुव्रत!आप मेरे कुल की वृद्धि के लिये उपाय कीजिये।तब मेधावी ऋष्यश्रृंग ऋषि ने,जो वेदों के ज्ञाता थे,ने थोड़ी देर ध्यान लगाकर अपने भावी कर्तव्यों का निश्चय किया और महाराज दशरथ से बोले:-
*इष्टि ते$बं करिष्यामि पुत्रीयां पुत्रकारणात्।अथर्वशिरसि प्रोक्तैर्मंत्रैः सिद्धां विधानतः।।* (बाल*१५:१२)
‘महाराज!आपको पुत्र प्राप्ति कराने हेतु मैं अथर्ववेद के मंत्रों से *पुत्रेष्टि* नामक यज्ञ करूंगा।वेदोक्त विधि से अनुष्ठान करने से यह यज्ञ अवश्य सफल होगा।’
[अथर्ववेद के निम्न मंत्र में पुत्रेष्टि यज्ञ का वर्णन है *शमीमश्वत्थ आरूढस्तत्र पुंसवनंकृतम्।तद्वै पुत्रस्य वेदनं तत् स्त्रीष्वाभरामसि।।* (६:११:१)
अर्थ:- *’शमी(छौंकड़) वृक्ष पर जो पीपल पर उगता है वह पुत्र उत्पन्न करने का साधन है।यह पुत्र-प्राप्ति का उत्तम साधन है।यह स्त्रियों को देते हैं। ]
उसके बाद ऋषि ने विधिवत् पुत्रेष्टि यज्ञ प्रारंभ किया तथा विधिवत् मंत्र पढ़कर आहुति देना शुरू किया।थोड़ी देर बाद ऋषि ने पुत्रोत्पादक रूप गुणयुक्त खीर देकर राजा से कहा :-
*इदं तु नृपशार्दूल पायसं देवनिर्मितं।प्रजाकरं गृहाण त्वं धन्यमारोग्यवर्धनम्।।* (बाल* १६:१९)
 *’नृपश्रेष्ठ!यह देवताओं(=विद्वानों)द्वारा निर्मित खीर है।यग पुत्रोत्पादक, प्रशस्त तथा आरोग्यवर्धक है।इसे ग्रहण कर रानियों को खिलाइये।आपको निस्संदेह पुत्रों की प्राप्ति होगी।’*
तब राजा ने खीर पाकर प्रसन्नता प्रकट की,मानो निर्धन को धन मिल गया।तब खीर लेकर वे रनिवासमें गये तथा रानियों को पृथक-पृथक खीर बाँटी।महाराज दशरथ की सुंदर स्त्रियों ने खीर खाकर स्वयं को भाग्यवती माना।
*ततस्तु ताः प्राश्य तमुत्तमस्त्रियो महीपतेरुत्तमपायसं पृथक्।हुताशनादित्यसमानतेजसो$चिरेण गर्भान्प्रतिपेदिरे तदा।।*
( बाल* १६:३१)
‘ तदनंतर तीनों उत्तमांगनाओं ने महाराज दशरथ द्वारा पृथक-पृथक प्रदत्त खीर खाकर अग्नि और सूर्य के समान तेजवाले गर्भों को धारण किया।’ यज्ञ समाप्ति पश्चात् राजा लोग अपने-अपने देशों को लौटे। ऋष्यश्रृंग भी अपनी पत्नी शांता सहित महाराज से विदा लेकर अपने स्थान को चले।
*तते यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां षट् समत्ययुः।ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावभिके तिथौ।।*
‘यज्ञ-समाप्ति के पश्चात् छः ऋतुयें व्यतीत होने पर बारहवें मास में चैत्र की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में जब पांच में कौसल्या जी ने श्रीराम को जन्म दिया।फिर कैकेयी न पुष्य नक्षत्र में भरत को,सुमित्रा मे अश्लेषा  नक्षत्र और कर्कलग्न में सूर्योदय होने पर लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया।’
इस वर्णनको पढ़कर पाठक समझ गये होंगे कि पेरियार जी के आरोप निराधार हैं। यहां स्पष्ट वर्णन है कि ‘तीनों रानियों ने महाराज दशरथ द्वारा पृथक-पृथक गर्भों को धारण किया’। इससे साफ सिद्ध है कि श्रीराम,लक्ष्मण, भरत,शत्रुघ्न- चारों पुत्र महाराज दशरथ के औरस पुत्र थे।
*पुत्रेष्टि यज्ञ क्या होता है*- पुत्रेष्टि यज्ञ में समिधाओं द्वारा हवन करके एक विशेष खीर का निर्माण किया जाता है।यह खीर आयुर्वेदिक औषधियों से युक्त होती है।इससे गर्भ संबंधी विकार दूर होते हैं तथा स्त्री गर्भधारण के योग्य बनती है। महाराज दशरथ ने भी औषधी युक्त पायस (खीर) खिलाकर रानियों से वीर्यदान किया तथा पुत्रों को उत्पन्न किया।
हमने पेरियार साहब के आरोपोंका युक्तियुक्त सप्रमाण खंडन कर दिया है । अगले लेख में हम *ललई सिंह यादव के दिये साक्ष्यों की परीक्षा तथा रामायण की अंतःसाक्षी द्वारा अपने पक्ष को सत्य सिद्ध करेंगे।*
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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चंद्रकी जय।
योगेश्वर श्रीकृष्ण चंद्र की जय।
नोट : इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आर्यमंतव्य  टीम  या पंडित लेखराम वैदिक मिशन  उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. |

हदीस : उपवास का पुण्य

उपवास का पुण्य

उपवास रखने के अनेक पुण्य हैं। मुहम्मद बतलाते हैं-”उपवासकत्र्ता की सांस अल्लाह को कस्तूरी की सुगन्ध से ज्यादा प्रिय है। कयामत के रोज, जन्नत में रय्यान नाम का दरवाजा होगा। सिर्फ रोजे रखने वालों को ही उसमें प्रवेश पाने दिया जाएगा। और जब उनमें से आखिरी आदमी भीतर जा चुका होगा तो वह बन्द कर दिया जायेगा और कोई फिर भीतर नहीं जा पायेगा“ (2569)।

 

जो व्यक्ति उपवास के साथ-साथ जिहाद कर रहा हो, उसका प्रतिदान बहुत है। ”अल्लाह का हर सेवक, जो अल्लाह के रास्ते में एक दिन का रोज़ा रखेगा, अल्लाह उस एक दिन की वजह से उसका चेहरा जहन्नुम की आग से सत्तर साल की दूरी तक हटा देगा“ (2570)।

author : ram swarup

एक आपबीती

एक आपबीती

मैं स्कूल का अध्यापक था। मेरे लेखों के कारण तथा सामाजिक गतिविधियों के कारण आर्यजगत् के बहुत लोग मुझे जानते थे। हिन्दी सत्याग्रह के पश्चात् मैं स्कूल छोड़कर दयानन्द कॉलेज हिसार की एम0ए0 कक्षा में प्रविष्ट हो गया। कॉलेज के प्राचार्य थे

प्रिं0 ज्ञानचन्द्रजी (स्वामी मुनीश्वरानन्दजी) हिसारवाले। वे यदा-कदा मुझे व्याज़्यान तथा प्रचार के लिए भी, कभी कहीं जाने को कह देते। कॉलेज में प्रविष्ट हुए एक-दो सप्ताह ही बीते कि उन्होंने आर्यसमाज, माडल टाउन के साप्ताहिक सत्संग में मेरा व्याज़्यान रख दिया। वे स्वयं माडल टाऊन में ही रहते थे।

व्याज़्यान से वे प्रभावित हुए। सत्संग के पश्चात् मुझे अपने घर पर भोजन के लिए कहा। मैं उनके साथ चला गया।

वे स्वयं मुझे भोजन करवाने लगे। मैंने कहा कि आप भी बैठिए। मेरे बहुत कहने पर भी प्रिंसिपल साहब न माने। घर पर सेवक भी था। उसे भी भोजन न लाने दिया। स्वयं ही परोसने लगे।

मुझे प्रतिष्ठित अतिथि बनाकर एक ओर बैठकर आर्यसमाज विषयक चर्चाएँ करते रहे। मैं इस दृश्य को कभी नहीं भूल पाता।

HADEES : KA�BA CLOSED TO NON-MUSLIMS

KA�BA CLOSED TO NON-MUSLIMS

The Ka�ba, which had been open to all in pre-Islamic times, whether they were worshippers of Al-LAh or Al-LAt, was closed to all except Muslims after Muhammad conquered Mecca.  �After this year no polytheist may perform the Pilgrimage,� it was declared on his behalf (3125).  This was Allah�s own command.  The QurAn says: �O you who believe! those who ascribe partners to God are impure, and so they shall not approach the sacred House of worship from this year onward� (9:28).

Most religions build houses or temples for their gods out of their own labor, but Islam conquered one for its god, Allah, from others.  The difference is striking.  A worthy habitation for any worthwhile god is the one built by his devotees with the love of their hearts and the labor of their hands.  Any other house is a monument of imperialist greed and aggrandizement and is not acceptable to the gods of the purified spirit.

सच्ची रामायण की पोल खोल-९

*सच्ची रामायण की पोल खोल-९
अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
-लेखक कार्तिक अय्यर ।
*प्रश्न-९आगे रामायण को धर्मसंगत न होना तथा चेतन प्राणियों के लिये अनुपयोगी होना लिखा है।राक्षसों का यज्ञ में विघ्न,ब्रह्मा जी की विष्णु जी से प्रार्थना, विष्णु के अवतार का उल्लेख किया है विष्णु द्वारा जालंधर की पत्नी का शीलहरण करके आक्षेप किया है।आपने कहा है “इसका वर्णन आर्यों के पवित्र पुराण करते हैं!”*
*समीक्षा*-प्रथम,रामायण धर्मसंगत,अनुकरणीय है वा नहीं ये आगे सिद्ध किया जायेगा।
दूसकी बात,श्रीराम ईश्वरावतार नहीं थे,अपितु महामानव,आप्तपुरुष, राष्ट्रपुरुष आर्य राजा थे।इसका स्पष्टीकरण ‘श्रीराम’के प्रकरणमें करेंगे।
यहां आपने रामायण से छलाँग मारी और पुराणों पर पहुंच गये।पेरियार साहब! भागवत,मार्कंडेय,शिवपुराणादि ग्रंथों का नाम पुराण नहीं है। *वेद के व्याख्यानग्रंथ ऐतरेय,साम,गोपथ और शतपथ इतिहास व पुराण कहलाते हैं।*वर्तमान पुराण व्यासकृत नहीं हैं। ये १०००-१५०० वर्ष पूर्व ही बनाये गये हैं।इनको वैदिक धर्म के दुश्मन वाममार्गियों तथा पोपपंडितों ने बनाये हैं।इनमें स्वयं राम,कृष्ण, शिव,विष्णु, ब्रह्मा,शिव आदि की निंदा की गई हैं।मद्यपान,मांसभक्षण,पशुबलि,व्यभिचार आदि वेदविरुद्ध कर्मों का महिमामंडन इनमें हैं।अतः पुराण वेदविरुद्ध होने से प्रामाणिक नहीं हैं।
महर्षि दयानंद सत्यार्थप्रकाश मेंपुराणों के विषय में प्रबल प्रमाण एवं युक्तियां देकर लिखते हैं:-
( एकादश समुल्लास पृष्ठ २९७)
*”जो अठारह पुराणोंके कर्ता व्यासजी होते तो उनमें इतने गपोड़े नहीं होते।क्योंकि शारीरिक सूत्रों,योगशास्त्र के भाष्य और व्यासोक्त ग्रंथों को देखने से विदित होता है कि व्यास जी बड़े विद्वान, सत्यवादी,धार्मिक, योगी थे।वे ऐसी मिथ्या कथा कभीन लिखते।*
*……वेदशास्त्र विरुद्ध असत्यवाद लिखना व्यासजी सदृश विद्वानों का काम नहीं किंतु यह काम वेदशास्त्र विरोधी, स्वार्थी,अविद्वान लोगों का है..*
*….”ब्राह्मणानीतिहासान पुराणानि कल्पान् गाथानराशंसीदिति।”(यह ब्राह्मण व सूत्रों का वचन है-(१) ब्राह्मण ग्रंथों का नाम इतिहास पुराण है।इन्हीं ग्रंथों के ही इतिहास, पुराण,कल्प,गाथा और नाराशंसी ये पांच नाम है*
विस्तार से जानने के लिये सत्यार्थप्रकाश एकादश समुल्लास देखने का कष्ट करें।
अतः अष्टादशपुराण वेदविरुद्ध होने से अप्रमाण हैं ।इससे सिद्ध है कि विष्णु-जालंधर आदि की कथायें मिथ्या हैं। *और जहां-जहां पुराणोक्त गल्पकथायें रामायण में मिलें,वे भी कालांतर में धूर्तों द्वारा प्रक्षेपित की गई होने से अप्रमाण हैं-ऐसा जानना चाहिये।*
नोट : इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आर्यमंतव्य  टीम  या पंडित लेखराम वैदिक मिशन  उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. |

Mohammad Shami trolled on Twitter for sharing ‘Un-Islamic’ picture of daughter’s birthday

The attack happened two days after Irfan Pathan was trolled on social media

India pacer Mohammad Shami has once again become a victim of social media trolling after he posted pictures of his wife during their daughter’s second birthday celebrations.

The cricketer was trolled as many felt that his wife Hasin Jahan committed a “sin” by not wearing a hijab during the birthday celebrations.

“Sad to see your wife without hijab. my dear shami sir do not look at the smallness of the sin, rather look at the one whom you are disobeying,” Sharun Km from Kunnamkulam posted with a hashtag #GoToHell.

Syed Akhtar from Beijing wrote: “Do you want to please right wings by not wearing hijab nd celebrating birthday.”

Mohammad Tahir Faisal from Patna tweeted: “Drown in shame… Are you Muslim, I don’t think so you’re Muslim…Islam can’t allow you to celebrate Birthday in that fashion.”

However, the fast bowler’s fans came out in strong support of him.

“Sad to see insects like you crawl out of the gutter,” Prajay Basu from Mumbai posted.

Bhagya Teja of Bengaluru asked: “When will you’re petty mindset change?”

The trolling on social network came a day after Jadavpur police arrested three youths for allegedly attacking Shami late on July 22 when he was returning home to Katju Nagar, behind South City Mall.

Police have beefed up security in the area.

“Police patrol and officer of anti-rowdy section have been asked to patrol the area and the road in front of his apartment to prevent any untoward incident,” an officer at the Jadavpur Police Station told PTI.

This was not the first time that Shami found himself at the receiving end of social media beamers for his wife’s choice of clothes. He faced similar trolling during Christmas celebrations last year.

At that time, Shami uploaded some family pictures of his wife and daughter in western outfits.

The Twitter attack on Shami happens two days after all-rounder Irfan Pathan also faced similar social media ire after he posted an “un-Islamic” photograph with his wife wearing nail polish.

source: http://www.dnaindia.com/cricket/report-mohammad-shami-trolled-on-twitter-for-sharing-un-islamic-picture-of-daughter-s-birthday-2507328