पुनरोदय: – देवनारायण भारद्वाज ‘देवातिथि’

सुन्दर नर तन मन मधुवन को।

प्रभुवर! पुन: पुन: दो हम को।।

सुखकर दीर्घ आयु फिर पायें,

फिर प्राणों का ओज जगायें।

फिर से आत्मबोध अपनायें।

मंगल दृष्टिकोण के धन को।

प्रभुवर! पुन: पुन: दो हम को।।१।।

होवें सक्षम श्रोत्र हमारें,

तज कर जग को प्रेय पुकारें।

फिर से साधन श्रेय सुधारें।।

विज्ञान विमल के दर्पण को।

प्रभुवर! पुन: पुन: दो हम को।।२।।

दु:ख दुरित दूर उर करो मधुर,

हो हृदय अहिंसक सर्व सुखर।

हे जठर अनल हे वैश्वानर।।

कर्मठ ललाम नव परपन को।

प्रभुवर! पुन: पुन: दो हम को।।१।।

स्रोत- पुनर्मन: पुनरायुर्मऽआगन्पुन: प्राण:,

पुनरात्मामऽआगन्पुनश्चक्षु: पुन:

श्रोत्रंमऽआगन्। वैश्वानरोऽअदब्ध

स्तनूपाऽअग्निर्न: पातु दुरितादवद्यात्।।

– (यजु. ४.१५)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *