हदीस : प्रेरणाएं और दलीलें

प्रेरणाएं और दलीलें

भिक्षा-दान के लिए मुहम्मद एक उदात्त दलील देते हैं। हर एक को दान देना चाहिए, भले ही वह सिर्फ आधा खजूर हो। अबू मसूद बतलाते हैं-”हमें दान देने का आदेश मिला था, यद्यपि हम कुली थे“ (2223)।

 

एक हदीस हमें बतलाती है-”ऐसा कोई दिन नहीं जब (अल्लाह के) सेवक लोग सुबह उठते हों और उनके पास दो फरिश्ते न आते हों। उनमें से एक कहता है-ऐ अल्लाह ! जो खर्च करता है, उसे और दो। और दूसरा कहता है-ऐ अल्लाह ! जो दबा कर रखता है, उस पर तबाही ला“ (2205)। क्या उपदेश का पहला हिस्सा काफी नहीं था ? क्या एक आर्शीवाद के साथ एक शाप भी जरूरी है ?

 

मुहम्मद मोमिनों को सदका करने और उसमें जल्दी करने को कहते हैं, क्योंकि ”एक वक्त आयेगा जब कोई आदमी सोने का सदका लिये भटकेगा, पर उसे लेने वाला कोई भी नहीं मिलेगा।“ वे यही भी कहते हैं कि ”मर्दों की कमी और औरतों की बहुतायत के कारण एक मर्द के पास चालीस औरतें शरण लेती देखी जायेंगी“ (2207)। इसका क्या मतलब है ? अनुवादक इस बयान को एक सच्ची भविष्यवाणी बतलाते हैं। महायुद्ध के बाद के इंग्लैण्ड में मर्दों और औरतों की आबादी के आंकड़े उद्धृत करके और उनके अनुपात में अन्तर दिखाकर वे ”पैगम्बरी बयान की सच्चाई“ सिद्ध करते हैं (टि0 1366)।

1 और निश्चय ही अल्लाह का एकपंथवादी रीति से ही महिमा-गान किया जा सकता है, बहुपंथवादी या सर्वपंथवादी ढंग से नहीं, और अल्लाह की स्तुति में मुहम्मद की स्तुति भी अवश्य शामिल होनी चाहिए।

author : ram swarup

श्री महात्मा नारायण स्वामीजी द्वारा लिखित एक घटना

श्री महात्मा नारायण स्वामीजी द्वारा लिखित एक घटना

1935 ई0 में ज़्वेटा (बलोचिस्तान) में एक भीषण भूकज़्प आया था। इसमें सहस्रों व्यक्ति मर गये थे। इस भूकज़्प से कुछ समय पूर्व ज़्वेटा से एक 23 वर्षीय देवी ने श्री महात्मा नारायण

स्वामीजी को एक पत्र लिखा। उस देवी को किसी ज्योतिषी ने यह बतलाया था कि वह एक वर्ष के भीतर मर जाएगी। उस देवी ने महात्माजी से यह पूछा था कि ज़्या सचमुच वह एक वर्ष के भीतर मर जाएगी। पत्र पढ़कर महात्माजी के अन्तःकरण में यह ईश्वरीय प्रेरणा हुई कि उसे लिख दूं कि वह नहीं मरेगी। महात्माजी ने दिल्ली से उसे लिख दिया कि वह चिन्ता न करे।

भूकज़्प से पूर्व महात्माजी ज़्वेटा गये। वह देवी अपने पति के साथ श्री महाराज के दर्शन करने पहुँची और पुनः वही प्रश्न किया।

अभी ज्योतिषी की बताई अवधि पूरी नहीं हुई थी। उसका चेहरा मुरझाया हुआ था। महात्माजी ने पुनः बलपूर्वक कहा कि वह कोई चिन्ता न करे। वह नहीं मरेगी। उसका चेहरा खिल उठा। उसे बड़ी सान्त्वना मिली।

ज़्वेटा का भूकज़्प आया। इसमें सहस्रों मनुष्य कीट-पतंग की भाँति मर गये। ज़्वेटा के भूकज़्प से पूर्व ही ज्योतिषीजी का बतलाया हुआ समय एक वर्ष पूरा हो गया। भूकज़्प के पश्चात् उस देवी का महात्माजी को पत्र प्राप्त हुआ कि वह ज्योतिषीजी के बतलाये हुए समय के भीतर नहीं मरी और विनाशकारी भूकज़्प में कितने प्राणी मर गये हैं, कितनों को चोटें आई हैं-इसमें भी वह बच गई है। महात्माजी ने पत्र पाकर देवीजी को उस ज्योतिषी के प्रहार से बचने पर बधाई दी और ईश्वर को अनेक धन्यवाद दिये, ‘‘जिसकी कृपा से, मेरे अन्तःकरण ने मुझे शुद्ध प्रेरणा दी।’’1

न जानें ऐसी अनर्गल भविष्यवाणियाँ करके ज्योतिषी लोग कितने जनों को ठग लेते हैं और कितनों का अहित करते हैं।

hadees : SEXUAL INTERCOURSE ALLOWED DURING RAMZAN

SEXUAL INTERCOURSE ALLOWED DURING RAMZAN

The Prophet softens the rigor of the fast somewhat by proclaiming that �eating and drinking in forgetfulness does not break the fast� (2575).  Kissing and embracing too are permissible (2436-2450).  �Aisha, Hafsa, and Salama, Muhammad�s wives, all report that the Prophet used to kiss them and embrace them while fasting.  �Aisha narrates: �The Messenger of Allah kissed one of his wives while he was fasting, and then she [�Aisha] smiled� (2436).

The translator elucidates: �It is one of the great favours of Allah upon humanity that He has guided us in every sector of our life through his Prophet Muhammad.  Prior to Islam, the man observing fast separated himself completely from his wives.  Islam did not approve this practice� (note 1502).

Sexual intercourse is also permitted during the night of the fast.  It has a divine sanction.  �It is made lawful for you to go to your wives on the night of the fast,� says the QurAn (2:187).  In fact, even if one gets up in a state of seminal emission and the dawn overtakes him without giving him time for the ordained bath, he should still go on with his fast.  The state of janabah (in which one is �unclean� and cannot perform a religious act or join in religious assemblies) does not break the fast.  �Aisha and Salama, Muhammad�s wives, report: �The Messenger of Allah at times got up in the morning in a state of Junub on account of having a sexual intercourse . . . in the month of RamzAn, and would observe fast� (2454).  There are other ahAdIs on the same subject (2451-2456).

This hadIs was checked and rechecked by AbU Bakr himself.  At first AbU Huraira thought differently, but when the matter was clarified by �Aisha and Salama, he said, �They have better knowledge,� and retracted his previous position (2451).

Sexual intercourse during the daytime in the month of RamzAn could be atoned for either by freeing a slave or, failing that, by observing a two-month fast or, failing that, by feeding sixty poor men-but during the Prophet�s lifetime, a poor man who violated this prohibition got his expiation at no cost to himself.  Muhammad gave him a basket of dates and told him: �Go and give it to your family to eat� (2457).

Missed fasts could be completed later on at any time of the year.  Women do not fast during the days of menses but are required to complete the fast the following year before the commencement of the next RamzAn (in the month of Sha�bAn).

author : ram swarup

हदीस : गम्भीरता पक्ष

गम्भीरता पक्ष

हदीस-संग्रह के लिए वह असाधारण बात भले ही हो, फिर भी कुछ अहादीसों (2197-2204) में दान का गम्भीरता पक्ष भी उल्लिखित है। जो लोग धन नहीं दे सकते, वे निष्ठा और नेक कामों पर दान दिया करें। ”दो आदमियों के बीच न्यायनिर्णय देना भी एक सदक़ा है। और किसी आदमी को उसकी सवारी पर चढ़ने में मदद देना अथवा सवारी पर बोझ लादने में किसी की मदद करना एक सदका है। और अच्छी बात कहना एक सद़का है। और प्रार्थना की तरफ उठाया गया हर कदम एक सद़का है। और रास्ते से हानिकर चीजें हटा देना एक सदका है“ (2204)।

 

ऐसी ही सुन्दर एवं समझबूझ से भरी कुछ अन्य हदीस भी हैं। ईश्वर जिनकी रक्षा करता है, उनमें से एक वह है, ”जो दान देता है और उसे गुप्त रखता है, जिससे कि दायां हाथ जान नहीं पाये कि बांये हाथ ने क्या दिया है“ (2248)। इसी क्रम में मुहम्मद हमें बतलाते हैं कि ”यदि कोई एक खजूर के बराबर सदका देता है ….. तो अल्लाह उसे अपने दाहिने हाथ से मंजूर करेगा।“ (2211)।

 

और एक अन्य हदीस में कहा है-”अल्लाह की स्तुति1 के प्रत्येक उद्घोष में (अर्थात् सुभान अल्लाह कहने में), एक सद़का है……और पुरुष के यौन समागम में (अपनी पत्नी के साथ, ऐसा अनुवादक ने पूरा किया है) एक सदका है“ (2198)।

author : ram swarup

 

hadees : FASTS

FASTS

There are many kinds of fasts in Islam, but the fast during the month of RamzAn (Ramadan) is considered the most important.  Enjoined in the QurAn, it is compulsory.  �When there comes the month of RamzAn, the gates of mercy are opened, and the gates of Hell are locked and the devils are chained� (2361).

Fasting in the Muslim tradition is rather different from fasting in many other religious traditions.  In Islam, there is no uninterrupted fasting (saum wisal), because Muhammad forbade this practice (2426-2435) �out of mercy� for his Companions (2435).  During fasts eating is prohibited in the daytime but permitted at night.  This has its disciplinary role, but nonetheless there is an attempt to make things easy.  One is advised to eat as late as possible before sunrise, and to break the fast as soon as possible after sunset.  �Take meal a little before dawn, for there is a blessing in taking meal at that time� (2412); and �the people will continue to prosper as long as they hasten the breaking of the fast� (2417).

This approach distinguished the Muslims from the Jews and the Christians, who ate early and broke their fasts late, waiting for the stars to appear.  �The difference between our fasting and that of the People of the Book is eating shortly before dawn,� says Muhammad (2413).  The translator explains the advantages that accrued to the ummah from maintaining this difference.  It �distinguishes the Ummah of the Islam from other Ummahs,� and �hammers� into its consciousness the sense of �its separate entity which is the first step towards prosperity of any nation.� In addition, �taking a meal late in the dawn and breaking fast early at the sunset indicate the fact that one feels the pangs of hunger. . . . This feeling inculcates in one a spirit of humility rather than of stoic pride� (note 1491).

author : ram swarup

हदीस : दान अपने घर से शुरू हो

दान अपने घर से शुरू हो

मुहम्मद के पहले अरब लोगों में बहुत दानशीलता थी। किन्तु कर के रूप में नहीं। मसलन, उन दिनों अरब अपने ऊंटों को हर छठे या सातवें दिन किसी पोखर के किनारे ले जाते थे, वहां उन्हें दुहते थे और दूध जरूरतमन्दों में बांट देते थे (टि0 1329)।

 

इस उदारता की मुहम्मद ने सराहना की पर उन्होंने सिखाया कि दान अपने घर से शुरू होना चाहिए। यह मुद्दा अहादीस (2183-2195) में मिलता है। जिस क्रम से व्यक्ति को अपनी सम्पदा का व्यय करना चाहिए, वह इस प्रकार है-सर्वप्रथम अपने आप पर, फिर अपनी बीबी और बच्चों पर, फिर रिश्तेदारों और दोस्तों पर, और फिर नेक कामों पर। इसे बुद्धिमत्ता की बात ही कहा जाएगा।

 

आम़ रिवाज के मुताबिक, एक अरब ने एक बार यह वसीयत की कि उसकी मौत के बाद उसका गुलाम मुक्त कर दिया जाय। जब मुहम्मद ने यह सुना तो उसे बुलाया और पूछा कि क्या कोई और जायदाद भी उसके पास है। उसने कहा, नहीं। तब मुहम्मद ने उसके गुलाम को 800 दरहम में बेच दिया, और वह रकम उसे दे दी और कहा-”अपने आप से शुरू करो और इसे अपने पर खर्च करो, और कुछ बचे तो तुम्हारे परिवार पर खर्च होना चाहिए, और उससे भी जो बचे, वह तुम्हारे रिश्तेदारों पर खर्च होना चाहिए।“

 

एक और कहानी है, जो यही बात बतलाती है। एक महिला ने अपनी बांदी को आज़ाद कर दिया। पता चलने पर, मुहम्मद ने उससे कहा-”तुमने उससे अपने मामा को दे दिया होता, तो तुम्हें ज्यादा प्रतिफल मिलता“ (2187)।

 

अतएव इस मुद्दे पर मुहम्मद ने जो नैतिकता सिखायी, वह विशेषतः उदात्त तो नहीं थी, पर वह आम दस्तूर के अनुसार अवश्य थी। वह क्रांतिकारी नैतिकता तो कतई नहीं थी। गुलामों की मुक्ति न्याय का नहीं, दान का मामला बन गया और वह दान भी मोमिन के परिवार के कल्याण के विरुद्ध नहीं जाना चाहिए।

author : ram swarup

लोग ज़्या कहेंगे?

लोग ज़्या कहेंगे?

1967 ई0 की बात होगी। बिहार में भयङ्कर दुष्काल पड़ा। देशभर से अकाल-पीड़ितों की सहायता के लिए अन्न भेजा गया।

उन दिनों हम परिवार सहित दयानन्द मठ दीनानगर की यात्रा को गये। एक दिन श्री स्वामी सर्वानन्दजी महाराज ने कहा, ‘‘आप पठानकोट आर्यसमाज के सत्संग में हो आवें और केरल में वैदिक धर्म के प्रचार व शुद्धि के लिए उनसे सहयोग करने को कहें।’’

उस वर्ष मठ की भूमि में आलू की खेती अच्छी हुई थी। मोटे व अच्छे आलू तो काम में लाये गये। छोटे रसोई के पास पड़े थे।

हम लौटकर आये तो पता चला कि मठ में कुछ ब्रह्मचारियों ने स्वामी श्री सर्वानन्दजी से कहा-‘‘आलुओं का यह ढेर बाहर फेंक दें? इसे ज़्या करना है?’’

श्री स्वामीजी ने इस पर कहा-‘‘देखो! बिहार में दुष्काल से लोग मर रहे हैं। वहाँ खाने को कुछ भी नहीं मिल रहा। ये आलू खराब तो हैं नहीं, न ये सड़े-गले हैं। केवल छोटे ही हैं। देश के अन्नसंकट को ध्यान में रखकर हमें इन्हें फेंकना नहीं चाहिए। इनका सदुपयोग करना चाहिए। उबालकर इनका सेवन किया जा सकता है। यदि हम इन्हें फेंकेंगे तो लोग हमें ज़्या कहेंगे कि आश्रम के साधु ब्रह्मचारी कैसे व्यक्ति हैं?’’

श्रीमति जिज्ञासु ने स्वामीजी तथा ब्रह्मचारियों का यह सारा वार्ज़ालाप सुना।

देश-धर्म व जातिसेवा में एक-एक श्वास देनेवाले एक संन्यासी के हृदय में दूसरों के लिए कितना ध्यान था, यह घटना उसका एक उदाहरण है। सच्च तो यह है कि संसार में धर्म की प्रतिष्ठा इन्हीं तपस्वियों के कारण है। अपने व अपने परिवार के लिए तो सब जीते हैं, धन्य हैं वे लोग जो संसार के लिए जीते हैं। पराई पीड़ को अपनी पीड़ा माननेवाले इन महापुरुषों का ऋण कौन चुका सकता है? पराई आग में जलनेवाले इन पुण्य-आत्माओं के कारण ही ऋषिवर दयानन्द का मिशन फैला है।

 

हदीस : दैवी विधान

दैवी विधान

ज़कात न अदा करने पर दिया जाने वाला दैवी दंड किसी भी मानवीय सत्ता द्वारा दिए जाने वाले लौकिक दंड से अधिक उत्पीड़क है। “यदि सोना या चांदी रखने वाला कोई व्यक्ति अपने द्वारा देय अंश का भुगतान नहीं करता, तो कयामत के रोज़ उसके लिए आग की पट्टियां तैयार की जायेंगी, फिर वे नरक की आग में गरम की जायेंगी और उसकी बाहें, उसका माथा और उसकी पीठ उनसे दागी जायेंगी। और जब वे ठंडी हो जायेंगी तो वही सिलसिला दिन भर दोहराया जायेगा। दण्ड की अवधि पचास हजार बरस की होगी।“ और ऊंटों के उस मालिक के लिए जो अपना कर नहीं देता, “एक इतना बड़ा रेतिला मैदान बनाया जायेगा, जितना कि सम्भव हो“ और उसके ऊंट ”उसे अपने खुरों से खूंदेंगे और मुंह से काटेंगे-पूरे दिन, जो पचास हजार बरस का होगा।“ वही हस्र गायों और भेड़ों के उन मालिकों का होगा, जो कर नहीं देते। ”वे उन्हें अपने सींगों से मारेंगी और खुरों से खूंदेंगी“-उतनी ही अवधि तक (2161)।

author : ram swarup

संन्यास की मर्यादा

संन्यास की मर्यादा

श्री स्वामी स्वतन्त्रानन्दजी महाराज के जीवन की एक प्रेरणाप्रद घटना है कि आप एक बार अजमेर गये। प्रो0 घीसूलालजी के साथ किसी सामाजिक कार्य के लिए कहीं जा रहे थे। होली के दिन थे। बाज़ार में शरारती मूर्ख लोगों ने साधु पर रङ्ग डाल दिया। आप एकदम रुक गये। प्रो0 घीसूलालजी से कहा-‘‘अब वापस चलिए। वस्त्र बदलेंगे। इसपर धज़्बे पड़ गये हैं। मैं तो संन्यासी वेश में ही चल सकता हूँ। साधु पर दाग़ ठीक नहीं।’’

श्री महाराज लौट गये। जहाँ ठहरे थे वहीं पहुँचे। उनके पास और वस्त्र थे ही नहीं। कौपीन लगाकर बैठ गये। आर्यपुरुषों ने उनका कुर्ता सिलवाया। धोती ली। गेरु रङ्ग करवाया। उन्हें पहना

और कार्य पर बाहर निकले। जब तक बिना दाग़ के भगवे वस्त्र तैयार न हुए वे कौपीन धार कर अपने पठन-पाठन में लगे रहे, मिलनेवाले आर्य पुरुषों से बातचीत करते रहे। आर्य साधुओं, महात्माओं व नेताओं ने ऐसी मर्यादाएँ स्थापित की हैं और ऐसे इतिहास बनाये हैं।