न जहर, न मांसाहार, दूध है अमृत

दूध – मधुर, स्निग्ध, रुचिकर, स्वादिष्ट और वात-पित्त नाशक होता है। यह वीर्य,

बुद्धि और कफ वर्धक होता है। शीतलता, ओज, स्फूर्ति और स्वास्थ्य प्रदायक होता है।

स्त्री और गाय का दूध गुण-धर्म की दृष्टि से समान होता है। उसमें विटामिन ए और
खनिज तत्व होते हैं, जो रोगों से लड़ने की ताकत (प्रतिरोधक क्षमता) प्रदान करते हैं
और आंखों का तेज बढ़ाते हैं। दूध एक पूर्ण आहार है। शरीर को पुष्ट और स्वस्थ रखने के
लिए जितने तत्वों की जरूरत होती है, वे सभी उसमें पाए जाते हैं।

दूध रक्त नहीं है। इसका सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रमाण तो यह है कि दूध में जो केसीन
नामक प्रोटीन मौजूद रहता है, वह खून और मांस में नहीं पाया जाता। जो रक्त कणिकाएं
(डब्ल्यूबीसी, आरबीसी) और प्लेटलेट्स खून में पाए जाते हैं, वे दूध में नहीं होते। यह बात
साइंसदानों ने दूध का बेंजोइक टेस्ट करके बताई है। यह परीक्षण किसी भी पैथोलॉजी लैब
में किसी भी डॉक्टर से कराकर देखा जा सकता है। दूध एनिमल प्रॉडक्ट होने पर भी रक्त-
मांस से बिल्कुल अलग एक शुद्ध रस है।

कोई यह तर्क दे सकता है कि दूध में वही प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स और
शर्करा आदि तत्व पाए जाते हैं, जो खून में पाए जाते हैं, इसलिए दोनों एक हैं। लेकिन अगर
यह तर्क सही है, तो वे सभी तत्व हरे या भिगोए हुए सोया, गेहूं, चना आदि अनाज में
भी पाए जाते हैं, लिहाजा उन्हें भी मांसाहार कहना पड़ेगा, जो कि सही नहीं होगा।

यह सही है कि जेनेटिक ब्लू प्रिंट के मुताबिक अपनी-अपनी प्रजाति की मां का दूध सबसे
अच्छा होता है इसलिए गाय का बछड़ा गाय का दूध, बकरी का मेमना बकरी का दूध,
बिल्ली का बच्चा बिल्ली का दूध और शेरनी का बच्चा शेरनी का दूध पीता है। इस प्रकार
सभी स्तनधारी प्राणियों की मांएं अपने बच्चों के पोषण और विकास के लिए दूध देती हैं।

लेकिन यह भी सदियों से आजमाई हुई बात है कि जिन प्राणियों की मां नहीं होती या दूध
नहीं दे पाती, गाय उनकी मां बन जाती है। गाय का दूध सभी प्राणियों के अनुकूल पड़ता है
और पर्याप्त मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है। इसके उलट अन्य प्राणियों का दूध
प्रतिकूल और अपर्याप्त होने से सभी के काम नहीं आता। लेकिन याद रखें कि दूध
मां का हो या गाय का, उसका सेवन करने की एक निश्चित मात्रा होती है। यदि उससे
अधिक ग्रहण किया जाएगा, तो हानि पहुंचाएगा। इसलिए ‘हितमित भुख’ यानी थोड़ा और
हितकारी भोजन करने को कहा गया है। अति तो हर चीज की बुरी होती है। यह कह कर
भी दूध को खारिज नहीं किया जा सकता कि वह छह से आठ घंटे में पचता है। बहुत
सी ऐसी शक्तिवर्धक चीजें (बादाम, काजू, मूंगफली आदि) हैं, जिन्हें पचने में इससे
ज्यादा समय लगता है।

शिशु अवस्था में लेक्टॉस एंजाइम का पर्याप्त मात्रा में स्त्राव होता है। वे ही एंजाइम दूध
को पचाते हैं, इसलिए बच्चों का वह पूर्ण आहार होता है, लेकिन जैसे-जैसे उम्र
बढ़ती जाती है, लेक्टॉस एंजाइम का स्त्राव घटता जाता है। फिर भी लगातार दूध पीने
वालों को यह पचता रहता है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया में क्लिनिकल
इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. ट्यूबर का कहना है कि जो वयस्क आदतन दूध और उससे
बने उत्पादों का सेवन करते हैं, उनके लेक्टॉस एंजाइम सक्रिय बने रहते हैं और दूध
पचता रहता है। लेकिन जो बचपन के बाद दूध का सेवन बंद कर देते हैं, उनमें इस एंजाइम
का संश्लेषण बंद हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों को दूध पीने के बाद डायरिया और पेट दर्द
की शिकायत हो सकती है। लेकिन दूध नहीं पचा सकने वाला व्यक्ति अगर (चावल,
रोटी आदि के साथ) थोड़ा-थोड़ा बढ़ाते हुए क्रम से दूध का सेवन करता है, तो एंजाइम
की मात्रा सुधर जाती है और दूध पचने लगता है।

दूध इतना अधिक होता है कि उसे दुहा जाना जरूरी है। हानाह शोध संस्थान के डॉक्टर
वाइल्ड का कहना है कि अगर दूध दुहा न जाए, तो स्तन ग्रंथियों पर बुरा असर पड़ता है।
इससे स्तन कोशिकाएं मरने लगती हैं। लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि बछड़े को पेट भर
दूध मिले। इंजेक्शन का इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए।

दूध का उपयोग अनादिकाल से हो रहा है। हमारे महापुरुष इसी अमृत को पीकर बड़े हुए।
इसलिए दूध के आलोचकों को न सिर्फ तथ्यों से, बल्कि परंपरा से भी सबक लेना चाहिए।

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