परोपकारिणी सभा की एक देन क्यों भूल गये: राजेन्द्र जिज्ञासु

राजस्थान ने अतीत में पं. गणपति शर्मा जी, पूज्य मीमांसक जी आदि कई विभूतियाँ समाज को दीं। स्वामी नित्यानन्द जी महाराज भी वीर भूमि राजस्थान की ही देन थे और पं. गणपति शर्मा जी से तेरह वर्ष बड़े थे। श्री ओम् मुनि जी कहीं से एक दस्तावेज़ खोज लाये हैं। उसका लाभ पाठकों को आगे चलकर पहुँचाया जावेगा। आज महात्मा नित्यानन्द जी के अत्यन्त शुद्ध, पवित्र और प्रेरक जीवन के कुछ विशेष और विस्तृत प्रसंग देकर पाठकों को तृप्त किया जायेगा। आर्यसमाज के प्रथम देशप्रसिद्ध शीर्षस्थ विद्वान् स्वामी नित्यानन्द ही थे, जिन्होंने पंजाब के एक छोर से मद्रास, हैदराबाद, मैसूर, बड़ौदा आदि दूरस्थ प्रदेशों तक वैदिक धर्म का डंका बजाया था। आपका जन्म सन् १८६० में जालौर (जोधपुर) में हुआ।

छोटी आयु में गृह त्यागकर विद्या प्राप्ति के लिये काशी आदि कई नगरों में कई विद्वानों के पास रहकर ज्ञान अर्जित किया।

घूम-घूमकर कथा सुनाते रहे। महर्षि दयानन्द जी के अमर बलिदान पर आपका झुकाव एकदम आर्यसमाज की ओर हो गया। श्रीयुत अमरनाथ जी कालिया एक तत्कालीन आर्य लेखक की पठनीय अलभ्य पुस्तक से पता चलता है कि ऋषि के बलिदान के पश्चात् परोपकारिणी सभा के प्रथम उत्सव में स्वामी विश्वेश्वरानन्द जी के साथ आपने भी सोत्साह भाग लिया था। इस कथन में सन्देह का कोई प्रश्न ही नहीं उठता परन्तु इसकी पुष्टि में किसी अन्य पत्र-पत्रिकाओं से प्रमाण की सघन खोज की जायेगी।

परोपकारिणी सभा ने इस नररत्न को खींच लिया:- श्री अमरनाथ जी ने ही यह लिखा है कि परोपकारिणी सभा के प्रथम उत्सव में ही इन दोनों की सभा के तथा आर्यसमाज के नेताओं से बातचीत हुई तो सबको यह जानकर हार्दिक आनन्द हुआ कि दोनों विद्वान् संन्यासी दृढ़ आर्यसमाजी बन गये हैं। उसी समय से आर्यसमाज में प्रविष्ट होकर समर्पण भाव से दोनों वेद-प्रचार करने में सक्रिय हो गये। ऋषि जी के प्रति सभा की यह प्रथम बड़ी श्रद्धाञ्जलि मानी जानी चाहिये। वेद-प्रचार यज्ञ में निश्चय ही यह सभा की प्रथम व श्रेष्ठ आहुति थी।

स्वामी नित्यानन्द जी के जीवन के ऐतिहासिक व अद्भुत प्रसंग लिखने की आवश्यकता है। राजस्थान में तो इस दिशा में किसी ने कुछ किया ही नहीं। दक्षिण के पत्रों में इनकी विद्वत्ता पर स्मरणीय लेख छपे। वीर चिरंजीलाल के पश्चात् धर्म-प्रचार में बन्दी बनाये गये आर्य पुरुष आप ही थे। ऋषि के पश्चात् आपके ब्रह्मचर्य-व्रत की अग्नि-परीक्षा की गौरवपूर्ण घटना फिर कभी दी जायेगी।

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